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२. निक्षेप–किसी वस्तु का रखना या उपस्थित करने को निक्षेप कहते हैं। वस्तु-तत्त्व को शब्दों में रखने, उपस्थित करने अथवा वर्णन करने की चार शैलियां बतलाई गयी हैं, जिन्हें निक्षेप कहते हैं। अनुयोगद्वार सूत्र में कहा है कि जिसको जाने, उसका भी निक्षेप करे और जिस को विशेषरूप से न जाने, उसको जितना भी समझे, कम-से-कम उतने का अवश्य चार निक्षेपरूप में वर्णन करे, क्योंकि इस प्रकार वक्ता का अभिप्राय या वस्तुतत्त्व अच्छी प्रकार समझ में आ सकता है । विश्व में सभी व्यवहार तथा विचारों का आदान-प्रदान भाषा के माध्यम से होता है । भाषा शब्दों से बनती है। एक ही शब्द, प्रयोजन तथा प्रसंगवश अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है। प्रत्येक शब्द के कम-से-कम चार अर्थ पाए जाते हैं । अतः सिद्ध हुआ, जो अर्थ कोष में एक ही अर्थ का द्योतक है, निक्षेप करने से उस शब्द के भी चार अर्थ
होते हैं, जैसे कि नन्दी शब्द को लीजिए, उसे भी चार भागों में विभाजित करने से अनेक अर्थ निकल आते - हैं। वे चार निक्षेप निम्नलिखित हैं
नामनन्दी, स्थापनानन्दी, द्रव्यनन्दी और भावनन्दी। किसी जीव या अजीव का नाम, नन्दी रखा . गया है, जैसे कि नन्दिषेण, नन्दिघोष, नन्दिफल, नन्दिकुमार, नन्दिवृक्ष और नन्दिग्राम इस प्रकार किसी का नाम रखना, इसे नामनन्दी कहते हैं। जो अर्थ इतर लोगों के संकेत-बल से जाना जाता है, भले ही उसमें वह अर्थ नहीं घटित होता है, फिर भी उसे उसी नाम से पुकारा जाता है। स्थापनानन्दी उसे कहते हैं, जैसे 'नन्दी' शब्द किसी कागज आदि में लिखना। द्रव्यनन्दी के दो भेद हैं-आगमत: और नोआगमतः । आगमत द्रव्यनन्दी उसे कहते हैं जो व्यक्ति नन्दीसत्र को भली भांति जानता तो है, परन्तु उसमें उपयोग लगा हुआ नहीं है, क्योंकि कहा भी है--अनुपयोगो द्रव्यमिति वचनात् । नो आगमत: द्रव्यनन्दी के तीन भेद हैं, जैसे कि ज्ञशरीर द्रव्यनन्दी, भव्यशरीर द्रव्यनन्दी और उभयव्यतिरिक्त द्रव्यनन्दी।
ज्ञशरीर द्रव्यनन्दी उसे कहते हैं, जो जीवितावस्था में नन्दीसूत्र का पारगामी था, अब केवल उसका शव पड़ा है । लोग परस्पर यह चर्चा करते हैं कि यह व्यक्ति या मुनि नन्दीसूत्र का पारदर्शी था।
भाव्यशरीर द्रव्यनन्दी उसे कहते हैं, जैसे कि एक नवजात शिशु है, जिसने अनागत काल में निश्चय ही नन्दीसूत्र का पारगामी बनना है, परन्तु वर्तमानकाल में वह नन्दी के विषय को नहीं जानता है, इस कारण उसे द्रव्यनन्दी कहा जाता है। कहा भी है- "इह हि यद् भूतभावं, भाविभावं वा वस्तु, तद् यथाक्रमं विवक्षितभूतभाविभावापेक्षया द्रव्यमिति तत्त्ववेदिनां प्रसिद्धिमुपागमत् , उक्तं च
भृतस्य भाविनो भावा, भावस्य हि कारणं यल्लोके। .
तद्व्यं तत्त्वज्ञः सचेतनाचेतनं कथितम् ॥" उभयव्यतिरिक्त द्रव्यनन्दी, जहां १२ प्रकार के साज-बाज वाले एकसाथ, एक लय से जब वाद्य बजा रहे हों, तब इन्सान मस्ती में झूमने लग जाते हैं, इस आनन्द को उभयव्यतिरिक्त द्रव्यनन्दी कहते हैं।
इसी प्रकार भावनन्दी के भी दो भेद हैं, आगमतः भावनन्दी और नो आगमत: भावनन्दी । जब कोई मुनि पुङ्गव दत्तनित्त से उपयोग के साथ नन्दी का अध्ययन कर रहा है, वह भी अनुप्रेक्षापूर्वक, तब उसे आगमतः भावनन्दी कहते हैं । जिस समय में जो जिसमें उपयुक्य है, उस समय में वह व्यक्ति वही कहलाता है, क्योंकि उसका उपयोग उस समयं तदाकार बना हुआ होता है, उस ध्येय से वह अभिन्न होता है।
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