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संवत् १५२५ वर्षे वैशाख वदि ५ दिने वीरमपुरे श्री खरतर गन्छे श्री कीतिरत्नसूरीश्वराणा स्वर्ग । तत्पादुके श्री शखवालेचा गोत्रे मा० काजल पुत्र सा०तिलोकसिंह खेतसिंह जिनदास गउडीदास-कुशलार येन मरापित । शाके १४३३ प्रवत माने (?) स० १६३१ वर्षे मगसर मुदि २ दिने प्रतिष्टित ।
खरतर गच्छ दादावाडी मे स० २००० में श्री जयमागरमूरिजी के सानिध्य में श्री जिनदत्तसूरि, मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि और श्री कीति रत्न सूरिजी की पादुकाएँ यतिवर्य नेमिचन्द्र जी ने स्थापित की। इत पूर्व यहाँ पर श्री जिन दत्त सूरि जी और श्री जिनकुशलमूरिजी को पादुकाएं स्थापित थी।
उपात्र्याय ललितकीत्तिकृत गुरु स्तुति मे विदित होता है कि आपकी चरणपादुकाएं व स्तूप आबू, जोधपुर, राजनगर आदि स्थलो मे भी स्थापित थे । यत
'पगला अरवुद गिर भला, योधपुरै जयकार
राजनगर राज सदा, धु म सकल सुखकार ।।८।' अभयविलास कृत कीतिरत्न सूरि गीत मे गडालय-नाल मे म० १८७६ मिती वैशाख बदि १० के दिन आपके प्रासाद निर्माण होने का इस प्रकार उल्लेख है
कीतिरतनमूरि गुरुराय, महिर करो ज्यु सपति थाय । अठार से गुण्यासीये वास, वदि वैशाख दशमी परगास |१३|| रच्यो प्रासाद गडालय माहि, दोय थान सोहे दोनु वाह। सुगुरु चरण थाप्या घणे प्रेम, सुजस उपयो काति रतन एम ॥१४॥
वीकानेर जैन लेख स ग्रह लेखाड्ड, २२६६ मे इसके महत्वपूर्ण अमिलेख की नकल इस प्रकार प्रकाशित है।
॥स० । १४६३ मध्ये शस्त्रवाल गोत्रीय डेल्ह कस्य दीपास्येन पिया सम्बन्ध कृत तत विवाहार्थ दूलहो गत , तत्र राडद्रह नगर पार्श्वस्थायास्थल्या