Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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लाखों नागरिक साथ ही साथ श्मशान की ओर प्रयाण करुणापूर्ण मोह दशा का उपाय भी तो क्या हो
करने लगे । उस समय उस पार नहीं था किन्तु इसका
सकता था ?
देवी चामुण्डाने अपने ज्ञान बल से जाना कि मन्त्री पुत्र मरा तो नहीं है, पर विषव्याप्त मूर्छित हुआ है, इस दशा को अवलोकन कर देवी ने सोचा कि यह मूर्ख जनता कहीं इस जीवित कुमार को जला न देवे, इधर उसने यह भी विचार किया कि मैंने महात्माओं को भी बचन दे रक्खा है कि आपको यहां चतुर्मास करने में बड़ा भारी लाभ होगा । ऐसी स्थिति में यह अवसर ठीक आया है, पश्चात् देवी ने एक छोटे साधु का रूप बनाया और श्मशान के मार्ग पर जाकर मनुष्यों से इस प्रकार कहा कि,
" जीवितं कथं ज्वालयत
अरे ? अज्ञ लोगों ? मन्त्री पुत्र तो जीवित है, तुम इसे जलाने के लिए कैसे ले जा रहे हो ? इतना प्रवचन कर देवी तो लुप्त होगई। जिन मनुष्यों ने यह सुना उन्होंने शीघ्र ही राजा और मन्त्री को कहा कि एक साधु कह रहा है कि कुमार जीवित है । यह सुन कर सब को खुशी हुई और राजा की आज्ञा से उस साधु की शोध भी हुई, किन्तु वह साधु न मिल सका, पश्चात् सवों की सम्मति से उस मन्त्री पुत्र का विमान आचार्य देव के पास ले गये । यहां राजा और मन्त्री ने
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कई पट्टावजियों में इस लघु साधु को सूरिजी का शिष्य भी लिखा है।
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