Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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[ १८ ] "शासनदेव्या कथितं भो श्राचार्य ? अत्र चतुर्मासं कुरु महालाभो भविष्यति'।
हे भगवन् ! आप यहां चतुर्मास करें आपको बड़ा लाभ होगा। देवी की विनती सुनकर प्राचार्य देव ने श्रुत ज्ञान द्वारा उपयोग लगाया, और भविष्य की स्थिति को भली प्रकार समझ ली कि यहां का चतुर्मास वास्तव में परम लाभदायक है, अतः साधुओं को आदेश दिया कि जिसकी शक्ति तप करने की है वह मेरे निकट रहे, शेष अनुकूल स्थल पर जाकर चतुर्मास करें। इस पर ४६५ मुनि तो सूरिजी की प्राज्ञा लेकर विहार कर गये और शेष ३५ मुनि रहे।
___ "गुरुः पंचत्रिंशनमुनिभिः सह स्थितः मासी, द्विमासी, त्रिमासी, चतुर्मासी उपोषिता कृता
इस प्रकार ३५ मुनियों के साथ प्राचार्य श्री ने वहां चतुर्मास करने का निश्चय कर लिया। पश्चात् पर्वतों की कन्दराओं तथा वृक्षों की शीतल छाया में स्थित ध्यान में मग्न हो गए।
ऐसे महान् परोपकारी महापुरुषों को धन्य है कि जिन्होंने धर्म प्रचारार्थ इतना बलिदान किया, निराहारी बन शरीर की रक्षा के लिए भी पूर्ण उपेक्षी बन गए । क्या वर्तमान युग के उपाधिधारी मुनि तथा आचार्य इस भाँति बलिदान कर आचार्य देव का अनुकरण करने को उद्यत हैं ? . ___ सज्जनो! आगे आपको भली प्रकार विदित हो जायगा कि तपस्वी मुनियों के तप का प्रभाव जनता
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