Book Title: Nabhak Raj Charitram Bhashantar
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Dosabhai Lalchand Shah
View full book text
________________ 120 भावार्थ-ओगणीश कोडाकोडी सागरोपम काल पहेला, अतीतचोवीशीमां जम्बूद्वीपना भरतक्षेत्रने विषे 'संप्रतिस्वामी नामना तीर्थकरना चारामां, समुद्रतट समीपे तामलिप्ती नगरीमां समुद्र अने सिंह नामना बे भाइ रहेता हता. तेओमां मोटो भाइ समुद्र निर्मळ चरित्रवाळी पुण्यवान् अने सरलहृदयी इतो, पण नानो भाइ दुष्ट आचरणवाळो महापापी अने ऋरहृदयी इतो. जेम बोरडीना कांटाओ पैकी कोई वक्र अने कोइ सीधो होय छे, तेप आ वो भाइओमा मोटो भाइ सरल हतो, अने नानो भाइ वक्र हतो.॥४३-४४-४५॥ भुर्व खनद्भ्यां ताभ्यां स्व-गृहे स्थूणार्थमन्यदा / चतुर्विंशतिदीनार-सहस्रनिधिराज्यत // 46 // भावार्थ-ते बनेए एक दिवस पोताना घरनी अंदर यांमलो नाखवा माटे पृथ्वी खोदता चोवीस हजार. सोनामहोरयी भरेको निधि प्राप्त कर्यो॥ 46 // ... देवद्रव्यमिदं नाग-गोष्ठिकेन निधीकृतम् / इत्युक्तिगर्भ पत्रं च, ज्येष्ठो दृष्ट्वेत्यभाषत // 47 // भावार्थ-तथा तेनी साये एक पत्र नीकळ्यो. तेमां एवा भावार्थ- लख्यु हतुं के-'आ देवद्रव्य नाग१.अतीत चोवर्शािमा चोवीशमा तीर्थकर / . - - ...RPAC: Sunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108