Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 10
________________ दश [ ६ ] दूकान, कोड व्यापार करेतां ॥ सहस पांच सहस विप्र भिन्नमाल से, मणिधर साधे मांडिया । शाह ऊहड़ ने उपलदे सहित, घरबार साथे छांडिया ॥ १ ॥ इसी ही नगर में नहीं अपितु सारे प्रांत में वाममार्गियों का पूर्ण अधिपत्य था, प्रत्येक शुभ कार्य में यज्ञ होम करना तो उनकी साधारण चर्य्या थी, मद्य मांस तो उनकी दैनिक खुराक ( आहार ) थी । उन दुराचारी पाखण्डियों ने अपने मत पोषण के लिये स्वार्थान्ध हो ऐसे अश्लील ग्रन्थों का निर्माण किया तथा उनका प्रचुर प्रचार कर भद्र जनता को पूर्ण पतन के गहरे गहर में गिराकर उनके साथ धर्म के नाम पर अत्याचार कर पूर्ण विश्वासघात किया । - * कुछ नमूना - मांस विषयक: " मद्यं मांसं च मीनं च मुद्रा मैथुन मैव च । इति पंच मकाराश्च मोक्षदाहि युगे युगे” ॥ मदिराविषयक : " पीत्वा पीत्वा पुनः पीत्वा, यावत् पतति भूतले । उत्थितः सन् पुनः पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते " ॥ व्यभिचार विषयकः " रजस्वला पुष्कर तीर्थ, चाँडाली तु स्वयं काशी । चर्मकारी प्रयाग तीर्थ, स्याद् रजकी मथुरा मता" ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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