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मिती वैशाख वदि ६ के दिन आपके स्तूप और चरणो की प्रतिष्टा श्री जिनभद्र सूरि जी के पट्टधर श्री जिनचन्द्रसूरिजी ने करवाई |
जिन दिन आचार्य श्री कीतिरत्नसूरिजी का स्वर्गवास हुआ था उस दिन अपने आप उनके पुण्य प्रभाव से जिनालय मे दीपक प्रदीप्त हो गए । खरतर गच्छ मे सुप्रसिद्ध महान् प्रभावक दादा गुरुदेवो की भाति आपका भी चमत्कारिक प्रभाव विस्तार हुआ और स्थान स्थान पर स्तूप- चरण एव प्रतिमाओ की प्रतिष्ठा हुई । वीरमपुर नाकोडा पार्श्वनाथ जिनालय मे आपकी प्रतिमा विराजमान है जिसका चित्र इसी पुस्तक मे प्रकाशित है और उसका अभिलेख भी सलग्न है । आपके स्तूप को विस्तृत प्रशरित भी प्राप्त हुई हैं जो इस प्रकार है
"|| श्री वद्धमान देवस्य शासनाजयताच्चिरं ।
किं कल्पद्रु र किं वा कर्ण
अद्यापि यत्र दृश्यन्ते वहु सर्वा नरोत्तमा। । १ ॥ व्यधायि विधिना कि वादधीवि शुचिः भूमण्डले वा चरत् दान ददान घन
नरेश्वर पुन रसो वितर्कयन्ति कवयो
यं दृष्टेति
श्री वीदाधिप भूपति सजयति श्री भोजराजागज ॥१॥ प्रताप तपनाक्रान्ता श्री वीदा पृथिवी पते ।
धूका इवाराय सर्वे सेवन्ते गिरि कन्दरा ||२॥ तथा हि
श्री ऊकेश वशे श्रीगखवाल शाखाया सा । कोचर सन्ताने सा० रतना भार्या मोहण देवी पुत्रो० सा० आपमल्ल सा० देपाभिधानो धनिनो वभूवतु खा० मापमल्ल पुत्रा सा० पेथा, सा० भीमा, सा० जेठाख्या अभवन् सा० दपा मार्या देवलदेवी पुत्रा सा० लक्खा, सा० भादा, सा० केल्हा, सा० देल्हामिया धनवन्त तेषु च सा० देल्हाक श्रीमत्खरतर गच्छे श्री जिनवर्द्धनमूरि करे स० | १४६३ आपाढाद्य ११ दिने दीक्षा लात्वा, स० १४७० वर्षे श्री कीतिराज गणि वाचनाचार्य भूत्वा सवत् १४८० वर्षे वैशाख सुदि १० दिने श्री जिनभद्रसूरि करे उपाध्याय पद प्राप्य, स० १४६७ माघ सित दशम्यां श्री जैमलमेरो