Book Title: Nabhak Raj Charitram Bhashantar
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Dosabhai Lalchand Shah
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________________ भावार्थ-तें सिंहना भवमा तारा भाइ समुद्रपालने यात्रा करतां अटकावी अंतराय को हतो, अने तेथी || ते अंतराय कर्म उपार्जन कर्यु हतुं, ते अंतराय कर्मज तने पहले पगथीयेथी गबडावनार वृद्ध पुरुष जाणवो // 263 // | .... असौ नागस्य जीवोऽपि, चन्द्रादित्यभवे पुरा। क्षालिताऽखिलसत्कर्मा, सौधर्मेऽजनि निर्जरः // 264 // ... भावार्थ-वळी जे आ तारी साथे देव आवेलो छे ते नागश्रेष्ठीनो जीव छे, तेणे पहेलां चंद्रादित्यना भवमा पुण्यकर्म बडे समग्र पाप प्रक्षालन करी अत्यारे सौधर्म देवलोकमां देवता थयो छे // 264 // ...- . इति सीमन्धरस्वामि-मुखात्तौ चरितं निजम् / : श्रुत्वा प्रीतौ जिनं नत्वा, शत्रुञ्जयमगच्छताम् // 265 // भावार्थ-आ प्रमाणे सीमंधर स्वामीना श्रीमुखथी ते देव अने जाभाक राजा पोतपोतार्नु चरित्र सांभळी घणा हर्षित थया, अने ते प्रभुने वंदन करी श्रीशत्रुजय पर्वत उपर गया // 265 // ... तत्र श्रीआदिदेवस्य, स्नात्रपूजामहोत्सवम् / R.P.AC.GunratnasuriM.S. कत्वाऽष्टाहश्रयं भक्त्या , तो स्वं धन्यममन्यताम् // 266||- Jun GurAaradhana

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