Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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गरीब साहूकार बनता है तब बीच में ईश्वर को इस मेले में पड़ने की क्या आवश्यक्ता है ? यदि ईश्वर सृष्टि का कर्ता ही है तो बतलाईये ईश्वर व्यापक है या अव्यापक ? साकार है या निराकार ? स्वयम्भू है या अन्यभू ? मायी है या अमायी ? इच्छावाला है या अनिच्छावाला ? लीला क्रीड़ा वाला है या अलोला क्रीड़ा बाला ? शरीरो है या अशरीरी ? यदि ईश्वर व्यापक निराकार स्वयंभू अमायो-अनिच्छा वाला, लीला क्रीड़ा रहित, अशरीरी है तो वह सृष्टिकर्ता कैसे हो सकता है कारण सृष्टि का निर्माण वह ही कर सकता है कि जिसके आकारादि पूर्वोक्त लक्षण हो वे तो ईश्वर में एक ही नहीं है वास्तव में विचार किया जाय तो ईश्वर को सृष्टिकर्ता मानने वाले ईश्वर के असली स्वरूप से बिलकुल अनभिज्ञ हैं । इसलिए उनको नास्तिक कहना भी अनुचित नहीं है कारण ईश्वर की स्वतन्त्रता स्वगुण रमएता, निराबाध और परम शांति सुखका अनुभव करना एवं अनंत ज्ञान दर्शनादि गुणों का विच्छेद करते हैं परमात्मा के परम-पद को सत्यरूप में स्वीकार नहीं कर यद्वातद्वा कह देना ही नास्तिकता के लक्षण है सृष्टि अनादि अनंत है इसका कर्ता हर्ता कोई नहीं है द्रव्यापेक्षा यह नित्य शाश्वत और वर्णादि पर्यायापेक्षा अशाश्वत हैं यह मानना यथार्थ आस्तिक का सच्चा निशान है ।
(४) आत्मा जीव स्वयं कर्मों का कर्ता भोक्ता हैं इसमें निराकार ईश्वर को निमित्त बतलाना एक अल्पज्ञता है जब ईश्वर के मुखादि शरोर ही नहीं तो वे सम्पूर्ण विश्व के जीवों को कर्मों का फल कैसे भुक्ता सकते हैं यदि सम्पूर्ण विश्व के जीवों का इन्साफ देने
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