Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh

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Page 9
________________ प्रकाशवाय । अध्यात्मयोगी, युगमनीषी, युगप्रभावक, युगप्रधान आचार्यप्रवर परमाराध्य गुरुदेव पूज्य 1008 श्री हस्तीमल जी म.सा. के चिरप्रतीक्षित जीवन चरित्र 'नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं' को आपके समक्ष प्रस्तुत करते हुए अतीव प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। चारित्र चूड़ामणि, इतिहास मार्तण्ड, अखंड बाल ब्रह्मचारी आचार्य भगवन्त श्रमण भगवान महावीर की श्रमण परम्परा के ज्योतिर्मान नक्षत्र एवं रत्न संघ परम्परा के देदीप्यमान भुवन भास्कर थे। मात्र साढ़े पन्द्रह वर्ष की वय में आचार्य पद पर मनोनयन, उन्नीस वर्ष की वय में आचार्य पद-आरोहण, इकसठ वर्ष तक संघ के दायित्व का निर्मल-सफल निर्वहन, जीवन की सांध्य वेला में संथारापूर्वक सजग समाधिमरण आपके जीवन के भव्य कीर्तिमान हैं, जो श्रमण भगवान महावीर की पट्ट परम्परा में आपका यशस्वी नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित करने में सक्षम हैं। सामायिक और स्वाध्याय आपकी अमर प्रेरणाएँ हैं। स्मितमुस्कानयुक्त आनन, ब्रह्मतेज से दीप्त नयन, अप्रमत्त दिनचर्या, प्राणिमात्र के प्रति मैत्री एवं करुणा, गुणियों के प्रति प्रमोदभाव, विपरीत परिस्थितियों में भी माध्यस्थ भाव, ज्ञान-क्रिया से अदभुत सम्पन्नता आदि आपके जीवन की मौलिक || विशेषताएँ हैं। आप पद से नहीं, वरन् पद आपसे सुशोभित हुए, आप भक्तों से नहीं वरन् भक्तजन आपसे गौरवान्वित हुए। ऐसे इतिहास मार्तण्ड, जन-जन की आस्था के केन्द्र ज्योतिपुंज आचार्य भगवन्त का वि.सं. 2048 वैशाख शुक्ला 8 दिनांक 21 अप्रेल 1991 को जब संथारापूर्वक महाप्रयाण हुआ तो समूचा संघ ही नहीं जैन एवं जैनेतर जगत् स्तब्ध रह गया। कई पीढ़ियों के गुरुदेव को लाखों भक्तों ने बचपन से ही हृदय केन्द्र में बसा रखा था, अतः जीवन पर्यन्त संचित स्मृतियां सहज ही उनके स्मृतिपटल पर उभर उठीं। साथ ही भक्त जन-मानस में यह भावना जगी कि इन महापुरुष के जीवन के संस्मरणों, घटनाओं, विशेषताओं, आचार संबंधी आदर्शा, प्रेरक प्रसंगों को पढ़कर यह पीढ़ी प्रेरणा ग्रहण कर अपने जीवन का निर्माण कर सके तथा आगामी पीढ़ी के लिए विरासत के रूप में सुरक्षित सौंप सके, इस उद्देश्य से उनका पावन जीवन-चरित्र लिपिबद्ध किया जाय। संघ के कार्यकर्ताओं को भी यह प्रस्ताव सहज ग्राह्य लगा। एतदर्थ प्रयास भी प्रारम्भ हुए। सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल के माध्यम से दो विशेषाङ्क प्रकाशित हुए- 'आचार्यप्रवर श्री हस्तीमल जी म. सा.: श्रद्धांजलि विशेषाक' (सन् 1991) एवं आचार्य श्री हस्ती : व्यक्तित्व एवं कृतित्व विशेषाङ्क (सन् 1992)। 'झलकियाँ जो इतिहास बन गई' पुस्तक भी प्रकाश में आई, जिसमें पूज्य गुरुदेव के जीवन के प्रेरक-प्रसंग संकलित हैं। विदुषी बहिन डॉ. मंजुला जी बम्ब ने भी महासाधक के जीवन की कड़ियों को सूत्रबद्ध कर ग्रन्थ का आधार बनाया। उनका यह प्रयास सराहनीय था। श्रेयांसि बहु विघ्नानि'। उसके अनन्तर कतिपय प्रयासों के बावजूद भी कार्य अपेक्षित गति नहीं पकड़ पाया। इन प्रयासों की गति व प्रगति से संघ समुदाय संतुष्ट नहीं था। अ.भा. श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ की बैठकों में संघसदस्यों ने अपनी तीव्र भावावेशित भावनाएँ भी समय-समय पर संघ के कार्यकर्ताओं के समक्ष प्रस्तुत की व कार्य में हो रही देरी हेतु उपालम्भ भी दिये। अंततः सबकी भावना व राय यही रही कि यह लेखन मनीषी लब्धप्रतिष्ठ जैन विद्वान्, परमपूज्य गुरुदेव के अनन्य श्रद्धालु भक्त डॉ. धर्मचन्द जैन को सौंपा जाय। साथ ही इस कार्य-व्यवस्था को संयोजित करने तथा डॉ. धर्मचन्द जी जैन को अभीष्ट सहयोग प्रदान करने, संघ व कार्यकर्ताओं से सम्पर्क-समन्वय रखने हेतु "आचार्य हस्ती जीवन चरित्र प्रकाशन समिति" के नाम से संघ के तत्त्वावधान में एक समिति गठित कर

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