Book Title: Nabhak Raj Charitram Bhashantar
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Dosabhai Lalchand Shah
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________________ | भावार्थ-आ प्रमाणे कोइ पण प्रकारनी माया रहित पवित्र हृदये ते राजा अने देवे अत्यंत मोटी प्रभावना | करी लांबा वखत मुधी सर्वज्ञ प्रभुना शासननी उन्नति विस्तारी // 269 // अथाऽनन्तगुणोत्साह-बद्धरोमाञ्चकञ्चुकः। - नाभाकभूपतिधर्म-शालास्थानमशिश्रियत् // 270 // ... भावार्थ-त्यार बाद अनंतगणा उत्साहथी प्रफुल्लित रोमांचवाला नाभाक राजाए धर्मशालाना स्थाननो आश्रय लीधो // 27 // ... तत्र न्यक्कृतकल्पद्रु-डिण्डिमोद्घोषपूर्वकम् / .. __ स्वमर्थमर्थिसात्तन्व-नदारिद्रयं जगद् व्यधात् // 271 // ||-- भावार्थ-त्यां रही दान आपवा माटे पटहोद्घोषणा करावी, अने जेना दानगुण पासे कल्पवृक्षो पण हलका | पड़ी गया एवा ते राजाए पोतार्नु धन याचक जनांने आपतां सर्व जगत् अदारिद्रय करी दीधुं // 271 // अथ पुण्यपविनात्मा, क्षालिताऽखिलकश्मलः। गुरुभिः सह भूपालः, प्रतस्थे स्वपुरं प्रति // 272 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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