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श्रीजिनभद्रसूरि हस्ते स्व भ्रातृ सा | लक्खा, सा । केल्हा कारिताति विस्तारोत्सवे श्री भावप्रभसूरि पट्टे श्रीकीतिरत्नाचार्या बभूवतुः ते चोत्तर देशादिषु प्रतिबोधितानक नवीन श्रावक सघा गीतार्था कृत श्री लावण्यशीलोपाध्याय, पा। शान्तिरत्न गणि, वा। क्षान्तिरत्न गणि, वा। धर्मधीर गणि अनेक शिष्य वर्गा तत आत्मायुरन्त विज्ञाय पञ्चदशोपवास प्रथम सलेखन कृत्वा पोडशोपवासि सदा साहसिकतयाहदादीन् साक्षी-कृत्य, चतुर्विध, संघ समक्ष स्वमुखेनानशन गृहीत्वा, पालयित्वा दश दिनान् एव पचविंशति दिनात् शुभ ध्यान तोति बाह्य स० १५२५ वैशाख बदि ५ पचम्यां श्री वीरमपुरे स्वर्ग प्रसूता । तस्मिन् दिने तत्पुण्यानुभावत श्री जिनविहारे स्वय प्रादाव्य दीपा स्पष्ट बभूवतुरिति ततश्च । तस्मिन् श्री राठोड वश चूडामणि श्री वीदा नाम नरेश्वर स्वय स्थापित श्री वीरमपुरे न्याय राज्य प्रतिपालयति सति तदादेशात् सा। केल्हा मार्या केल्हणदेवी पुत्र सा । धन्ना, स० मना, स० माला, स० गोरा । सा। डू गर, सा । शेषराज, सुश्रावक, सा। भादा पुत्र सा मोजा, सा० लक्खा, सा० गणदत्त, तत्पुत्र सा० माडण सा । जगा प्रमुख परिवार सश्री के स० । १५१४ वहु सघ मिलन श्री शत्रुञ्जय श्री गिरनार तीर्थातिविस्तारतीर्थयात्राकरणप्राप्तमधपतिपदतिलक श्री गिरनार देव्य श्री वीरमपुरे श्री शान्तिनाथ महाप्रसाद विधापन सफलीक्रियमाण लक्ष्मी के सवत् १५२५ का वैशाख बदि५ दिने श्री कीतिरत्नाचार्याणा स्तूप स्थापित कारितश्च पादुका सहितम्त स्व प्रतिष्ठितस्य श्री खरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्ट श्री जिनचन्द्रसूरिभि शुभ मवतु शिप्य कल्याणचन्द्र सेवित प्रशस्ति लेखन हर्पविशालो प्रशस्ति चिरनदतु श्रीरस्तु ।। [पत्र १
श्री कीर्ति रत्नमूरि जी की प्रतिमा तीर्थनायक श्री नाकोडा पार्श्वनाथ जिनालय के गर्भगृह के आगे आले मे विराजमान हैं जिस पर यह लेख है
"श्री कीतिरत्नसूरि गुरुभ्यो नम' स वत् १५३६ वर्षे सा० जेठा पुत्री रोहिणी प्रणमति
नाकोडा तीर्थ के खरतर गच्छीय सा० माला के वनवाए हुए शान्तिनाथ जिनालय मे स्थित चरण पादुका पर निम्नोक्त लेख हैं