Book Title: Nabhak Raj Charitram Bhashantar
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Dosabhai Lalchand Shah
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________________ ना. भावार्थ-या प्रमाणे श्रीशत्रुजय तीर्थनी यात्रा निमित्त जोवडीवेला चारे मुहूर्तो निष्फळ जवाथी, 'अरे ! | मारो आत्मा महा पापी छे के जेयी पवित्रतीर्थ श्रीशबुजयनी यात्रा करवा जतां आवी रीते विघ्नो आव्या ज करे छे' ए प्रमाणे पोताना आत्मानी निंदा करता थका राजाए पांचमुं मुहूर्त कढाव्यु.पण कर्पसंयोगे ते मुहूर्त पण पोताना || देश उपर. वीजा राजाओना सैन्यो चडी आववाना भयथी बीती गयु // 36 // एवं भूपो व्यतिक्रान्ते, यात्राया लग्नपञ्चके। हेतुमस्य कथं ज्ञास्या-मीति चिन्तातुरोऽभवत् // 37 // भावार्थ--आ प्रमाणे श्रीअर्बुजय तीर्थनी यात्रा करवा माटे ज्योतिषीओ पासे कढावेला पांचे मुहूर्ती व्यवीत थबाकी 'आवो राते विघ्नो आववानुं कारण हुं केवी रीते जाणीश ?' ए प्रमाणे राजा चिंतातुर ययो. // 37 // तावतोचानमायाताः, श्रीयुगन्धरसूरयः। ................ इति विज्ञपयास, भूपालं वनपालकः // 38 // - - भावार्थ-एव विचार करे छे, तेटलामां वनपालकै आवी राजाने वधामी आपी के उद्यानमा श्रीयुगंधर || सूरि समवसर्वा छे. // 38 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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