Book Title: Nabhak Raj Charitram Bhashantar
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Dosabhai Lalchand Shah

View full book text
Previous | Next

Page 94
________________ / .. प्रदश्य चाटुभिर्वाक्यै-रुपसर्गाननेकशः। .... पूर्व कृत्वाऽनुकूलांस्ताः, प्रतिकूलानपि व्यधुः // 252 // युग्मम् / भावार्थ-आ प्रमाणे बोलती छती ते मन हरणी सुंदरीओए नामाक राजा आगळ शीतल अने सुवासित जल, साकर अने द्राक्षानं पाणी, घी अने साकर नाखी स्वादिष्ट बनावला दूधपाक विगेरे मिष्टान देखाडी मीठां मीठां प्रीतिपूर्वक वचनो वडे पहेला तो अनेक अनुकूळ उपसर्गो कर्या, अने त्यार पछी अनेक प्रतिकूल उपसर्गो करवा मांड्या // 251-252 // .. . . ||90 / तथाप्यक्षुब्धचेताः स, धर्मे यावदवस्थितः / श्रीशत्रुञ्जयशृङ्गस्थं, तावदात्मानमैक्षत // 253 / / भावार्थ-ते स्त्रीओए अनेक अनुकूल अने प्रतिकूल उपसर्गो करवा छतां पण ज्यारे अस्खलित चित्तवालो नाभाक जरा मात्र नहीं डगतां धर्म ध्यानमा ज लीन रह्यो, तेवामा पोताने श्रीशत्रुजय पर्वतना शिखर उपर रहेल जोयो // 253 // अहो! किमेतदित्येवं, साश्चर्ये नृपपुङ्गवे / सौरभ्याकृष्टभृङ्गालिः, पुष्पवृष्टिर्दियोऽपतत् // 254 // PP. Ac Gunratnasuri M.S. VAR DIGIRAaradhai

Loading...

Page Navigation
1 ... 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108