Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 17
________________ [ १३ ] थे किन्तु सतत धर्मकायों में प्रवृत्त रहते थे। उन्होंने पद्मावती नगरी में होतेहुए यज्ञबलिदान को रोका और महाराजा पद्मसेनादिकों को उपदेश देकर ४५००० सद्गृहस्थों को जैनी बनाया वे आज भी प्राग्वट ( पोरवालों) के नाम से प्रसिद्ध हैं । इस भांति मरुधर में जैन धर्म की नींव डालने का सबसे पहला अर्थात् शुद्धि और संगठन करने का यशः आप ही ने उपार्जन किया। प्राचार्य स्वयंप्रभसूरि एक ऐसे मिशिनसंचालक की शोध में थे जो इस मिशिन को अति वेग से प्रगतिशील बनावें। यह शोध स्वार्थ के लिए नहीं किन्तु परमार्थ के लिए ही थी। वह आडम्बर मात्र की नहीं किन्तु शुद्ध और सच्चे हृदय की थी -- "यादृशी भावना यस्यसिद्धिर्भवति, तादृशी" इसी युक्ति के अनुसार ऐसे होनहार संचालक का शीघ्र ही संयोग मिल गया। "अन्यदा स्वयंप्रभसरोणांः देशनां ददतां उपरिरत्नचूड़ विद्याधरो नंदीश्वरद्वीपं गच्छन् तत्र विमानं स्तम्भितवान्' .. प्राचार्य स्वयंप्रभसूरि एक समय जंगल में कई देवी देवताओं को धर्मोपदेश दे रहे थे उस समय रत्नचूड़ विद्याधर अपने कुटुम्ब (साथियों) सहित नंदीश्वर द्वीप की यात्रार्थ जा रहे थे। जैसे उस विद्याधर का विमान,सूरीश्वरजी के ऊपर पाया उसकी गति रुक गई। रत्रचूड़ ने विमान के अवरोध का कारण एक महान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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