Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 12
________________ [ ८ ] तेवीसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ एक ऐतिहासिक महान् दिव्य पुरुष हो गये हैं। जिनके निर्वाण बाद उनके पद पर शुभदत्त गणधर हुए जिन्होंने जैनधर्म का महान् प्रचार किया। पश्चात् उनके पद पर प्राचार्य श्री हरिदत्तसूरि हुए जिन्होंने स्वस्ति नगर में वेदान्ती लोहिताचार्य और उनके १००० (एक सहस्र) शिष्यों को जैन दीक्षा दी पश्चात् ज्ञान का सम्पूर्ण अभ्यास करवा कर पूर्ण योग्य बनाया, प्राचार्य पद प्रदान कर महाराष्ट्र प्रान्त में धर्मप्रचारार्थ भेजा। उन्होंने तथा उनके उत्तराधिकारियों ने उस प्रान्त में चिरकाल तक भ्रमण कर स्याद्वाद, ज्ञान और अहिंसा धर्म का खूब झंडा फहराया। प्राचार्य हरिदत्त सूरि के पद पर आचार्य आर्य समुद्रसूरि हुए, आप भी जैन धर्म के कट्टर प्रचारक थे। आपके शासन काल में विदेशी नामक प्राचार्य ने उज्जैन नगर के जयसेन राजा और अनंग सुन्दरी रानी तथा उनके एकाकी पुत्र केशीकुमार को दीक्षा दी, पश्चात् अापने उस केशीकुमार श्रमण को अपने पद पर प्राचार्य पद से विभूषित कर स्वर्ग को प्रस्थान किया। प्राचार्य केशी श्रमण ने अपनी अद्वितीय विद्वत्ता वचन लब्धि और दिव्य आत्मशक्ति द्वारा जैन धर्म का खूब प्रचार किया। श्वेताम्बिका नगरी का राजा प्रदेशी पूर्ण नास्तिक शिरोमणि था, वह कहर अधर्मी और पाखंडीथा। ऐसी आत्माओं को भी आपने प्रतिबोध देकर सच्चा प्रास्तिक जैन धर्मावलम्बी बनाया। ऐसी स्थिति में उन प्राचार्य श्री ने सुलभ प्रान्तों में परिभ्रमण कर जैन धर्म का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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