Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 11
________________ [ ७ ] उपरोक्त सूक्तियों से पूर्णतया पुष्ट होता है कि वाममार्गियों ने कैसे अश्लील सिद्धान्तों की पुष्टि की। दुराचारों को मोक्ष का मार्ग बतलाकर किस भांति अधर्म और दुराचार का प्रचार किया, इस प्रकार के घातक सिद्धांतों का प्रचार कर सम्पूर्ण समाज को ऐसा रंग दिया कि कोई व्यक्ति उन विचारों के परिवर्तन में समर्थ नहीं हो सकता था। इस भांति राजा और प्रजा सम्पूर्ण जन समाज देवी के उपासक थे। देवी की प्रसन्नता के कारण सहस्रों मूक पशुओं के रक्त से यज्ञ वेदियाँ रक्त रंजित रहती थीं। आगे चल कर इनके मुख्य दो विभाग प्रचलित हुए (-१) कुंडापंथी (२) काँचलिया पंथ । इन विभागों के नाना मत बने हुए थे, जिनके अखाड़े प्रत्येक ग्राम और नगर में विद्यमान थे। धर्म के नाम पर इस भांति जनता का द्रव्य, समय और शक्तियाँ बलात्कार पूर्वक नष्ट की जाती थीं। प्रकृति का यह अटूट नियम है कि उन्नति के अंत में अवनति का चक्र पाता है। जव अवनति पूर्ण सीमा पर पहुंच जाती है तब पुनः दूसरे समय में महान परिवर्तन और उन्नति का सूर्य उदय होता है। हमारे मरुधर की भी यही स्थिति हुई, उस समय प्रकृति ने एक महान पुरुष रत्न को जन्म दिया जो इस प्रकार की घोर विषम परिस्थिति को सुधारने में सर्वप्रकार समर्थ थे। हम यहां हमारी जयन्ति के नायक प्राचार्य प्रवर श्री मदरत्नप्रभसूरीश्वरजी के विषय में, वे कौन थे, किस समुदाय के थे आदि संक्षिप्त परिचय करा देना परम पुनीत कर्त्तव्य समझते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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