Book Title: Niyamsar
Author(s): Kundkundacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ यपि इनको भी छठा-सात ही गुणस्थान रहता है फिर भी इनकी चर्या, इनके परिणाम सामान्य जनों की होटि में नहीं पा सकते हैं । इसीलिये ये साक्षात् जिन हैं । इनका भाररण तीन लोक में सर्वोत्कृष्ट है। ___ इनके समान जिनकी चर्चा हो फिर भी इनसे किंचित न्यून ही हो वे मुनि जिनकरूपी कहलाते हैं । ये भी प्रायः मौन पूर्वक विहार करते हुये चार-घह महीने तक भी ध्यान में खड़े हो जाते हैं, ये भी एकलविहारी होते हैं । उत्तम संहनन घारी महामुनि इस युग में नहीं हो सकते हैं। Ji जो मुनि ज्ञानो उत्कृष्ठ चर्या को पालने में असमर्थ होते हैं ये गुरु के सानिध्य में संघ में रहकर पाहाः बिहार नौहार क्रियाभों में पागम के अनुगल प्रवृत्ति करते हैं । इनमें जो प्रधान याचार्य होते हैं वे शिष्यों का संग्रह करना, उन्हें दीक्षा, शिक्षा, प्रायश्चित प्रादि देकर मोक्षमाम में लगाना, मुनि ब भावकों को धर्मोपदेश देना, तीर्थयात्रा, धर्म प्रभावना पादि कार्यों में प्रवृत्त होना पादि सरगचर्या का अनुसरण करते हैं। ये साधु "स्थविरकल्पी" फहलाते हैं । ये गहां चतुर्थकाल में मोर विदेह क्षेत्रों में भी होते हैं । पंचमकाल में श्री कुचकुददेव ग्रादि से लेकर माज तक के सभी मुनि उत्तम संहनन के अभाव मे स्थविरतक के सभी मुनि उत्तम महनन के प्रभाव से स्थवि... करूपी ही हैं। स्पबहार -निश्चय मोक्षमार्ग : मुनियों के मकल चारित्र के दो भेद हैं-सराग नारित्र पौर वीनराम चारित्र । इन्हें शुभोपयोग-शुद्धोपयोग, ___ प्रपतसंयम उपेक्षासंयम, व्यवहारचारित्र और निश्चय चारित्र भी पड़ते हैं। इनमें में पहले मुनिजन व्यवहार । पारित्र को ग्रहण कर उममें पूर्णतया निष्णात-निष्पन्न होकर निश्चयचारित्र के लिये प्रयत्न करते हैं । व्यवहार चारित्र, प्राचग्ण, किया अथवा प्रवृत्तिरूप है और निश्चय चारित्र, ध्यान, एकायना या निवृत्तिरूप है। साधनसाध्य भाव : न दोनों में आपस में साधन मध्यभाव अथवा कागा कार्य भाव पाया जाता है । जैम अग्नि में बिना घूम वीक निक्ष अथवा फूल के बिना एन नहीं हो सकता है। मे ही बिना पबहारचारित्र के निश्चय पारित नहीं हो सपना है । चारित्रचक्रवर्ती गुममांगुरू प्राचार्य श्रीमतिसागरज पहाराज ने प्राने २६ दिन के उपना के बाद दिन गये अतिम उपदेश में पवनचारित्र से निश्चयचारित्र * जि पुन से फल का उदाहागा निः!! 41 । बा .. निविप समाधि. मरिकल्न समाधि इस प्रकार के दो कदम है। कपड़ी में रहने व ने Phi | धि करे । मुनियों के सिवाय निर्विकल्प समाधि हो ।। ।।। जो विना मुनिपद नही होना 1 भाया ! रो मत, मुनिपद धारण करो। यथार्थ मंयम हुये बिना निविप समाभि नहीं होती है। इसप्रकार गमयसार में प्रो कुदकुदस्वामी ने कहा है। प्रात्मानुभव के बिना सम्यक्त्व होता महीं। व्यवहार सम्म यो उपचार कहा है । यह यथार्थ सम्यबत्व नहीं है, यह साधन है। जिसप्रकार फल के पाने के लिये पु.ल

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 573