Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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कितना अतुल प्रचार किया होगा ? अर्थात् उन्होंने अनेक राजा महाराजाओं को अहिंसा परम धर्म के उपा सक बनाये ।
तथापि इस विशाल भारत के कई प्रान्तों में यज्ञवादियों की हिंसामय प्रवृत्ति का निरोध सर्वथा नहीं हो सका इसका मुख्य हेतु यही था कि यज्ञवादियों ने इस विषय के नाना ग्रन्थ निर्माण कर उन पर ईश्वर कथित वाणी को मोहर अंकित कर दी थी । अवसर मिलते ही उन शास्त्रों द्वारा बड़े बड़े राजा महाराजा तथा जनसाधारण को विश्वास दिलाया जाता था कि यज्ञ करना नवीन प्रथा नहीं किन्तु स्वयं परमात्माकथित वेदों का हो इसमें प्रमाण है इत्यादि, किन्तु ऐसी विकट स्थिति में भी केशी श्रमणाचार्य का प्रयास निष्फल नहीं हुआ आपने सतत प्रयत्न कर अनेक राजाओं को अहिंसा धर्म के उपासक बनाये ।
विश्व की अशांति को नष्ट करने के लिये इसी - प्रकार विश्वकल्याणार्थं समय समय पर महाभाग महापुरुष अवतीर्ण हो पृथ्वी का उद्धार करते हैं । प्रकृति ऐसी स्थिति में एक अलौकिक आत्मा की प्रतीक्षा कर रही थी, ठीक उसी समय चरमतीर्थकर परम पिता महावीर प्रभु ने अवतार धारण कर गृहवास के पश्चात् प्रव्रज्या धारण कर घोर तप किया, वीर प्रभु ने घाती कर्मों का नाश कर कैवल्यज्ञान प्राप्त किया, पश्चात् अपना शासन प्रचलित किया। भगवान वीर लोकोत्तर पुरुषरत्न थे उनका अनुपम साहस, अलौकिक वीरता, आदर्श सहनशीलता, विश्वकल्याण तथा जनता के उद्धार की उत्कृष्ट भावना ने विश्व को
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