Book Title: Nabhak Raj Charitram Bhashantar
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Dosabhai Lalchand Shah
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 75 विधिपक्षगच्छीय (अंचलगच्छीय) श्रीमेरुतुंगसूरि विरचितम्॥ श्रीनाभाकराजचरित्रम् // आ भी नामबागम्मुरिाममंदिर श्री महावीर जैन भाराधना केन्द्र, बारनि. गांधीनगर Serving Jinshasan 050167 _gyanmandir@kobatirth.org नगर. श्री 49ॉगट (भाषांतर सहित.) विधिपक्षगच्छीय मुनिमंडल अग्रेसर मुनिमहाराज श्रीगौतमसागरजीना सदुपदेशीश्री कच्छ-भूजनगरना रहेवाशी विधिपक्षगच्छीय लालनगोत्रना शा. डोसाभाइ लालचंद'तथा शा. करमचंद लालचंदे, तेमना मातुश्री इंद्राबाइ संवत् 1976 मा श्री सिद्धक्षेत्रमा / चातुर्मास रहेला ते समये देवद्रव्यनी रक्षा माटे आ ग्रंथ छपाच्यो.. Aler SAWRTMENT Jun Gun Aaradhak Trust Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / . शंभु भीन्टींग प्रेस-पालीताणा. PP.PACHGuriratnasuriM.S. PPAAS.... . . . . .. Jun Gun Aaradhak Trust Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना आ परम पवित्र श्रीनाभाकराजानुं चरित्र अंचलगच्छीय श्रीमरुतुंगसूरिए 1464 नौ सालमा रच्यु छ, चरित्र सरल अने बोधक छे. देवद्रव्यनो विनाश करवायी अथवा तो तेने आडे मार्गे वापरवाथी माणीने केटला असा -कशे भोगवा पडे छे तेनो तादृश चितार आ ग्रंथमाँ आपवामां आव्यो छे. अमारों मातुश्रीए १९७५नी सालमां श्रीसिद्धक्षेत्रमा चतुर्मास करेल, तेनी यादगीरी माटे आ ग्रंथ मुनिमहाराजश्री गौतमसागरजी महाशाजनी भेरणाथी अमोए छपाव्यो छे. आवा उपयोगी ग्रंथने प्रसिद्ध करवा माटे अमोने प्रेरणा करनार उक्त मुनिमहाराजश्रीनो उपकार मानवामां आवे छे. आ ग्रंथ खास करीने व्याख्यानने योग्य होवाथी मतचे आकारे छपाव्यो छे. संस्कृत नहीं जाणनारा पण आ बोधक चरित्र वांची शके माटे भाषांतर पण साये आपवामां आव्युं छे. आशा छे के-|| आ ग्रंथ वांची बुद्धिमानो तेनो सार ग्रहण करशे. ली प्रसिद्धको BEAGunratnasuriM.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . .............लीचेने सरनामे लखवाथी आ ग्रंथ भेट मळी शकशे... : अचलगच्छना उपाश्रयनो वहीवट करनार, .. शा, सांकलचंद भारमल. णदाबरवानाच ... (जिल्लो- काठियावाड) / P.P.AL. Sunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ॥ॐ श्रीजिनेश्वराय नमः॥ ॥ॐ श्रीविधिपक्षगच्छाधिराज-युगप्रधान श्री 1008 श्रीआर्यरक्षितगुरुभ्यो नमः। श्रीविधिपक्षगच्छाचार्य-श्रीमरुतुङ्गसूरिविरचितम् गुर्जरभाषानुवादसमलङ्कृतम् श्रीनाभाकराजचरित्रम् / सौभाग्यारोग्यभाग्योत्तममहिममतिख्यातिकान्तिप्रतिष्ठा. तेजाशौर्योजसम्पदिनयनययशासन्ततिप्रीतिमुख्याः। मावा यस्य प्रभावात् प्रतिपद उदयं यान्ति सर्वे स्वभावात्, श्रीजीरापल्लिराजा स भवतु भगवान पार्श्वदेवो मुदे वः // 1 // भावार्थ-जे प्रभुना माहात्म्यथी सौभाग्य, आरोग्य माग्य, उत्तम महिमा, सद्बुद्धि, प्रसिद्धि, कांति, सुकीर्ति, / तेन, शौर्य, वळ, संपत्ति, विनय, सुनीति, यश, पुत्र-पुत्र्यादि परिवार, प्रीति विगेरे सर्वे पदार्थो निरंतर स्वाभाविक उदय आवे छे, ते श्रीमान् नीरापाल अधिराज पार्श्वनाथ भगवान् तमारा हर्षने माटे याओ. // 1 // - खा. श्री केसामन्यागग्सुरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्रा, कोषा, गांधीनगर - Mission P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ...... श्रीवीरजिनमानम्य, सम्यग् नाभाकभूपतेः। ........... . देवद्रव्याधिकारेऽद-चरितं. कीर्तयिष्यते // 2 // भावार्थ-अभु श्रीमहावीरने सम्यक् प्रकारे नमस्कार करीने, देवद्रव्यना अधिकार उपर श्रीनाभाक- नाभाक राजानुं चरित्र कहीश. // 2 // श्रीनाभाकमरेन्द्रस्य, कथा श्रुतिपथागता।.. चरित्र. विद्येव जांगुली लोभ-विषं हन्ति विवेकिनाम् // 3 // // 2 // भावार्थ-जेम जांगुली मंत्र सर्पना विषनो विनाश करेछे-जांगुली मंत्री सर्पन विष उतरी जाय छे, तेम अयणपथमां आवेली देवद्रव्य परत्वेनी आ नामाकनरेन्द्रनी कथा विवेकी पुरुषोना लोभरूपी विनो विनाश करेछे. // 3 // श्रीनाभाकनृपाख्यान-पानप्रीतमनाः पुमान् / सदा सन्तोषसंतुष्टः, सर्वसम्पत्तिभाग भवेत् // 4 // भावार्थ-जे पुरुष श्रीनाभाकराजानी कथानुं पान करवामां हर्षित चित्तवाळो छ, ते निरंतर संतोष बढे || संतुष्ट थइ सर्व प्रकारनी समृद्धिने भजवावाळो थाय छे-ते पुरुषने सर्व प्रकारनी समृद्धि अनायाचे प्राप्त थाय छे. // 4 // || | / Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र // 3 // ................ - पुरातनमुनिप्रोक्तं पुण नाभाकचरितं चित्री-यते केषां न चेतसि ? // 5 // भावार्थ-प्राचीन महर्षिओए कहेलं, अने धुण्यना अर्थी भव्य प्राणीओने अतीव प्रियकर एवं श्रीनाभाफराजानं पवित्र चरित्र कोना चित्तमां आश्चर्य नथी करतुं ? अर्थात् पवित्र महापुरुष श्रीनामाकराजानुं चरित्र असाधारण अने निर्दोष होवाथी दरेक पुरुषोना चित्तने विषे आश्चर्य उत्पन्न करनारुं छे. // 5 // हवे ग्रन्थकार चरित्रनो आरंभ करे छ... तथाहि- जम्बूद्वीपाभिधे द्वीपे, क्षेत्रे भरतनामके। ... श्रीपार्श्वनाथश्रीनेमिनाथयोरन्तरेऽभवत् // 6 // अनेकश्रीपतिब्रह्म-जिष्णुश्रीदविभूषितम् / / क्षितिप्रतिष्ठित नाम, पुरं स्वपुरजित्वरम् // 7 // भावार्थ-जंबूद्वीप नामना द्वीपने विष भरतक्षेत्रमा श्रीपार्श्वनाथ अने श्रीनेमिनाथ जिनेश्वरने आंतरे क्षितिप्रतिष्ठित. नामर्नु नगर हाँ, जे नगर अनेक श्रीपति, अनेक ब्रह्म; अनेक जिष्णु, अने अनेक श्रीद वडे शोभायमान | होवाथी तेणे स्वर्गपुरने पण जीती लीधुं हतुं / Jun Gun Aaradhal Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वर्गपुरनी अंदर श्रीपति एटले कृष्ण एकज छ, ज्योरे क्षितिप्रतिष्ठितनगरमा श्रीपति एटले साहुकारो तथा राजाओ अनेक हता / स्वर्गपुरनी अंदर ब्रह्म एटले ब्रह्मा एकज छे, ज्यारे आ नगरमां ब्रह्म एटले ब्राह्मणो अनेक रहेता हता / स्वर्गपुरनी अंदर जिष्णु एटले इन्द्र एकज छे, ज्यारें आ नगरनी अंदर जिष्णु-जयनशील एटले विजेता नाभाक मोटा मोटा सामंतो तथा योद्धाओ अनेक हता / स्वर्गपुरमा श्रीद एटले कुबेर एकज छे; ज्यारे आ नगरनी अंदर श्रीद एटले लक्ष्मीनुं दान करनारा दानवीर पुरुषो अनेक हता। आ प्रमाणे दरेक रीतें स्वर्गपुरथी क्षितिमितिष्ठित- चरित्र. नगर चडियातुं इतुं // 6-7 // .. . // 4 // सर्वाङ्गरत्नाभरणाभिभूषितैयदीयभोगीशशतैस्तिरस्कृता / शीर्षस्फुरद्रत्नवरैकमण्डिता, भोगावती युक्तमगाद्रसातलम् // 8 // भावार्थ-जे सितिमतिष्ठित नगरीमा बसता सर्वांगे रत्नोना आभूषणोथी शोभायमान सेंकडो. भोगीशो || Turn.के. सा. || कविओनो संकेत के-स्वर्गपुरनी अंदर कृष्ण, ब्रह्मा, इन्द्र, अने कुबैर रहे / 2 भोगीओने विष शिरोमणि-समर्थ भोगी पुरुषो। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || चरित्र. // 5 // वडे तिरस्कार पामेली भोगावती नारी रसातलमा चाली गइ ते युक्त ज थयु छे. कारण के ते भोगावती नगरी, | मस्तकने विषे स्फुरायमाणं उत्तम शेषमणिवाळा एकज भोगीश वडे शोभती छे, ज्यारे आ नगरीमा अनेक भोगीशो एटले समर्थ भोगीओ रहे छे / वळी भोगावती नगरीमा रहेता भोगीश एटले शेषनागना मस्तकने विषे ज रत्न-मणि | छे, ज्यारे आ नगरीमा वसता सेंकडो भोगीशोने सर्वांगें रत्नोनां आभूषणो छ / आ प्रमाणे क्षितिप्रतिष्ठित नगरीथी | दरेकरीते उतरती भोगावती नगरी लज्जा पाीने रसातलमा चाली गइ छ // 8 // - तत्र श्रीमान् महारूप-निरूपितपुरन्दरः। राजा नामाकनामाऽभूद्, अभूमिः पापताफ्योः // 9 // भावार्थ-तें नगरने विषे समृद्धिमान, पोतानां अलौकिक सौंदर्य वडे दृष्टान्तभूत करेलो छे इन्द्रने जेणे एवो, तथा पाप अने संतापर्नु ३अस्थान नाभाक नामनो राजा इतो // 9 // . . . पुरा कलाकेलिरनङ्गभावं, ... वधूद्धयेनापि जगाम दिव्यन् / भोगावती नामनी सर्पनी नगरी पातालमा छे, अने तेमा संपोनों स्वामी शेषनाग रहे थे, एवो कविसमय छ। 3 भोगी एरले सपो, तेभोनो ईश एटले स्वामी-शेषनाग / 3 दुष्ट कार्यों तथा संताप करतो ज नहीं। Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वधूसहस्रैरपि सैष खेलन अवाप सवाजमेनोहरत्वम् // .19-0... ... ..!:: : | . भावार्थ-पुरातन समयमां, कामदेव बे. स्त्रीओ साथै खेलतो छेतो पण अनंगपणाने पाम्यो हतो, परंतु आ || ना नाभाकराजा तो हजारो स्त्री ओनी साथे क्रीडा करतो छतो पण सर्वांगे मनोहरपणाने पाम्यो हतो / कामदेव रति !! अने प्रीति नामनी चे ज़ स्त्रीओ साथे क्रीडा करवा छतों अनंगपणाने एटले अंगरहितपणाने पाम्यो हतो, पण आ चरित्र. राजा तो हजारो स्त्रीभोनी साये खेलतो हतो छतां पण सर्वांगे मनोहरपणाने पाम्यो हतोः॥ 10 // ..... तमन्यदा मुदासीनं, सभायामेत्य भूपतिम् / सत्मामृतं पुरस्कृत्य, श्रेष्ठी कश्चिनमोऽकरोत् // 11 // भावार्थ-एक दिवसे ते राजा पोतानी सभामा हर्षित चित्ते बेठो हतो, ते. अवसरे कोइक श्रेष्ठीए आवीने राजानी सन्मुख सुंदर भेटणुं मूकी नमस्कार कर्यो // 11 // कस्त्वं कुतः समायातः, कुत्र यासीति भूभृता। पृष्टे स्पष्टमथाचष्ट, श्रेष्ठी राजनिशम्यताम् / / 12 / / || भावार्थ-त्यारे राजाए ते शेठने पूछयु के, तमे कोण छो ? क्यांची आव्या छो ? अने क्यों जाओ छो / / / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jure Gun Aaradhak Trust Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . तेना प्रत्युत्तरमा श्रेष्ठीए स्पष्ट शैते कघु के, हे राजन् ! मारुं समस्तं वृत्तान्त सांभळो // 12 // - श्रेष्ठी धनाड्यनामाऽहं, श्रीवसन्तपुरै वसन्। . श्रीशत्रुजययात्रार्थ, चलितोऽत्रे समागमम् // 13 // . ||नाभाक भावार्थ-हुँ बसंतपुर नगरमां निवास करुं छु, मारुं नाम धनाढ्य शेठ छे, अने श्रीशचुंजय तीर्थनी यात्राथै | जतां अहीं मारूं आवे, थयुं छे // 13 // ..... चरित्र, - कः श्री शत्रुञ्जयस्तत्र, यात्रया किं फलं नृपे। // 7 // पृच्छतीति भाग्यलभ्याः, सभ्याः पौराणिका जगुः // 14 // भावार्थत्यारे, भाग्ययी जैपनी प्राप्ति थइ शके एवा महा धुरंधर सभामा बेठेला पौराणिक पुरुषोंने राजाए | पूछयु के, श्री शत्रुजय तीर्थ कयु ? तथा तेनी यात्राथी | फळ थाय ? ' / ए प्रश्नको उत्तर पौराणिक पुरुषोए राजाने स्पष्टतापूर्वक समजावता कह्यु के- // 14 // .... .... ... .......... ........ श्रीनामिनामा कलकद बभव * PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाभाक. संदल्लभाऽभूद् मरुदेवी तस्याः, कुक्षौ जिनः श्रीवृषभोऽवतीर्णः // 15 // भोवार्थ-पहेली आ भरतक्षेत्रमा इक्ष्वाकुभूमिने विष श्रीनाभि नामनां कुलकर थया, तेमने मरुदेवी नामनी || श्रेष्ठ पत्नी हती. तेमनी कुक्षिमा श्रीऋषभदेव जिनेन्द्रनों जन्म थयो // 15 // असंख्यवर्षाणि न धर्मकर्माऽभिज्ञो जनोऽभूत् समयानुभावात् / प्रकाश्य तन्मार्गयुगं तदत्रा ऽवतीर्य सोऽनीतिपथं लुलोप // 16 // भावार्थ-काळना प्रभावैथी असंख्यवर्षोथी जनसर्मुदाय धर्म अने कृषि-वाणिज्यादि कर्मथी अजाणे हतो. ते सर्वेने प्रभुए आ भरतक्षेत्रमा अवतरीने धार्मिक अनुष्ठान तथा कृषि-वाणिज्य विगेरे व्यवहारिक क्रियाओ बतावीः आ प्रमाणे धर्म अने कर्म ए बन्ने प्रकारना मार्ग समजावी अनीति मार्गनो तद्दन लोप कर्यो.॥१६॥ . आदौ स पाणिग्रहणं विधाय, शतं सुतानां च विभज्य राज्यम् / चरित्र. // 8 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भुक्त्वा सुखं नीतिपथं विधाय, तप्त्वा तपो ज्ञानमनन्तमाप // 17 // भावार्थ-पहेला तेमणे सुनंदा अने सुमंगला नामनी बे कन्याओ साथे विवाह करी, सांसारिक मुख भोगवी, || नाभाक नीतिमार्ग प्रवर्तावी, भरत बाहुबलि विगेरे पोताना सो पुत्रोने जुदु जुदु राज्य बहेंची आपी दीक्षा ग्रहण करी. त्यार || नाव पछी अनेक प्रकारना दुस्सह तप तपी केवलज्ञान // 17 // ततः स धर्म दशोपदिश्य, प्रबोधयन् भारतभव्यसत्त्वान् / .शैले सुराष्ट्राभरणेऽधिरुह्य, कचित् प्रियालुद्रुतलं सिषेव // 18 // भावार्थ-त्यार बाद प्रभु श्रीआदीश्वर क्षमादिक दस प्रकारना धर्मनो उपदेश करीने भारतवर्षना सर्व प्राणीवर्गने प्रतिबोध करता थका सौराष्ट्र ( सौरठ ) देशना आभूषणतुल्य श्रीशत्रुजय पर्वतपर चडीने रायणक्षनी नीचे ध्यानारूढ थया // 18 // Jun Gun Aaradhak Trust PPP.AC.GunratnasuriM.S. . Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ D श्रीपुण्डरीकं गणनायक श्री प्रभुः पुरस्कृत्य तदेत्यवादीत् / . . इदं महातीर्थमनाद्यनन्तं, ......कालेन सङ्कोचविकोचधर्मि // 19 // ......|| नाभांक 'भावार्थ-प्रभुए ते समये श्रीपुंडरीक गणधरनी समक्ष आ प्रमाणे कत्यु के, 'आ महातीर्थ शत्रुजयगिरि अनादि ! चरित्र. अनंत-छे, पण ते कालक्रमे संकोच अने विस्तारने पामेछे // 19 // // 10 // मूले पृथुः सम्पत्ति योजनानि, पञ्चाशदूर्व दश योजनानि / उच्चस्तथाऽष्टाचथं ससहस्तो, भूत्वा पुनः प्राप्स्यति वृद्धिमेवम् // 20 // "भावार्थ-हालमों आ गिरि मूळमां पचास योजन विस्तारवाळो, उपर दस योजन विस्तारवाळो, अने उंचाइयां आठ योजनप्रमाण छे. अने आ अवसर्पिणीमा घटतो घटतो छठा आरामा छेवटे सात हाथप्रमाण || थइ पाझे उत्सर्पिणीमा विस्तारने पामशे // 20 // शत्रुञ्जयश्रीविमलांद्रिसिद्धक्षेत्रेतिनामत्रितयं सदाऽस्य / - - P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A indiatidarnine श्रीपुण्डरीकेत्यभिधा चतुर्थी, 'भविन् ! स्थितेस्तेऽथ भविष्यतीह // 21 // भावार्थ है भव्य पुण्डरीक ! आ गिरिनां शत्रुजय, विमलाचल अने सिद्धक्षेत्र ए प्रमाणे त्रण नाम शाश्वत || नाभाक | थे, अने अत्रे तारो निवास थवाषी श्रीपुंडरीक नामर्नु चोधु नाम प्रसिद्ध यशे // 21 // चरित्रः संसेव्य शत्रुजयशैलमेनमनेनसः स्युननु पापिनोऽपि / . भुवोऽर्नुभावात् किल मृत्तिकापि, पामोति सर्वोत्तमरत्नभावम् // 22 // ... भावार्थ-आ शत्रुजयगिरिनु सेवन करवायी पापी पुरुषो पण पाप रहित थाय छ, खरेखर आ पवित्र तीर्थ-|| भूमिना प्रभावी माटी पण सर्वोत्तम रत्नपणाने प्राप्त करे छ // 22 // ये शुद्धभावेन निभालयन्ति, भव्या महातीर्थमिदं कदाचित् / / .. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MAHAJAN किं श्वभ्रतियग्भवसंभवः स्याद ?, न शेषगत्योरपि जन्म तेषाम् // 23 // भावार्थ-जे भव्यपाणीओ आ तीर्थ कोइ पण समये निर्मळभावपूर्वक नेत्रथी दर्शन मात्र करे छे, तेओने || नाभाके देवगति तथा मनुष्यंगतिमा पण जन्म लेवो पडतो नथी, तो पंछी नरंक अने तिर्यंचगतिनो तो संभव ज क्याथी होय ? / अर्थात् आ पवित्र तीर्थनुं भावपूर्वक दर्शन करनारा भाग्यशाली भव्य प्राणीओने चार मतिमा जन्म-मर- || चरित्र णनी विडंबना भोगवनी पडती नथी, तेओ अनंत सुखमय मोक्षमा जाय छे / / 23 // // 12 // श्रीमयुगादीशमुखाद् मुनीन्द्रास्तत् तन्महातीर्थफलं निशम्य / श्रीपुण्डरीकप्रमुखा निषेव्य, तत्तीर्थमापुः समयेऽपवर्गम् // 24 // भावार्थ-आ प्रमाणे श्रीमान् युगादि प्रभुना मुखथी पुंडरीक गणधर विगेरे मुनीन्द्रोए ते महातीर्थनो प्रभाव || || तथा तेनी सेवाथी मळता फळने सांभळी, ते शत्रुजय तीर्थचं सेवन करी, पोतपोताने समये मोक्ष पाम्या // 24 / / / . ' . PP.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रासे शिवं श्रीऋषभे सुतोऽस्य, शत्रुञ्जये श्रीभरताख्यचक्री। अतिष्ठिपद् रत्नमयीं सुवर्ण-पासामध्ये प्रतिमा तदीयाम् // 25 // ना. भावार्थ-श्रीऋषभदेव प्रभु मोक्ष गया बाद तेमना पुत्र श्रीभरतचक्रवर्तीए शत्रुजय तीर्थ उपर मुवर्णमा| सादमां ते प्रभुनी रत्नमय प्रतिमा स्थापन करी // 25 // योऽस्य नाम हृदि साधु वावदिः, क्लेशलेंशमपि नो स सासहिः। // 13 // __ योऽस्य वर्त्मनि मुदैव चाचलिः, संसृतौ न स कदापि पापतिः // 26 // भावार्थ-जे पुरुष पोताना हृदयमा सम्यक् प्रकारे श्रीशत्रुजय तीर्थनुं स्मरण करे छे, तेने लेशमात्र पण दुःख सहन करवू पडतुं नथी, तेमज जे पुरुष आ तार्थना मार्गमा प्रफुल्लित चित्तयुक्त थइ गमन करे छे, ते कदापि संसारपा पडतो नथी-तेने संसारमा भ्रमण करवू पडतुं नथी. // 26 // नाऽतः परं तीर्थमिहास्ति किञ्चिद्, नातः परं वन्धभिहास्ति किञ्चित्। नातः परं पूज्यमिहास्ति किञ्चिद, नातः परं ध्येयमिहास्ति किंचित् / / 27 // भावार्थ-आ तीर्थथी बीजु कोइ महान् तीर्थ नथी, आ तीर्थयी बीजुं कोइ पण अधिक वन्दनीय नयी, आ // तापी बीजु कोइ पण विशेष पूजनीय नथी, अने आतीर्थयी बीजु कोइ पण उत्कृष्ट ध्येय-ध्यान करना योग्य नयी // 27 // PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इंदमेवोक्तमन्यग्रन्थेष्वपि पश्चाशदादौ किल भूलभूमे-दशोर्श्वभूमेरपि विस्तरोऽस्य / . उच्चत्वमष्टैव तु योजनानि, मानं वदन्तीह जिनेश्वराद्रेः // 28 // भावार्थ--पवित्रतीर्थ श्रीशचुंजयना परिमाणं विषयमा अन्यग्रन्थोने विषे पणं आ प्रमाणे उल्लेख ... .. * श्रीऋषभदेव प्रभुना निवासाळय आ गिरिंनो आदिनाथ प्रभुनी वखते मूलभूमिनो विस्तार पंचास योजन, ऊर्ध्व१४||| भूमिनो विस्तार दस योजन; अने आ गिरिनी उंचाइ आंठ योजन हती. भागवते- दृष्ट्वा शत्रुक्षयं तीर्थ, स्पृष्ट्वा रैवतकाचलम् / ___ स्नात्वा गजपदे कुण्डे, पुनर्जन्म न विद्यते // 29 // भावार्थ-भागवतमां पण कधु छ के-जे मनुष्य श्रीशत्रुजयगिरिनुं दर्शन करे छे, गिरनार पर्वतनो स्पर्श करें || छे, अने गजपद कुंडमां स्नान करे छे तेने फरीथी जन्म लेवो पडतो नी // 29 // . नागपुराणे- अष्टषष्टिषु तीर्थेषु, यात्रया यत् फलं भवेत् / - श्रीशत्रुजयतर्थेिश-दर्शनादपि तत्फलम् // 30 // P.AC. माया--नागपुराणमा कयुं छे के-अडसठ तीर्थोने विषे यात्रा करवायी जे फळ भाप्त याय, तेटलं फळ || Jun Gun Aaradhak Trust Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 मात्र एक तीर्थाधिपति श्रीशत्रुजयतीर्थनां दर्शन करवायी प्राप्त थाय छे. // 30 // तीर्थमालास्तवे- अतो.धराधीश्वर ! भारती भुवं, तथाऽधिगम्योसममानुषं भवम् / - युगादिदेवस्य विशिष्टयात्रया, विवेकिना ग्राह्यमिदं फलं श्रियाः॥३१॥ भावार्थ-तीर्थयाला स्तवमा पण क{ छे के–माटे हे भूपति ! आ भारतभूमि तेमज उत्तम मनुश्यजन्म पामीने, युगादिदेव श्रीआदिनाथनी विशिष्ट प्रकारनी यात्रा करीने विवेकी पुरुषोए पोताने प्राप्त थयेली लक्ष्मीचं फळ || ग्रहण करवु.॥३१॥ एवं श्रुत्वा नरेशोऽपि, तीर्थमाहात्म्यमद्भुतम् / विसृज्य श्रेष्ठिनं यात्रा-निमित्तं लग्नप्रग्रहीत् // 32 // भावार्थ-आ प्रमाणे श्रीशQजय तीर्थनो अद्भुत प्रभाव सांभळीने नाभाक राजाए ते धनान्य शेठने विसर्जन करी, श्रीशQजय तीर्थनी यात्राने माठे उत्तम लग्न-मुहूर्त जोवडाव्यु.॥ 32 // लगक्षणे व्यतिक्रान्ते, ब्रह्महारव्यथावशात् / पश्चात्तापं द्घद् भूपो, द्वितीयं लग्नमग्रहीत् / / 33 // भावार्य--पण ज्यारे मुहूर्तनो दिवस आव्यो त्यारे कर्मयोगे मस्तका माद्वारने विषे असह्य पीडा थवाथी || P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // AT || माथी जह शकायुं नहीं, तेथी पश्चात्ताप करता राजाए ज्योतिषी पासे बीजुं मुहूर्त कढाव्यु // 33 // आकस्मिकसमुद्भूत-ज्येष्ठपुत्रव्यथावशात् / तस्मिन्नपि गते लग्ने, तृतीयं लग्नमादे // 34 // भावार्थ-ते बीजी वखते जोवडावेला मुहूर्तनो दिवस आवतां पोताना मोटा पुत्रने अकस्मात् व्यया उत्पन्न बवायी ते बीजं मुहूर्त पण गपुं. त्यारे राजाए ज्योतिषी भो पासे त्रीजुं मुहूर्त कढाव्यु. // 34 // 16 पट्टदेवीमहाकष्टा-जातस्तस्याऽप्यतिक्रमः।। स्वचक्रशङ्कया लग्न-मत्यगात् तुर्यमप्यथ // 35 // भावार्थ-ते त्रीजी वखत जोवडावेला मुहूर्तनो दिवस आवतां पोतानी पटराणीने अकस्मात् महाव्याषि उत्पन्न वाथी ते दिवसे पण राजा नीकळी शक्यो नहीं. त्यारे फरीथी चोथी वखत नाभाक राजाए महतं जोवडाव्यं, पण ते महतं आवतां पोताना सैन्यमा तथा देशमा बखेडो जागवानी शंकाथी ते वखते पण राजा श्रीशत्रुजय वीर्थनी यात्रा करवा माटे नीकळी शक्यो नहीं, अने चो\ मुहूर्त पण व्यतीत थइ गयुं // 35 // .. अहो ! पापी ममात्मेपि, निन्दन स्वं पश्चमं नृपः। शुहूर्तमाददे तच, परचक्रभयाद् गतम् // 16 // PP.Ac. Gunratnasuri M.s. Jun Gun Aaradhak Trust Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना. भावार्थ-या प्रमाणे श्रीशत्रुजय तीर्थनी यात्रा निमित्त जोवडीवेला चारे मुहूर्तो निष्फळ जवाथी, 'अरे ! | मारो आत्मा महा पापी छे के जेयी पवित्रतीर्थ श्रीशबुजयनी यात्रा करवा जतां आवी रीते विघ्नो आव्या ज करे छे' ए प्रमाणे पोताना आत्मानी निंदा करता थका राजाए पांचमुं मुहूर्त कढाव्यु.पण कर्पसंयोगे ते मुहूर्त पण पोताना || देश उपर. वीजा राजाओना सैन्यो चडी आववाना भयथी बीती गयु // 36 // एवं भूपो व्यतिक्रान्ते, यात्राया लग्नपञ्चके। हेतुमस्य कथं ज्ञास्या-मीति चिन्तातुरोऽभवत् // 37 // भावार्थ--आ प्रमाणे श्रीअर्बुजय तीर्थनी यात्रा करवा माटे ज्योतिषीओ पासे कढावेला पांचे मुहूर्ती व्यवीत थबाकी 'आवो राते विघ्नो आववानुं कारण हुं केवी रीते जाणीश ?' ए प्रमाणे राजा चिंतातुर ययो. // 37 // तावतोचानमायाताः, श्रीयुगन्धरसूरयः। ................ इति विज्ञपयास, भूपालं वनपालकः // 38 // - - भावार्थ-एव विचार करे छे, तेटलामां वनपालकै आवी राजाने वधामी आपी के उद्यानमा श्रीयुगंधर || सूरि समवसर्वा छे. // 38 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ... 1 ततो गतो वनं राजा, चतुर्ज्ञाननिधीन गुरुन् / ज्ञात्वा नत्वाऽन्तरायाणां, हेतून् पप्रच्छ भक्तिभाक् // 39 // भावार्थ--त्यार बाद राजा पोताना कुटुंब परिवार सहित अत्यंत भक्तिवडे उल्लसित चित्तवान् थइ उद्यानमा गयो, त्यां जइ गुरुमहाराजने विधिपूर्वक चंदन करी तेमने चार ज्ञानना निधि जाणी पोताना अंतराय कारण पूछयु.॥ 39 // ................................ ---- || . गुरको मनसा सीम-न्धरस्वामिजिनं ततः। नत्वाऽमाक्षुरथ स्वाम्य-प्यूचे तन्मनसाऽखिलम् // 41 // भावार्थ-त्यार पछी शुरुमहाराजे मन वडे श्रीसीमंधर जिनेन्द्रने नमीने पूछयुं, त्यारे श्रीसीमंधरस्वामीए मनयी पसर्व वृधान्त निषेदन को. // 40 // मनापर्यायतो ज्ञानात्, श्रीयुगन्धरसूरयः। . सम्यग् विज्ञाय वृत्तान्तं, तं जगुर्भूपतिं प्रति // 41 // || भावार्थ- श्रीयुगन्धराचार्य मनःपर्यायज्ञानथी सर्व वृत्तान्त सम्यक प्रकारे जाणीने राजाने जणाव्यु के-॥४१॥ // 'P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजन् ! सुखेषु दुःखेषु, मुख्य कमेव कारणम् / ......तच्चार्जितं त्वया पूर्वे, यथा मूलात् तथा शृणु // 42 // भावार्थ-हे राजन् ! सुख अने दुःख ए बने प्रसंगोमा दरेक प्राणीने मुख्य कारण कर्मज छे. अने ते, कर्म पूर्वभवमा ते जे उपार्जन कर्यु ले ते बीना तुं अथथी इति पर्यंत सांभळ. // 42 // ना. - 19 ___. नामाकराजाना पूर्वभवतुं वृत्तान्त... " एकोनविंशत्यम्भोधि-कोटाकोटिप्रमाणतः। . कालात् परमतीतायां, चतुःसंयुतविंशतो / / 43 // ... जम्बुद्धीपस्य भरते, सम्प्रतिस्वामिवारके। उपाम्भोधि तामलिप्सी-नगर्या भ्रातरावुभौ // 55 // समुद्र-सिंहौ ज्यष्ठस्तु, निर्मला पुण्यवानृजः। विपर्यस्तः कनिष्ठश्च, बदरीकण्टकाविव / / 45 // Ke. Cinrainasuri M.s:, .... .... त्रिभिर्विशेषकम् // sin Gun Aaradhak Trust June Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 120 भावार्थ-ओगणीश कोडाकोडी सागरोपम काल पहेला, अतीतचोवीशीमां जम्बूद्वीपना भरतक्षेत्रने विषे 'संप्रतिस्वामी नामना तीर्थकरना चारामां, समुद्रतट समीपे तामलिप्ती नगरीमां समुद्र अने सिंह नामना बे भाइ रहेता हता. तेओमां मोटो भाइ समुद्र निर्मळ चरित्रवाळी पुण्यवान् अने सरलहृदयी इतो, पण नानो भाइ दुष्ट आचरणवाळो महापापी अने ऋरहृदयी इतो. जेम बोरडीना कांटाओ पैकी कोई वक्र अने कोइ सीधो होय छे, तेप आ वो भाइओमा मोटो भाइ सरल हतो, अने नानो भाइ वक्र हतो.॥४३-४४-४५॥ भुर्व खनद्भ्यां ताभ्यां स्व-गृहे स्थूणार्थमन्यदा / चतुर्विंशतिदीनार-सहस्रनिधिराज्यत // 46 // भावार्थ-ते बनेए एक दिवस पोताना घरनी अंदर यांमलो नाखवा माटे पृथ्वी खोदता चोवीस हजार. सोनामहोरयी भरेको निधि प्राप्त कर्यो॥ 46 // ... देवद्रव्यमिदं नाग-गोष्ठिकेन निधीकृतम् / इत्युक्तिगर्भ पत्रं च, ज्येष्ठो दृष्ट्वेत्यभाषत // 47 // भावार्थ-तथा तेनी साये एक पत्र नीकळ्यो. तेमां एवा भावार्थ- लख्यु हतुं के-'आ देवद्रव्य नाग१.अतीत चोवर्शािमा चोवीशमा तीर्थकर / . - - ...RPAC: Sunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 नामना कुटुंबीए निधि तरीके दाटयु छ.' आ प्रमाणे लखेलो पत्र वांचीने ज्येष्ठ भ्राता समुद्रे पोतानों अभिपाय जाहेर || कों के-॥४७॥ गत्वा शत्रुञ्जये नाग-श्रेयसे दीयते यदः / श्रुत्वेति जायया नुन्नः, कनीयानित्यवोचत // 48 // ___ भावार्थ-'शत्रुजयमा जइने नागगोष्ठिकना पुण्यने माटे आ नीकळेळ देवद्रव्य आपीए'। ए प्रमाणे मोटा भाइर्नु वचन सांभळी पोतानी स्त्रीयी प्रेरायेलो नानो भाइ सिंह बोल्यो के-॥४८॥ कन्या वराही जाताऽसौ, परं नोंदाहिता पुरा।। धनं विनाऽथ तत्मासौ, सोत्सवेन विवाह्यते // 49 // .. .. भावार्थ- 'आ कन्या परने योग्य थई ले, परंतु अत्यार सुधी धन विना तेनुं लग्न कर्यु नथी, पण हवे || धननी प्राप्ति यवाथी तेनो महोत्सवपूर्वक विवाह करीए' / / 49 // दध्यौ समुद्रः श्रत्वेति, स्वभावाद दृष्टधीरसौ। भार्यया प्रेरितो जातो, वात्येरितकृशानुवत् // 50 // || भावार्थ-आवु नाना भाइर्नु अयोग्य कथन सांभळी समुद्रे विचार कर्यो के-आ स्वभावयीन दुष्ठ अदिवाळी // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. . . || छे, अने हमणां वली स्त्रीनी प्रेरणाथी जेम पवनना सुसवाटयी अग्निनी सद्धि थाय तेम आनी पण दुष्टबुद्धि अधिक || वृद्धि पामी छे. खरेखर दुनियामां स्त्रीओए'महान् महर्षिओने पण पोताना ममोहर तीव्र कटाक्ष तेमज वाग्बाणोथी | पोताने वश करी कीषा छे, तो पछी आना जेवो एक सामान्य मनुष्य तेनी आगळ शुं करी शके 1 // 50 // सुवंशजोऽप्यकृत्यानि, कुरुते प्रेरितः स्त्रिया। स्नेहलं दधि मथ्नाति, पश्य मन्थानको न किम् ? // 51 // भावार्थ-उच्च कुळमां जन्म पापेल पुरुष पण स्त्री वडे प्रेरायेलो नहिं आचरवा योग्य अकृत्यनु आचरण करे !" छे, कारण के, सुवंशथी थयेलो-सारा वासथी बनेलो रवैयो स्त्री वडे प्रेरायेलो छतो शुं स्नेहवाळा-चिकाशदार दहीजें मथन करतो नथी ? अर्थात् करेज छे. // 51 // देवद्रव्योपभोगेन, घोरां यास्यति दुर्गतिम् / ततो बन्धुरयं बन्धु-रया बोध्यो गिरा मया // 52 // भावार्थ-आ मारो भाइ जो स्त्रीना कथन मुजब देवद्रव्यनो उपभोग करशे, तो अत्यंत भयंकर नरकादि दुतियां जशे, माटे आने मारे मृदु अने श्रेष्ट वाणीथी प्रतिबोध करवो जोइए. // 52 // Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निश्चित्येत्यवद् भ्रातः !, पातकात् श्वभपातुकात् / / न कि बिभेषि यद्देव-द्रव्यभोगमपच्छिसि ? // 53 // .. बार एम निश्चय करीने नाना भाइने कह्यु के-बन्धु / नरकादि भयंकर गतिमां पाडनार पापथी | तुं डरतो नथी? के जेथी देवद्रव्यना पण उपभोगनी इच्छा करे छे. // 53 // देवद्रव्येण यत्सौख्यं, यत्सौख्यं परदारतः। __'अनन्तानन्तदुःखाय, तत्सौख्यं जायते ध्रुवम् // 54 // भावार्थ-जे मनुष्य देवगव्यना उपभोग वडे तेमज परस्त्री सेबन द्वारा जे मननुं मानी लीधेल मुख मेळवे छे, || ते मुख निःशंक अनंतानंत दुःख प्राप्त करावनार थाय छे. // 54 // जैन सिदान्तमा पण कयुं छे के-- "चेइयव्वविणासे, रिसिघाए पवयणस्स उड्डाहे / - संजइयचउत्थभंगे, मूलग्गी बोहिलाभस्स" // 55 // 'भावार्थ--चैत्यना द्रव्यनो विनाश करवाथी, ऋषिनो घात करवायी, शास्त्र विरुद्ध प्ररूपणा करवायी, तेमज | संपतिना चतुर्थव्रतनो भंग करवायी, सम्यक्त्वना मूलमांज अग्नि पडे छ; अर्थात् सम्यक्त्व नाश पामे ले // 55 // - P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना. ... . वरं सेवा वर दास्य, वरं भिक्षा वर मृतिः।.... .. निदानं दीर्घदुःखाना, न तु देवस्वभक्षणम् // 56 // भावार्थ-कोइनी सेवा करी आजीविका चलाववी श्रेष्ठ छ, चाकर थइने रहेवू सारं छे, भीक्षा मागी उदर पोषण कर उत्तम छे, अने छेवटे भूख्या मरी जवू पडे तो ते पण व्हेतर छे; पण सर्व प्रकारनां दुःखोनुं कारण देवद्रव्यनुं भक्षण करवू ते बीलकुल ठीक नथी. // 56 // 24 . . भ्रातुरित्युपदेशेन, मौनी सिंहस्तदोत्थितः। . ... एकान्ते भार्ययाऽभाणि, हा ! मोरध्याद बंच्यसे कथम् // 7 // कपोलकल्पितैर्यदा, को नाम न हि बंच्यते। परं यथा तथा सर्व-मध वाऽऽदत्स्व तन्निधिम् // 58 // भावार्थ--आ प्रमाणे भाइनो उपदेश सांभळी यौन रहेलो सिंह त्यांथी उठ्यो, तेने एकतिमा तेनी पत्नीए कई के-"तमे भोळपणथी कम उमाओ छो ? अथवा कपोलकल्पित वातोथी कयो पुरुष न ठगाय ? परंतु जेम तेम करीने // सर्व निधि आपणे ताबे करो, अथवा संपूर्ण निधि न आपे तो, छेवटे अरधुं धन पण तमे ग्रहण करो"॥५७-५८॥ . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवं भार्येरितः सिंहो, लङ्घनत्रितयं व्यधात्। अहं पृथग् भविष्यामी-त्युवाच स्वजनानपि // 59 // भावार्थ-ए प्रमाणे भार्याना समजाववायी प्रेरायेला सिंहे त्रण दिवस लांघण करी, अने पोताना सगांना|| संबंधीओने कयु के, हुं जुदो थइश // 59 / / तेषां बलेन वेश्मा, निधानाधं च सोऽग्रहीत् / / 25|| समुद्रस्तु ततः शत्रु-जययात्राचिकीरभूत् // 60 // भावार्थ-सगां-संबंधीओनी लागवग पहोंचाडी तेओना बळ वडे सिंह समुद्र पासेथी घर अने निधान अरघो भाग ग्रहण कर्यो. त्यार पछी समुद्रे श्रीशत्रुजयतीर्थनी यात्रा करवानो अभिलाष कर्यो. // 6 // निधानार्थ व्यये तीर्थे, नागपुण्यार्थमित्यसौ। यावच्चलति सिंहेन, तावद्राज्ञे निवेदितम् / / 61 // लेभे निधानं मात्रा, यात्राव्याजादसौ ततः। तदादाय व्रजन्नस्ति, न दोषोऽथ मनाग मम // 62 // || भावार्थ-'श्री शत्रुजय तीर्थमा जइ, आ बाकी रहेला निधानांना द्रव्यनो नागश्रेष्ठीना पुण्यने माटे व्यय करवो, SRUIRasacreadiation मा. प्रांतीजनं. अजीत सागरजी गणी शाट प्रसिद्ध वक्ता पंन्यासजी Site: - PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना. || छ' एमे विचार करी समुद्र तीर्थयात्रा करवा माटे चालवानी तैयारी करतो हतो; तेवामा सिंहे ते नगरना राजांनी आगळ जइने निवेदन कयु के-'मारा मोटा भाइ समुद्रे दाटेलुं निधान मेळव्युं छे, ते निधानने लइने तीर्थयात्रा, बहान करी अहींथी हमणांज जाय छे में मारी फरज समजी आपने जाहेर कयु छे, हवे कदाच निधान लइने चाल्यो जाय तो तेमा मारो दोष नथी / 61-62 // __ मुहूर्तक्षण एवाऽथ, राज्ञाऽऽहूय नियन्त्रितः। / 26 समुद्रः कारणं ज्ञात्वा, निधानाध पुरोऽमुचत् // 63 // .. भावार्थ-सिंहना भंभेरवाथी कुपित थयेला राजाए समुद्रने मुहूर्त क्षणमांज बोलावी नियंत्रित कर्यो / पोताने अकस्मात् नियंत्रित करवानुं कारण जाणीने समुद्रे अर्धनिधान राजानी आगळ मूक्युः // 63 // सर्व स्वरूपं चावेद्य, निधिपत्रमदर्शयत् / यथावस्थितवक्तति, समुद्रं मुमुचे नृपः // 64 // भावार्थ-तेमज निधान नीकळवा बाबतनी सर्व वात राजाने कहीने भूमिमांयी नीकळेल निधिपत्र बतान्यो। सत्यवादी समुद्रना वचन उपर राजाने संपूर्ण विश्वास बेठो, अने आ सत्य बोलनार छे एष धारीने छोड़ी मूक्यो // 64 // Jun Gun Aaradhak Trust Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना. .. . देवद्रव्यं च तज्ज्ञात्वा. प्रत्यर्थन्यायधर्मविता. ... .. समुद्र बहु सत्कृत्य, यात्रार्थ व्यसृजन्नृपः / / 65 // ............. भावार्थ-तथा 'ओ देवेद्रव्य छे' एम जाजी श्रेष्ठनीति पाऊँनार अने धर्मनो ज्ञाता एवाराजाए समुद्रनो घणोज सत्कार करीने तीर्थयात्रा माटे विसर्जन कर्यो // 65 // . . अथ द्विगुणितोत्साहिः, समुद्रः स्वकुटुम्बयुक् / 127 मुहूर्तान्तरमादाय, यात्रार्थ प्रास्थित द्रुतम् / / 66 // भावार्थ--आ प्रमाणे राजानुं सन्मान पामवाथी चपणो उत्साहित थयेला समुद्रे निमित्तिया पासे बीजुं उत्तम || मुहूर्त कढावी पोताना कुटुंच सहित यात्राने माटे शीघ्र प्रयाण कयु // 66 / / चतुर्भिोजनैराक्, श्रीशत्रुञ्जयतीर्थतः / यावद् भुङ्क्ते सरस्तीरे, श्रीकाश्चनपुरे पुरे // 67 // तत्राऽपुत्रे मृते भूपे, तावद् मन्त्राऽधिवासितः / 'आगत्य पञ्चभिर्दिव्य, राज्यं तस्मै ददे मुदा // 68 // युग्मम्।। भावार्थ-श्रीशत्रुजय तीर्थथी चार योजन दूर श्रीकांचनपुर नामना नॅगस्नी नजीकना सरोवरने कोठे है. Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %3 वामी भोजन करे छ तेबामा, ते नगरमा पुत्र रहित राजा मरण पामवाथी मंत्र वडे अधिवासित ययेला पाँच || दिव्योर त्यां आवी ने हर्षसहित राज्य अर्पण कर्यु // 67-68 n गजारूढः सितच्छत्र-शाली चामरवीजितः। अन्वीयमानः पूर्लोकः, स्तूयमानः कवीश्वरैः॥ 69 // 'चतुरङ्गचमूचार-विचित्राऽखिलसत्पथः / राज्यतूर्यध्वानपूर्य-माणब्रह्माण्डमण्डपः // 7 // विलसत्तोरणं प्रोच्चपताकं प्रेक्ष्यनाटकम् / वर्णाम्नासिक्तभूपठि--व्यक्तस्वस्तिकसङ्कुलम् // 71 / / विचित्रोल्लोचसम्पूर्णी-ऽऽपणश्रेणिविराजितम्। समुद्रपालभूपालः, सोत्सवं प्राविशत् पुरम् // 72 // चतुर्भिः कलापकम् / भावार्थ-तदनंतर श्रेष्ठ हस्तीपर आरुढ थयेक, श्वेत छत्रे करीने शोभायमान, चामरो वढे वीजाता, जैनी पाछळ नगरना प्रतिष्ठित लोको चाली रहेला के, कवीश्वरो बडे स्तुति कराता, // 69 // चतुरंगी सेनानी मंद मंद / / मनोहर गतिथी विचित्र करेलो के समग्र सुंदर मार्ग जण, अने राज्यना बाजीमोना मधुरा निर्घोषयी पूरी दीधो के ब्रह्मांड- || HIMIRIDEO SAMUNDRENDS PP.AC Gunratnasuri M.S. . . Jun Gun Aaradhak Trust Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रूपी मंडप जेणे एवा समुद्रपाल राजाए // 70 // विविध रंगना नोरणोए करी रमणीय, गगन मंडलमा फरकी रहेली उच्च पताकाओ युक्त, दर्शनीय मनोहर नाटको सहित, अनेक रंगना सुगंधी जलथी सिंचाती पृथ्वीपीठिका उपर स्पष्ट जणाता साथींयाओथी व्याप्त // 71 // जेनी अंदर रंगबेरंगी विविध प्रकारना किंमती चंदरवा लंगाची दीपों छे एवी मालथी भरपूर बनेली दुकानोनी पंक्तिथी शोभी रहेल श्रीकांचनपुर नगरमा प्रवेश कर्यो // 69 थी. 72 // " राज्यकार्याणि कृत्वाऽह-त्रितयेन स सैन्ययुक्। . या महत्याऽध्यारोहत्, श्रीशत्रुञ्जयपर्वतम् // 73 // .............. भावार्थ-त्रण दिवसा तमाम राज्यकार्य आटोपी, से. समुद्रपाल राजा पोताना सैन्ययुक्त मोटी ऋद्धि सहित तीर्थाषिराज श्रीशत्रुञ्जय पर्वतपर चच्यो // 73 // स्नानादिसप्तदशभि-भैंर्दै सिद्धान्तभाषितैः।। स तत्र सूत्रयामास, पूजामादिजिनेशितुः // 74 // भावार्थ-ते पर्वत उपर विराजमान प्रभुश्री आदीश्वर जिनेन्द्रनी सिद्धांतमा प्ररूपेली स्नात्र विगैरे सत्तरभेदे || पूजा करी // 74 / . / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना.॥ च. महापूजा-ध्वजारोपा-दिषु कृत्येष्वसौ तथा। - ददौ दानं यथा श्यामो, जज्ञे मेघोऽपि लज्जया // 75 // .. भावार्थ-समुद्रपाल राजाए से शत्रुजयगिरि उपर महापूजाओ ध्वजारोपण विगेरे पवित्र कार्यामां एटलं तो पुष्कळ दान आप्युं के जे दान जोइने दृष्टिदान करतो मेघ पण लज्जा वडे श्याम थइ ययो, अर्थात् अखूट वृष्टिदान करतो मेघ पण आ राजाना दाम आगळ पोताने तुच्छ मानतो थको लज्जा पामी श्याम थह गयो॥७५॥ 30 विधायाऽष्टाह्निकां नाग-नामग्राहं जगत्पतेः।। पूजा द्रागादिसत्कृत्यैः, स निधानार्धभव्ययत् // 76 // भावार्थ-नागभेष्टीनं नाम ग्रहण करी श्रीजिनेन्द्रनो आठ दिवस असार महोत्सव करी. प्रजा धान निगरे मुकत्यो करवामां ते नागश्रेष्ठीना निधाननो बचेलो अरधो भाग समुद्रपाल राजाए चापों // 76 // सिद्धक्षेत्रादयोत्तीर्य, स्वपुरं प्राविशन्नृपः। . को राज्याऽसहिष्णुत्वाद्, वाणिजो दुष्टपार्थिवैः // 77 // "भावार्थ-हवे समुद्रपाल सिद्धक्षेत्रथी उतरीने जेवामा पोताना नगरमा प्रवेश करतो हतो, तैवामा ते वैश्य || होवापी तेने मळेला राज्यने सहन नहीं करनारा आसपासना ईलि दुष्ट राजाओए घेरी लीधो // 77 // P. Ac. Gunratnasur MS Jun Gun Aaradhak Trust Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. ला. // 31 // मिथः भन्नां वीक्ष्य निजां चमूम् / श्रीसमुद्रनृपो यावत्, किंकर्तव्यजडोऽजनि // 78 // भावार्थ-परस्सर बचे सैन्यनुं युद्ध प्रवयु, पण छेक्टमां दुश्मनोना पराक्रमथी पोतानी सेनाने वीसराह गयेळी जोइ समुद्रपाल राजा 'हवे झंकरवू ?" ए प्रमाणे जेटलामी विचारवमळमां गुंचकायो // 78 // तावनिबिडबन्धेन, निवान् योजिताञ्जलीन् / पादाग्रे लुठतो वीक्ष्य, रक्ष रक्षेति.जल्पतः // 79 // भावार्थ-तेटकामां मजबूत बंधनोथी बंधाएला अने बे हाथ जोडी पयाँ भाळोटता शत्रुराजाओने पोतानी सन्मुख रक्षण करो रक्षण कसे ए प्रमाणे बोलता जोइने // 79 // विवेषिभूपतीन् सर्वान् , प्रोन्मुच्य निजपूरुषैः। अहो! किमिति साश्चर्यो- पृच्छत्तानेव भूपतीन् // 8 // भावार्थ-पोताना उपर देष करनार अने युद्ध करनार ते सर्व शत्रुराजाओने पोताना माणसो द्वारा छोटाचीने 'अहो.! आ { आचर्य वन्यु ए प्रमाणे ते राजाओने पूछयुं / / 80 // // - P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / ते प्रोचुर्नाऽपरं विद्यो, विशेषं किन्तु सगरे / . अवध्यामहि दुर्बुद्धया, युध्यमानाः स्वयं वयम् // 81 // ........ भावार्थ-त्यारे सर्व राजाओए प्रत्युत्तर आप्यो के–अमे आम बनवार्नु बाजु तो काइ विशेष कारण जाणता नधी, परंतु दुष्टबुरिथी युद्ध करता अमे रणांगणमा स्वयमेव बंधाइ गया छीए // 81 // परं भवत्प्रसादेन, च्छुटिता नात्र संशयः। (32 // . . अतः स्वसेवकान् यावज्जीवं स्वीकुरु नोऽधुना // 82 // .... भावार्थ-परंतु हे राजन् ! आपनीज कृपादृष्टिथी अमे छुट्या छीए, एमां संचय नथी. माटे हवे आप अौ || सर्वने जीवंत पर्यंत पोताना संवकपणे स्वीकारो // 82 // ... .. इत्युत्तवा सेवकीभूत-स्तैरेवाऽसौ परिवृतः। .. स्वपुरं प्राविशत् प्राज्य--प्रवेशोत्सवपूर्वकम् / / 83 // ... भावार्थ-आवी रीते. सेवक तरीके पोताने वश थयेल सर्व राजाओथी परिवरेल ते समुद्रपाल राजाए मोटा ! उत्सवयुक्त पोताना नगरमा प्रवेश कयों // 83 // . . PP A. Gunratniasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभ्यान सभायामाभाष्य, विसृज्य च नृपानसौ। सौधान्तः पूजयन् देवान्, ददर्श व्यन्तरं पुरः // 84 / / भावार्थ--त्यार वाद कचेरीमा सभ्यो साथै केटलीक वातचीत करी, राजाओने सन्मानपूर्वक विसर्जन करी, पोताना गृहमंदिरमां देवोने पूजे छ तेवामां पोतानी सन्मुख एक व्यंतर जोयो / / 84 / / पृष्टः कस्त्वमिति क्षोणि-भृता स व्यन्तरोऽवदत् / , तामलिप्त्यामहं नाग-नामा प्राग गोष्ठिकोऽभवम् / / 85 // . भावार्थ-समुद्रपाल राजाए पूछयु के–'तुं कोण छे ?" / त्यारे ते व्यंतरदेवे कह्यु के-हुं तामलिप्ति नगरीमां प्रथम नाग नामनो गोष्ठिक हतो / / 85 // पूर्वजैः कारिते चैत्ये, सारां विदधतो मम / . . कुटुम्बं सकलं क्षीणं, देवस्वेनैव पोषितम् / 86 // . भावार्थ-मारा पूर्वजोए बंधावेला जिनमंदिरनी सार संभाळ करतां देवद्रव्यथीज पोषण पामेलं माझं सपळ / || कुटुंब नाश पायु // 86 // . . .... PP.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना. देवद्रव्योपभोगेन, कुटुम्बस्य क्षयो भवेत् / नैमित्तिकादिति श्रुत्वा, भीतः कर्म तदत्यजम् // 87 // . भावार्थ-हवे कोइक समये निमित्तियाना मुखथी सांभळ्यु के- 'देवद्रव्यनो उपभोग करवाथी कुटुंबनो नाश याय छे' आ प्रमाणे सांभळी हूं डर पाम्यो, अने तेथी में ते कार्य-देवद्रव्यनो उपभोग करवो छोडी दीधो. // 8 // चतुर्विशतिदीनार-सहस्री यान्तिकेऽभवत् / // 34 // देवसत्काऽवशिष्टा सा, क्षितो क्षिसाऽथ पत्रयुक् // 88 // ... भावार्थ-मारी पासे देवद्रव्य तरीकेनी चोवीश हमार सोनमहोरो जे बाकी रही हती, ते लेखित पत्र सहित पृथ्वीमा दाटी. // 88 // कृत्यैर्यथोचितर्जीवन् , प्रान्तेऽहं कष्टतो निशि / स्थविर्या प्रातिवेश्मिक्या, पठंयमानं मृदुस्वरम् // 89 // श्रीशत्रुञ्जयमाहात्म्यं, शृण्वन्नेकाग्रमानसः। मृत्वा तड्यानतोऽभूवं, व्यन्तरोऽत्रैव पर्वते // 90 // युग्मम् / TAP.AC. भावार्थ----त्यार पछी यथायोग्य कार्यो वडे धन मेळवी आजीविका चलावतो हु मरण समये दुःखपूर्वक रात्रिमा Jun Gun Aaradhak Trust Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना. जीना पाटोशमा रहेती एक घडी होशीना मुखद्वारा कोमल स्वरथी कहेवाता श्रीशनंजय तीर्थंना अदभुत माहास्यने एकाग्रचिचे सांभळतो छत्तो मृत्यु पाम्यो, अने श्रीशगुंजयना ध्यानथी आज पर्वतने विषे व्यंतर देव ययो छु.॥८९ 9 // तत्र पूजाक्षणे स्वीयं, नाम श्रुत्वा भवन्मुखात्। . स्मृत्वा च पूर्ववृत्तान्तं, प्रीतचेता व्यचिन्तयम् // 91 // भावार्थ-आ पर्वतने विषे पूजा समये तमारा मुखथी मारुं नाम सांभळीने पूर्वभवनो वृत्तान्त स्मरण करी माई चित्त घणु प्रसन्न थयु, अने में विचार्यु के-॥९१॥ साध्विदं विदधे देव-द्रव्यं यद्देवपूजने / व्ययितं तत् किमप्यस्य, सान्निध्यं विधेऽधुना // 92 // भावार्थ-आ राजाए देवपूजामा देवद्रव्यनो व्यय कर्यो ते घणुन सारं. कयु, माटे एने हवे काइक सहायकारी धाउं // 92 // अतः सहागतेनैव, यन्त्रितास्ते मयाsरयः।। . अल्पशक्तिः परं नाह--मन्यत्र स्थातुमीश्वरः // 9 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ-एम विचार करी श्रीशचुंजय तीर्थथी साथे आवेला में तमारा शत्रुओने दृढ बंधनोथी बांधी लीधा हता. परंतु हुं अल्पशक्तिवाळो छु, तेथी मारा स्थान सिवाय अन्य स्थाने रहेवा समर्थ नयी // 93 // ___ अतो याताऽस्मि तौव, परं यानदियस्य मे। प्रत्यन्दं सुकृतं देयं, प्रपेदे सोऽपि तद्वचः // 94 // .. ... -- भावार्थ-माटे हुं मारा स्थानके जाउं छु. पण छेवटमां मारे तमोने एटलं जणाववार्नु के, तमारे दर वर्षे मारा निमित्ते वे यात्रान पुण्य देवं. आ प्रमाणे ज्यारे व्यंतर देवे पोतानो समस्त व्यतिकर राजाने स्पष्ट कही बता अने छेवटनी बे यात्राना पुण्यनी मागणी करी त्यारे राजाए पण तेनुं वचन मान्य कर्यु // 94 // यतः- .. यवस्तु दीयते चेत्तत्, सहस्रगुणमाप्यते। तहत्ते सुकृते पुण्यं, फापे पापं च तद्गुणम् // 95 // भावार्थ--जे वस्तु दान तरीके आपवामां आवे छे, तेथी हजारगणी प्राप्त थाय छे. वळी जे सुकृतने विषै। / अपाय छे ते पुण्य आपे छ, अने जे पाप आरंभकारी कार्यमा अपाय छे ते तेटलाज गणुं पाप आपे छे. // 95 // दीयमानं धनं किंञ्च, धनिकस्याऽपचीयते / सुकृतं दीयमानं तु, धनिकस्योपचीयते // 96. // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मा. प्रांतीज भावार्थ-वळी धनिकपुरुष दान करातुं धन तो ओछु थाय छ, पण दान करातुं मुकृत तो धनिकने || वृद्धिज पामे छे-सुकून जेम जेम दान करीए तेम तैम घटवाने बदले ते वस्तुं ज जाय छे // 96 // / श्राव्यते सुकृतं यावद्', योऽन्तकालेऽपि तावतः। " निजश्रद्धानुमानेन, स तदैवाऽश्नुते फलम् // 97 // भावार्थ-जे माणसने अंत वखते पण जेटलं सुकृत संभळावाय छे ते मनुष्य पोतानी श्रद्धाना अनुमाने करीने तेटला सुकृतना फळने तेज वखते प्राप्त करे छे // 97 // ततः श्रावयिता पश्चाद्, विधत्ते मानितं यदि / तदा सोऽप्यनृणः पुण्य-भाग भवेदन्यथा न तु // 98 // __ भावार्थ-त्यार पछी मुकृत संभळावनार जो मानेलं सुकृत पाछळयी करे तो ते माणस पोताना देवामाथी छुटे छे, अने पोते पण पुण्यनो भागी बने छे, पण जो न करे तो तेथी विपरीत फळ पामे छे // 98 / अश्रावितोऽपि श्रद्धत्ते, सुकृतं यः क्वचिद्गती। जानन ज्ञानादिभावेन, सोऽपि तत्पलमाप्नुयात् // 99 // MotRanaantaramesesa मजीत सागरी गणी शाम्पा प्रसिर वक्ता पंन्यासजी श्रीमद् / gamemamanimeinner status , - , PP.AC..Gunratrnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ-जे प्राणीने मुकृत संभळाव्यु न होय, तो पण जो ते स्वयमेव सुकृतनी श्रद्धा करे, भने पछी || || कोइ पण गतिमा ज्ञानादि भावथी जाणे तो ते पण ते मुकृतनुं फळ प्राप्त करे छे // 99 // अन्यथा सुकृतं तन्वन - व्यवहारप्रीतिभक्ती-रेव ज्ञापयति ध्रुवम् // 10 // भावार्थ-जे कुटुंबीए पोताना कुटुंघीना अंतकाळे जे सुकृत संभळाव्यु न होय ते सुकृत पाछळथी पोताना कुटुंबीना नामे करे तो ते खरेखर व्यवहार साचवे छे, अने मरनार उपरनी पोतानी प्रीति अने भक्तिज // 38 // जणावे छ / 100 // . . अथ तस्मिस्तिरोभूते, व्यन्तरे क्षोणिनायकः / साक्षात् पुण्यफलं दृष्ट्वा -ऽभवत्तत्रैव सादरः // 101 // "भावार्थ-हवे ते व्यंतर देव अदृश्य थइ गया पछी, राजा समुद्रपाल पुण्यनु प्रत्यक्ष 'फ़ल देखी पुण्योपार्जन || . करवामांज आदरयुक्त थयो. // 101 // बुद्धिं बन्धोरपि श्रेयो-विषये काङ्क्षताऽन्यदा। तामलिप्त्यां तदाहूति-हेतोः प्रैषीन्निजो नरः // 102 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निमन्त्र. .. ... .-- - . . - - - - भावार्थ-पोताना लघु बांधव सिंहे जो के पोतानु अनिष्ट करेलु तुं, छतां 'कोइ पण भीते तेनुं श्रेय थाय तो || सार' एम विचारी तेनुं कल्याण करवानी बुद्धिथी सज्जनस्वभावी समुद्रपाले एक दिवस तामलिसी नारीमां तेने बोलाचवा माटे पोताना विश्वासु माणसने मोकल्यो-॥ 102 // ..... सतन गत्वाऽऽगत्याथ, प्रो प्रेपलारय गता क्वापी-त्यापि शुद्धिः पुरे न तु // 103 // ... भावार्थ-ते.माणस तामलिप्ती नगरीमा जइने पाछो आन्यो, अने कह्यु के–'सिंह तामलिप्ती नगरीमा नयी, अने नासीने क्यां गयो. छे तेनी पण तपास करवा छतां शोध मळी शकी नथी" // 103 // // नगरीमा 39 ---- न्यायन पालयन् राज्य, प्रस्यन्दै स्वकुटुम्बयुक्। ' यात्रा अनेकशः कुर्च-श्चिरं सौख्यमभुङ्क्त सः // 104 // -- भावार्थ-समुद्रपाल नीतिथी पोताना राज्य पालन करना लाग्यो, अने प्रत्येक वर्षे शत्रुजयादि तीर्थोनी .. अनेक यात्राओ करतो छतो घणो काळ सुख भोगपवा लाग्यो // 1.04 // अभूतपूर्व श्रुत्वा त-बैरनिर्यातनं नृपाः... कम्पमानाः साभिमाना, अप्यस्मै नेमिरे स्वयम् // 205 // - ... P.P.AC.Gunratnasuri M.S. .. - Jun Gun Aaradhakrust Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ-भिन्न भिन्न देशना राजाओ अभिमानी अने पराक्रमी होवा छतां पण, पूर्वे कदापि नहीं अनुभवेको / वैरनो बदुलो सांभळी तेना पुण्य प्रतापथी कंपायमान थता पोतानी मेळेज नमवा लाग्या // 105 / / राज्ये न्यस्य सुतं ज्येष्ठं, लक्ष्मी कृत्वाथ पुण्यसात् / समुद्रपालो वैराग्याद्, व्रतमादत्त सद्गुरोः // 106 // ........ भावार्थ-पवित्रात्मा ते समुद्रपाल राजाए नीतपूर्वक घणां वर्ष राज्य कर्यु. छेवटे पोताने वैराग्य थवाथी मोटा || च. पुत्रने राज्य उपर स्थापन कर्यो, अने पुण्यार्ये सारां कार्योपां लक्ष्पीनो व्यय करी सद्गुरु पासे दीक्षा ग्रहण ||1. करी // .106 // " अथैकविंशतिघस्रान्, साधिताऽनशनः शमी। जज्ञे सर्वार्थसिद्धाख्ये, विमानेऽनुत्तरे सुरः // 107 // भावार्थ-वैराग्यमा मग्न बनेला ते समुद्रपाल महामुनि शांतिपूर्वक एकवीश दिवस अणसण करी सार्थसिद्ध नामना देवळांकने विष अनुत्तर विमानमा देवपण उत्पन्न यया // 107 / / ____ततश्च्युत्वा कुलं शुद्धं, लब्ध्वा संयमराज्यतः। आसाद्य केवलं ज्ञानं, मोक्षसौख्यमवाप सः // 108 // ..... P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. ___भावार्थ-त्यांची व्यवीने पूर्व भवमा प्राप्त करेला श्रेष्ठ चारित्ररूप राज्यना बलयी उत्तप कुळ पामीने केवल- / / | मान प्राप्त करी मोक्षे गया // 108 // --..... इतश्च तामलिप्त्यांस, सिंहः श्रुत्वा स्ववान्धवम् / ...... राज्ञा विसृष्टं सत्कृत्य, यात्रार्थ सत्यभाषणात् // 109 // निजाऽऽगःशङ्कया सर्व-मादाय सपरिच्छदः / जगाम सिंहलद्वीपं, पोतमारुह्य तत्क्षणात् // 110 // युग्मम् / - भावार्थ-हने तामलिप्ती नगरीमा समुद्रपालनो नानो भाइ जे सिंह हतो तेणे पोताना मोटा भाइने कष्टमां नाखवा माटे राजाने भंभेर्यो हतो, पण समुद्रपाले सत्य हकीकत जाहेर करवायी छेवटे सत्यनो विजय ययो, अने तेथी समुद्रपालनो दंड करवाने बदले तेनो उलटो सत्कार करी राजाए शत्रुजयनी यात्रा माटे विसर्जन कर्यो. आ प्रमाणे बनेली हकीकत सांभळी पोते राजानो गुन्हेगार बनवानी शंकाथी सिंह परिवार सहित पोता सर्व लइने तेज क्षणे वहाण उपर चडी समुद्र मार्गे सिंहलद्वीप गयो // 109-110 // ... राजप्रसादं तत्राप्य, दन्तिदन्तजिघृक्षया / . . . घोरे स्वयमरण्येऽमा-दलाभादन्यवस्तुनः // 111 // ... P.P.AC.Gunratnasuri M.S. M.S. Jun Gun Aaradhak Trust - Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ भावार्थ-सिंहलद्वीपा सिंहे त्यांना राजानी महेरवानी मेळवी. पछी अन्य वस्तुओनी खरीदीथी लाभ न थाय || || तेवू होवाथी हाथीदांत ग्रहण करवानी इच्छाथी पोते घोर अरण्यमां गयो / / 111 // स तत्र दन्तिवधकै-दन्तवृन्दान्यथाऽऽनयत्। पापद्व्येण यत् पापे-ध्वेव बुद्धिः प्रजायते // 112 // भावार्थ-ते जंगलमा हाथीना वध करनार माणसो द्वारा, हाथीदांत मंगावीने खरीद कर्या. खरेखर शास्त्रकारोए सत्यज वचन कहां छे के-'पापथी संचय करेल धनयी पापकारी अधम कृत्यो करवानीज बुद्धि उत्पन्न थाय ||14| छ.' ऑपणामं एक लौकिक सादी कहेणी छे के-'जेवो आहार तेवो ओडकार.' माटे सुज्ञ जनोए नीतियुक्त धन प्रपार्जन करवामांज़ प्रयत्नशील बनवु जोइए. श्रावकने प्रथम मोक्षमार्ग तस्फ दोरवनार मार्गानुसारीना पांत्रीश गुणो पैकी 'न्यायथी द्रव्य मेळवqए प्रथम गुण छे, अने ए गुण मेळवा माटे दरेक मनुष्ये पोताना विचार मक्कम करवा जोइए के " मारा जीवननो मुखपूर्वक निर्वाह करवा माटे नीतिमार्गथी द्रव्य मेळवीश." आ जीवनसूत्र दरेके पोताना हृदयपट्ट उपर सुवर्णाक्षरे कोतरी राखवू जरुरतुं छे // 112 // भृत्वा चत्वारि यानानि, दन्तैर्वारिधिवर्मना। - मुत्तवा कुटुम्ब लत्रैव, सुराष्ट्रां प्रति सोऽचलत् // 113 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ---हवे ते सिहे त्या हार्थीदांत खरीद करी चार वहाण भर्या, अने पोताना कुटुंबने त्यांज मूकी समु। | द्रमार्गे सौरठ देश तरफ ते चाल्यो // 113 // .. . .... ती| समुद्र क्षेमेण, सुराष्ट्रातटसंकटे / ........ ना. भग्नानि तानि यानानि, न हि श्रेयोऽतिपापिनाम् // 114 // भावार्थ-समुद्रमार्गे जता जता ठेठ सुधी जलमार्ग कुशलता पूर्वक ओळग्यो, पण सौरठ देशना किनास, नजीक आवका अकस्मात् कोइ खराबा सावे अथडावाथी चारे चहाणं आंगी मयां, खरखर पापकर्मथी आजीविका चलावनार अति पापी पुरुषोनु कदापि कल्याण यतुं नयी // 11 // . . . . . . . . . . . . . ततः सिंहों विपद्याऽऽद्य-भरकतत्र वेदनाः। विषयोध्धृत्य संजातः, सिंहो हिंसापरायणः // 115 // ........... भावार्थ-चार वहाण भांगी जवाथी सिंह समुद्रमा डूबी भरणनै शरण थयो, अने पहेली. नारकीमा उत्पन्न / ययो. त्या अत्यंत तीव्र वेदनाओ सहन करी, आयुष्य पूर्ण यतां त्याथी नीकली तिर्यचना भवमा हिंसाने विषे र एवो सिंह थयो।॥११५॥ / Jun Gun Aaradha Trust Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..... आचं गत्वा पुनः श्वन, जझे दुष्टसरीसृपः। :. . .. ....द्वितीयनरकं भक्त्वा दुष्टपक्षी बभूव सः 116 // भावार्थ-सिंहना भवमा पण अनेक प्रकारना हिंसादि कृत्यो करी फरी पहेली नारकीयां गयो. त्यांची नीकळी दुष्ट साफ्पणे उत्पन्न थयो. त्यांची बीजी नारकीमा गयो, त्या पण अपार. दुःखो भोगवी, दुष्ट पक्षी ||" | थयो. // 116 // .... तृतीयनरकं प्राप्य, दुष्टसिहोऽभवद् वने। . चतुर्थेनरकं गत्वा, संर्पोऽजायत दग्विषः // 117 // भावार्थ--त्यार वाद त्रीजी नारकीमा गयो. त्यांची वनमां दुष्ट सिंह थयो, सिंहनुं आयुष्य पूर्ण करी चोथी | नारकीमा गयो, त्यां कष्टकारक दुःखों भोगवी दृष्टिविष सर्प थयो. // 117 // . पश्चम मरकं लब्ध्वा, चण्डालस्त्री ततोऽजनि / अवाप्य नरकं षष्ठ-मजनिष्टाऽर्णवे तिमिः // 118 // भावार्थ त्यांची पचिपी नारकीयां गयो, त्यारबाद चंडालनी स्त्री थयो. तदनन्तर छही नारकीमा गयो. || त्यार्थी समुद्रमा मत्स्य थयो. // 118 / / . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust - Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमं नरकं गत्वा, मत्स्योजायतं तन्दुलः / ... पुनः सप्तममेवाडगा-घरकं दुःखसागरम् // 119 / / भावार्थ-मत्स्यनु आयुष्य पूर्ण करी सातमी नारकीमा गयो. त्यांची नीकळी तंदुलीयो मत्स्य थयो. || ना त्यांची बळी पाछो दुःखना सागर समान सातमीज नारकीमा गयोः // 119 // विपर्यासेन चण्डाल च्यादियोनिषु पूर्ववत् / ..... .. . क्रमेण सेहे कष्टानि, षष्ठादिनरकेषु चः॥ 120 // भावार्थ-वळी पाछो विपर्यास वढे [उलटी रीते] हालस्त्री विगैरे योनिमा तथा क्रमसर छही विगेरे नारकीमा पूर्वनी जेम उत्पन्न यइ असल्य कष्टो सहन कर्या // 120 // . . . . . . .. ततो निपतितो घोरे, संसारे दुःखसागरे। देवद्रव्यविनाशस्य, क्षेयं सर्वमिदं फलम् // 121 // भावार्थ-त्यार पछी दुःखसागर घोरसंसारमा भिन्न भिन्न स्थळे उत्पन्न थइ अपार कष्टो सहन करतो || छतो रझब्यो. मा सर्व देवन्य विनाशनं जा फळ लागवं // 121 // .' P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhakrust Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .... .. .... 46 : : अन्यायात् स्वल्पदेवस्व भक्षेणादपि यद्यभूत्। शैवः श्रेष्ठी सप्तकृत्वा श्वाऽतो वै त्याज्यमेव तत् // 122 // ... भावार्थ- अन्यायथी जन मात्र पण देवव्यनु भक्षण करवाथी शैव शेठ सातबार कूतराना भवमां . उत्पन्न थयो, माटे खरेखर ते तजवा योग्य छे // 122 // - अत्रान्तरे विभो! को सौ, श्रेष्ठी जातश्च श्वा कथम्? इति नामाकभूपेन, पृष्टे गुरुरभाषत // 123 // भावार्थ आवखते नामाक राजाए महात्मा युगंधराचार्यन पूछयु के-'प्रभो! था शैव शेठ कोण? अनें / लेने सात वखत कूतरानो अवतार केम ग्रहण करवो पड्यो ?' आ प्रमाणे नाभाक सजाए पूछवाथी सद्गुरु महा• || ...... राजे पण ते चरित्र स्वरूप नीचे प्रमाणे कहेवानो आरंभ कर्यो- // 123 // 7 उत्सर्पिण्यवसपिण्यो-भरतैरवतक्षितौ।... प्रत्येकं किल जायन्ते, शलाकाः पुरुषा अमी // 12 // चतुर्विंशतिरहन्त-स्तथा द्वादश चक्रिणः। विरुणप्रतिविष्णुरामाः, प्रत्येकं नवसङ्ख्यया // 125 // .P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ-भरतक्षेत्र अने ऐरववक्षेत्रमा उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी काळमा प्रेसठ त्रेप्सठ शलाकापुरुषो थाय छ, || अने ते आ प्रपाणे--चोवीश तीर्थकर, बार चक्रवर्ती, नव वासुदेव, नव प्रतिवासुदेव अने नव राम (बलदेव). // 124-125 // : - एतेषु पूर्व श्रीरामो, राज्यं न्यायेन पालयन् / कृपया निःस्वलोकानां, न्यायघण्टामवीवदत् // 12 // भावार्थ-ए त्रेसठ पुरुषोमां पहेलो श्रीराम नीतिपूर्वक राज्य पालन करतो हतो, अने गरीच प्रजा उपर दयादृष्टि राखी न्यायनो ईको वजडाव्यो हतो // 126 / / . . - एकदा कुकुरः कश्चि-निविष्टो राजवमनि। .. . .. केनचिद् विप्रपुत्रेण, कर्करेणाहतः श्रुतौ // 127 // भावार्थ-तेना राज्यमा एक दिवस जाहेर रस्ता उपर एक कूतरी बेठो हतो, ते कृतराने कान उपर ब्राह्मणना छोकराए कांकरो फेंकी घायल कर्यो // 127 // - श्वा नियघिरी न्याय-स्थानं गत्वा निविष्टवान् / ..... भूपेनाहूय पृष्टीऽवग, निरागाः किमहं हता? // 128 // Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ-वहेता लोहीथी खरडायेल ते कूतरो राजाना न्यायमंदिरमा जइ बेगे. राजाए तेने बोलाचीने राजसभामां आववाचं कारण पूछयु, त्यारे तेणे कमु के-'हुं निरपराधी छतां मने ब्राह्मणना छोकराए केम मार मार्यों? // 128 // ..... . तद्घातक विप्रपुत्र, तत्रानाय्य नृपोऽब्रवीत्। असौ त्वद्घातको ब्रूहि, कोऽस्य दण्डो विधीयते ? // 129 // भावार्थ-राजाए तेने मारनार ब्राह्मणना छोकरानी तपास करावी सभामा बोलान्यो, अने कृतराने कयुं | 48 // के-'आ तने मारनार छे, माटे बोल, आने झं शिक्षा करवी?' // 129 // श्वाऽवोचद्ध रुद्रस्य, मठेऽयं हि नियोज्यताम् / क एष दण्डो राज्ञेति, पृष्टः श्वा च पुनर्जगौ // 130 // भावार्थ-कूतराए कयु के-'तेने मात्र एटलीज शिक्षा करो के अहींना शिवना देवालयमां तेनी पूजारी तरीके नीमणुक करो' / आ प्रमाणे कृतराए कहेलु अयोग्य वचन सांभळी राजाए विस्मित था पूछयु के-'आ |दंड कहेवाय / त्यारे कूतराए पोतानो सर्व सविस्तर वृत्तान्त जगाव्यो के-॥ 130 // P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / प्रागह सप्तजन्मभ्यः, पूजयित्वा सदा शिवम् / देवस्वभीत्या प्रक्षाल्य, पाणी भोजनमाचरम् // 131 // - भावार्थ-हुं मारा आ कूतराना जन्मथी सात भव पहेलां मनुष्य हनो, अने हमेशा शिवनी पूजा करी / | देवद्रव्य भक्षण करवाना दोषथी डर पामी मारा बन्ने हाथ धोइने जमवा बेसतो हतो // 131 // स्त्यानाज्यमन्यदा लिङ्ग-पूरणे लोकढौकितम् / विकरणेऽस्य काठिन्यादू, नखान्तः प्राविशन्मम 132 / / / / 49 भावार्थ-एक दिवसे लोकोए, शिवलिंग पूरवा माटे चीजेलं घी मूक्यु. कठिन होवाथी ते घी छुटुं पाडता मारा नखम भराइ गयुं // 132 // / विलीनमुष्णभक्तेना-ऽजानता तन्मयाहृतम् / तेन दुष्कर्मणा सप्त-कृत्वो जातोऽस्मि मण्डनः // 133 / / . . भावार्थ-त्यार बाद शिवना मंदिरमाथी नीकळी घेर भावी भोजन करवा बैठो.. उष्ण भोजनथी ते नख- ||-- मांनुं घी ओगळी गयुं, अने जमता जमता अजाणतां ते घी पण भोजन साथे खवाइ गर्यु. फक्त एटलाज देवद्रव्य भक्षण करवा रूप दुष्कर्मथी हुँ सातवार कूतराना जन्ममा अवतर्यो // 133 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 150 सप्तमेऽस्मिन् भवे राजन् !, जाता जातिस्मृतिर्मम / अधुना तत्प्रभावेणो-त्पन्ना वाग् मानुषी पुनः // 134 // भावार्थ-हे राजन् ! आ सातमा भवमा मने जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न थयु छे, अने हमणां तेना प्रभावथी मने मानुषी वाचा उत्पन्न थवायी आ बीना तमारी समक्ष यथार्थ निवेदन करी छे // 134 // 'अत्रान्तरे गुरुं नत्वा, जगौ नाभाकपतिः। श्रुत्वैतिद्यमदो बाढं, कम्पते हृदयं मम // 135 // भावार्थ-आ प्रमाणे गुरुमहाराजना मुखथी पूर्वोक्त दृष्टान्त सांभळी नाभाकराजाए गुरुमहाराजने नमस्कार करी का के-'प्रभो! आ कथानक सांभळी म्हारं हृदय घणुंन कंपायमान थाय छे' // 135 // गुरुरूचेऽथ यथेवं, तत्कथामग्रतः शृणु।। यथा सम्यक् फलं वेल्सि, हेवद्रव्यविनाशिनाम् // 136 // भावार्थ-त्यारे गुरुमहाराजे कयुं के-'जो एम छे तो हवे आगळ नागगोष्ठीनी कथा सांभळ, के जेथी देवद्रव्य विनाश करनारने केवु फळ प्राप्त याय छे तेनुं तने सम्यक् प्रकारे जाणपणुं थाय, अने तेथी तुं सदाने माटे अलग ' // 136 ||nasunMs... Jun Gun Aaradha rust Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mer ना. षष्टिवर्षसहस्राणि, श्रीशत्रुञ्जयपर्वते / आयु क्त्वा नागजीवो, व्यन्तरश्च्युतवानथ // 137 // भावार्थ-व्यंतर देवपणे उत्पन्न थयेल नागश्रेष्ठीनो जीव श्रीशचुंजय पर्वत उपर साठ हजार वर्षनुं आयुष्य भोगवी त्यांथी ज्यव्यो // 137 // .... कान्तिपुर्ण रुद्रदत्त-कौटुम्बिकसुतोऽभवत् / सोभाभिधानस्तन्माता, पञ्चमेऽन्द्रैऽहिना मृता // 138 / 'भावार्थ-श्रीशत्रुजय पर्वत उपर व्यंतरपणे उत्पन्न ययेल नागश्रेष्ठीनो जीव साठहजार वर्षतुं आयुष्य भोगवी च्यवीने कांतिपुरी नगरीमा रुद्रदत्त नामना कुटुंबीनी सोम नामनो दीकरो थयो. ते पुत्र ज्यारे पांच वर्षनी उम्मर- || मो थयो त्यारे तेनी माता सर्पदंश थवाथी मरण पामी // 138 // तत्रास्ति नास्तिकः प्राति-वैश्मिको देवपूजकः / सोमोऽपि सह तत्पुत्रै-ति देवनिकेतने // 139 // . भावार्थ-ते नगरीमा तेना घरनी नजीक नास्तिक नामनो देवनो पूजारी पाडोशी रहेतो हतो, ते पूजारी-|| ना पुत्रो साये सोम पण देवसंदिरमा जका लाग्यो / // 139 / / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. - Jun Gun Aaradhak Trust Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ F . देवद्रव्यमयैः पूजा-ऽवशिष्टैश्चन्दनैर्वपुः / विलिप्याकण्ठमाच्छाध, वाससा पर्यटत्यसौ // 140 // . भावार्थ-पूजा करता बाकी रहेल देवद्रव्य रूप चंदनकी पोताना आखा शरीरै विलेपन करी, कोइनाना देखावा न आवे माटे गळा मुधी वस्ख ढांकीने सोम हमेशां पूजारीना छोकराऔ साथै रझळवा लाग्यो / // 14 . वयःस्थः सोऽन्यदा देव-कोष हृत्वा पलायितः। स्तेना मुषित्वा तं पार-सीकर्देशे विविक्रियुः // 141 // 52 // भावार्थ-हवे ज्यारे सोम योग्य उम्मरनो थयो त्यारे एक दिवस ते शिवना मंदिरमाथी देवनों भंडार चौ. . रीने नासी गयो, तेनुं चोर लोकोए हरण करी पारसीक देशमा वेच्योः // 141 // तत्र वस्त्राणि रज्यन्ते, तस्य रक्तैस्ततोऽसकौं। पलाय्याऽम्भोधिमुत्ती, ब्रजन्नध्वनि कुत्रचित् // 142 / / .. - ग्रामप्रवेशेऽभ्यायान्तं, मुनिं मासोपवासिनम् / निहत्य यष्ट्या त्रीन् वारान, पापः पृथ्व्यामपातयत् // 143 // युग्मम् / .. Famaxi P.P.AC. Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - भावार्थ-पारसीक देशमा तेना लोही बडे वस्त्रो रंगावा लाग्या. आवी रीते आपत्तिमां आवी पडेलो. ते / / सोम. लाग जोइ त्यांयी नाठो, समुद्र उतरीने रस्तामा जतां कोई एक गाम आव्यु. गाममा पेसतान तेनी सन्मुख | आवता मास उपवासवाला एक मुनिने ते पापीए लाकडी वडे त्रण वार प्रहार करी जमीन पर पाडी दीपा // 142-143 // - तस्मिन्नथ विपन्नेऽसौ, नश्यन्नारक्षकैर्धतः / कृपया मोचितः श्राः, पलाय्यं कृतवानथ // 144 // . ||533 भावार्थ- लाकडीना अतिशय महारथी मुनिराज त्यांज मरण पाम्या-मुनिने मारी सोम त्यार्थी नासती हतो तेवामा रस्ताम कोटवालोए पकडयो, पण त्यांना दयाल श्रावकोए करुणा ला छोडाव्यो. त्यार बाद सोमः त्यांची पलायन करी जंगलमा चाल्यो गयो // 144 // ... मृत्वा दावाग्निनारण्ये, सप्तमं नरकं गतः। ऋषिहत्यामहापापं, तत्कालं स्यात् फलप्रदम् // 145. // भावार्थ-अरण्यमा दावानळथी मरण पापीने सातमी नारकीमा गयो, कारण के मुनिहत्यानुं महापाप तत्काल // ल फळ आपे छ॥१४५॥ P.P.Ac:Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीमा. सागराणि त्रयस्त्रिंश-त्तत्र भुक्त्वा महाव्यथाः। उद्धृतो घोरसंसारं, भ्रमित्वा हालिकोऽभवत् // 146 // भावार्थ-हवे ते सोम सातमी नारकीयां तेत्रीश सागरोपम सुधी महाव्यथाओ भोगवी, त्यांची नीकळी दुःखमय संसारमा भटकी भटकी खेडुत थयो // 146 // . . .. कौशिकाख्योऽम्बरप्राम, ग्रामेशस्य गृहे च सः / कर्माणि कुर्वन् सर्वेषा, हालिकानां कृतेऽन्यदा // 147 // |54 // आदाय भक्तं प्राचालीद्, मार्गे मासोपवासिनम् / वीक्ष्य सन्मुखमायान्तं, मुनि भक्त्या न्यमन्त्रयत् // 148 // युग्मम् / भावार्थ-स्लेडुतना भवमा जन्म लीधेल सोमर्नु नाम कौशिक हतुं. ते कौशिक अंबर नामना जाममा ते गामना स्वामीने घेर काम करतो, अने पोतानो निर्वाह चलावतो. एक दिवसे कौशिक सर्व खेडुतोने माटे भात लइ खेतर जवाने नीकळ्यो. रस्तामा मास उपवासवाळा एक मुनिराजने सामा आवता ज़ोइ अत्यंत भक्तिपूर्वक | पोतानी प्रासे रहेल भात वहोराववा विनति करी // 147-148 // Jun Gun Aaradhak Trust . PP.AC.Gunratnasuri M.S. . . Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3D यात्राबयफलं पूर्व, प्रत्यब्दं यत् समुद्रतः। ..तेन प्राप्तं ततः पुण्यात्, वस्यैषा वासनाऽजनि // 149 // भावार्थ-तेने आ खेडुतना भवर्मा मुनिने अन्न बहोराबवा रूप शुभ अध्यवसाय उत्पन्न थयो तेनुं कारण ना. एज के, तेणे पूर्वभवमा समुद्रपाल राजा पासेवी दरवर्षे वे यात्रानुं फूल मेळव्युं हतुं, अने ते पुण्यना प्रभावधीज़ तेने आवा प्रकारनी शुभ वासना उत्पन्न थइ // 149 // स्यादेतद्भक्तभोक्तृणा-मन्तरायस्तती न भे। ..कल्पतेऽन्नमिदं साधु-नेत्युक्ते च सको जगौ // 150 // भावार्थ-कौशिके भात ग्रहण करवानी विनति करी त्यारे मुनिराजे को के-'आ भोजन हुँ खेतरमा भोजन करनाराओं माटे लइ जाय छे, ते अन्न जो हुँ ग्रहण करूं तो तेओने अंतराय थाय, तेथी आ भात मारे वहोरवं कल्पे नहीं.' आ प्रमाणे मुनिराजे ज्यारे भाव बहोरवानी अनिच्छा दर्शाची त्यारे तेणे कधु के-॥१५०॥ ....... कृत्वोपबासमप्याय, दास्ये भक्तं निजं ध्रुवम् / . . सद्यः प्रसय गृह्णीते-त्याग्रहादग्रहीदू मुनिः / / 151 5. . Jun Gun AaractTrust.. PP.AC.GurtatnasuriM.S. . . ---- - Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ना.. ITATIL ___ भावार्थ-'हुँ आजे उपवास करीने पण मारा भागर्नु भोजन आपने वहोरावशिज, माटे मारा उपर कृपाः / / करी जलदी आ भात ग्रहण करो'। आ प्रमाणे तेना अतिशय आग्रहथी मुनिराजे ते अन्न वहोर्यु // 151. // ततः कृत्वोपवास, स, निषेष चाऽसुमधे / ... ...... साधो पार्थात प्राप्त राज्य-मिवात्मानममन्यतः // 152 / / ___भावार्थ-त्यार बाद ते खेडुते मुनिराज पासेची उपवासद् तथा प्राणिक्धन पञ्चक्खाण करी रेखर आजे || में महात्मा मुनिराजने अन्नदान आपी राज्य मेळव्युं छे': प्रमाणे पोताना आत्माने मानस लाग्यो / 152 // 56. . ... एवमर्जितसत्कर्मा, कौशिको भद्रकाशयः। ............... विपद्य चित्रकूटाद्रौ, चित्रपुर्या नृपोऽभवत् // 153 // भावार्थ-आवी सेते भद्रक परिणामी ते कौशिके पुण्य मार्जन करी, आयुष्य पूर्ण यता मरण पामी, I | चित्रकूट पर्वत पर रखेल चित्रपरी नगरीमा राजा थयो // 153 // चन्द्रादित्याभिधः शुद्ध-दयापुण्यविभावितः। .. . निरामयो महारूपा-ऽमङ्गीकृतमनोभवः // 154 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना. . भावार्थ-तेनुं नाम चन्द्रादित्य राखवामां आव्यु हतु. चन्द्रादित्यर्नु हृदय ५दया अने पुण्यना संस्कारवाळु हतुं, शरीरे निरोगी हतो, तेनुं शारीरिक सौंदर्य अने लावण्य एटलं बधुं मुशोभित. हतुं के जाणे रूपमा | कामदेव पण तेनाथी पराभव पामे // 154 // .......... तस्याप्रकण्ठवपुर्दुष्ट-कुष्ठेनालिष्टमन्यदा। तेनाऽऽकण्ठपटीच्छन्न-देह एव स तिष्ठति // 165 // .. . . भावार्थ-पूर्व भवमा करेला कर्मना उद्ययी कोई दिवस तेने पगथी मांडीने गळा मुर्धी शरीर दुष्ट को रोग उद्भव पाम्यो, तेथी ते सदैक गळा सुधी. वस्त्रयी, आच्छादित थइनेज रहे छे // 155 / . . कदाचित् प्रौढपापार्टि-रपि पापलिके। . सत्सामग्रीयुतः प्राप, श्वापदाना पदं वनम् // .156: / / भावार्थ:-चन्द्रादित्य कर्मना उदयथी पूर्वे करेला अतिशय फापर्नु फळ भोगी रयो हतो, छतां हजु सुधी। तेनी बुद्धि ठेकाणे न आवी, अने दुष्ट मतिथी विवेकहीन बर्नेलो ते राजा शिकार करवा माटे शिकारी पशुओथी | व्याप्त बनेला बनमा शिकारनी सामग्रीयुक्त बहने गयो / 156 / / जी सागरजी गणी धारण असिख वक्ता पन्यासली भीम . . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्र रङ्गत्तुरङ्गेण, कुरणवधरङ्गतः। .. धावमानो मुनि कायोत्सर्गस्थं वीक्ष्य पृष्टवान् // 157 // . भावार्थ-बनमा पूर वेगयी दोडना घोडा बहे हरणीयाओनो वध करवाने आसक्त बनेला अने तेओनी || ना. पाछळ पढेका ते सजाए काउसागमा रहेला एक मुनिने देखी पूछयु के-॥ 157 // कस्यां दिशि मृगा जग्मु-निः प्रोक्ते नाऽवदन्मुनिः। ... ... राजा जिघांसुर्बाणेन, तमपि स्तम्भितोऽभितः // 158 // भावार्थ-'मृगलामो कइ दिशामां गया छे ?' आ प्रमाणे त्रण वक्त चन्द्रादित्ये पूछवा छतां मुनिराज काइ पण बोल्या नहीं, त्यारे ते मुनिने पण बाण बड़े हणवानी इच्छावालो चन्द्रादित्य तैयार ययो // 158 // .|| कायोत्सर्ग पारयित्वा, मुनिस्तारस्वरं जगौ। प्राच्याच्छुटसि नाऽद्यापि, नव्यं च कथमर्जसे? // 159 // भावार्थ-मुनिए काउसग्ग पारीने अतीव गंभीर स्वरे कयु के–'हजु सुधी पूर्वनां बांधेलां कर्मपी तो || छूटतो नथी, अने नवा कर्मो केम बांधे छे ?' // 159 // . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhakrust Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनेर्निनंसया सद्यो, मुत्कलाङ्गोऽथ भूपतिः। प्राच्य-नव्यादिवृत्तान्तं, पप्रच्छ प्रणिपत्य तम् // 16 // | भावार्थ, मुनिराजनी आवा प्रकारनी गूढ अर्थवाली वाणी सांभळी तेमने वंदन करवानी इच्छाथी राजाए जलदी पोताना शरीर उपरथी हथियार विगेरे उतारी नाखी, मनिराजने वंदन करी, प्राच्य कर्म अने नवीन कर्म विगेरे सर्व बीना पूछी // 16 // प्रोचे मुनिरथोऽयोध्या-प्राप्तकेवलिनी मुखात् / देवद्रव्यविनाशस्या-ऽधिकारे प्रौढवर्षदि // 161 // त्वत्पूर्वभवसम्बन्ध, त्वबोधं चाऽथ भाविनम् / ज्ञात्वाऽऽगत्य वनेऽत्राहं, कायोत्सर्गेण तस्थिवान् // 162 // युग्मम् / भावार्थ-मुनिराज बोल्या के-" अयोध्या नगरीमा प्राप्त थयेल केवली भगवानना मुखथी प्रौढ पर्षदामा 'देवदव्यनो विनाश करवाथी प्राणीने केवी विडंबना भोगववी पडे छे! तेनो अधिकार चालतो इतो, तेमां में तारा पूर्वभवतुं संपूर्ण वृत्तान्त सांभळ्यु, अने तुं माराथीज प्रतिबोध पामीश ए प्रमाणे जाणीने हुँ आ बनमा काउसग्ग | ध्याने रखो हतो // 161-162 // .. .... P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना.. को मे प्राग्भवसम्बन्ध, इति पृष्टे नृपेण सः। प्राचीकथन्मुनि ग-गोष्ठिकाख्यानमादितः // 163 // ... भावार्थ-नृपतिए पूछ्यु के-'स्वामिन् ! मारा पूर्वभवनो शो द्वृत्तान्त छे ते कृपा करी जणावो.' त्यारे शांत मुद्राधारी तेमज परोपकारमाज निरंतर परायण मुनिराजे नागगोष्ठिकना भवयी आरंभी अंत मुधी सर्व वृत्तान्त जणाव्यो // 163 // प्राज्यं राज्यं शुद्धदानाद, दयातो रूपमुत्तमम् / - दुष्टं कुष्ठं भवदेहे-अवदेवविलेपनात् // 164 // . भावार्थ-परोपकार रसिक ते मुनिराजे विशेषमा जणायु के-" ते पूर्व खेडुतना भैवर्मी मुनिने हुँद दोनथी प्रतिलाभ्या हता, तेना प्रभावयी आ मवर्मा तने श्रेष्ठ राज्य प्राप्त थयुं छे, अने दयामुणथी उत्तप रूप मळ्यु छे. पण पूर्वे तुं कांतिपुरी नगरीमा रुद्रदत्तनो सोम नामनो पुत्र थयो हतो, ते भक्मा ते देवद्रव्यरूप चैदन ऋरीरे विलेपन कर्यु हतुं, तेथी आ भवर्मा तारा शरीरे दुष्ट कोढ रोग थयो छ" // 164 // श्रुत्वेति भूपतिक्षीता, प्रणिपत्य यतेः पदौ / / - बभाषेऽस्मान्महापापाद्, मुने! मोचय मोचय // 165 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ-आ प्रमाणे मुनिना मुखी पोताना पूर्वभवनो संबंध सांभळीने राजा पापर्थी भय पाम्यो, अने || मुनिना चरणकमळमां पढी गद्गद स्वरे बोल्यो के-'हे कृपासिंधो! मने आ महान् पापथी छोडाको छोडावो // 165 // परमेष्ठिमहामन्त्रं, नृपायोपादिशन्मुनिः / .. तस्याऽर्थं च प्रभावं च, विधिं च स्मरणेऽखिलम् // 166 / / भावार्थ-मुनिए राजाने पंचपरमेष्ठी रूप महामंत्रनो उपदेश कर्यो, तथा पंचपरमेष्ठीनुं ध्यान करता तो अर्थ प्रभाव अने विधि सर्व सारी रीते समजाव्या // 166 // ..... देवस्वपातकाद् देव-प्रासादस्य विधापनात् / - मुच्यते जन्तुरित्याख्यत्, प्रायश्चित्तं च शास्त्रवित् // 167 // भावार्थ-तथा शास्त्रना जाणकार ते मुनिराजे देवद्रव्य विनाशर्नु प्रायश्चित्त पण जणाव्यु के-'देवद्रव्युलो विनाश करनार प्राणी देवमंदिर कराववाथी ते पापथी छूटे छे // 167 // .. अथ राजा पुरे स्वीये, स्थापयित्वाऽऽग्रहाद यतिम् / .' यथोपदेशाम रे, महामन्त्रस्थति ततः // 168 // . ManusNRBATROChende प्रांतीज.. खजीत सागणी प्रसिद-वला पंन्यासकी श्रीम go to to......... constop . -भाल के . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ-त्यार बाद राजाए मुनिराजने अत्यंत आग्रह करी पोताना नगरमा राख्या, अने तेओश्रीए जेबी || | विधिए उपदेश आप्यो ते प्रमाणे पंचपरमेष्ठी महामंत्रनुं निरंतर ध्यान करवानो आरंभ कर्यो // 168 // पडिर्मासैर्नृपस्याऽभूत् , कायः काञ्चनकान्तरुक् / राज्यं गजाश्वकोशादि-वृद्धया भेजे विशालताम् // 169 // .. भावार्थ-पंचपरमेष्ठीतुं ध्यान करतां छ मासमा चन्द्रादित्यनुं शरीर सुवर्ण सदृश मनोहर कांतिवालं थइ गर्य, अने हाथी घोड़ा तथा भंडार विगेरेनी वृद्धि थवायी सज्य पण विशाल थइ गयुं // 169 // शीर्षेऽथ चित्रकूटस्य, प्रासादं परमेशितुः।। सुपर्वपर्वतोत्तुङ्ग-शृङ्गं प्रारभयन्नृपः // 17 // भावार्थ त्यार पाद चन्द्रादित्य राजाए चित्रकूट पर्वतना शिखर उपर परमात्मा जिनेन्द्र प्रभु मेरु पर्वत समान उंचा शिखरवाडं देरासर बंधाववानी शरुआत करी // 170 // मुनिपार्श्वे निविष्टस्य, मापतेः पुरतोऽन्यदा। PP.Ae Gunratnasun m.sप्रद शेयन् खरं कश्चित् , कुम्भकारो जगाविति // 171 // Jun Gun Aaradhaltrust Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __भावार्थ-एक दिवस मुनिराज से राजा बैठो इतो, तेवामां तेनी आगळ एक गधेडाने बतावता कोइ / / कुंभारे आवीने कयु के-॥ 171 1 राजनित्यं वहन वारि, स्वयं शैले चटत्यसौ। . को हेतुरिति भूपोऽपि, श्रुत्वा पप्रच्छ त मुनिम् // 172 // भावार्थ-है राजन् ! आ गधेटो हमेशा पाणीने बहन करतो आ पर्वत उपर पोतानी मेळे चंडे छे कारण हो 1. राजाए पण आ वृत्तान्त सांभळी आश्चर्यचकित थइ मनिराजने पूछयुं // 172 / / .. . स एव केवली तावत्, तत्रागाद मुनि-भूपती। ...... तन कुम्भकृता युक्ती, नन्तुं तसथ जग्मतुः // 173 // भावार्थ-ते दरम्यान तेज केवली भगवान् के जेपणे अयोध्या नगरीमा पर्षदाम कहेलो चंद्रादित्यना|| पूर्वभवनो वृत्तान्त मुनिराजे सांभळ्यो हतो, तेओ चित्रपुरी नगरीमा पधार्या. केवली भगवाननुं आगमन सांभळी राजा अने मुनिराज ते कुंभार सहित केवळी भगवानने वंदन करवा माटे गया // 173 // खरस्वरूप भूपेन, पृष्टः केवल्यथाऽखिलम् / .. समुद्रसिंहवृत्तान्त-मुक्त्वा मूलात् पुनर्जगौ // 174 // . . / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. an Gun Aaradhakra Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ-ते कंवली भगवानने वंदन करी राजाए गधेडानुं स्वरूप पूछर्यु, त्यारे केवली भगवाने समुद्रपाल / अने सिंहनुं समस्त वृत्तान्त आदियी अंत मुध कडूं, अने जणान्यु के-॥ 1.74 / / सिंहजीव सको भुक्त्वा, संसारे घोरवेदनाः। पुरेऽत्रैवाल्पकर्मत्वात्, षट्कृत्वोऽथ खरोऽजनि / 175 // भावार्थ-ते सिंहनो जीव संसारमा तीव्र वेदनाओ भेगवी, आज नगरमा अल्पकर्मपणार्थी छ वारं गधेडो थयो / 175 // भवे सप्तमके भूत्वा, त्रीन्द्रियोऽसौ ततः पुनः / खरोऽवशिष्टकर्मत्वात्, षट्कृत्वोऽत्र पुरेऽभवत् // 176 // भावार्थ-त्यार बाद सातमा भवमा तेइंद्रिय यइ, अवशेष रहेला कर्मी पाछो छ वार आज नगस्मां गंधैटी थयो // 176 / / सहस्रा द्वादशाऽनेन, देवद्रव्यं विनाशितम् / तत्कर्मशेषतस्तावत्, कृत्वाऽसावीशोऽजनि // 17 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || मावा-आ सिंहना जीचे चारहजार सोनैया देवद्रव्यनो विनाश कर्यो हतो, ते कर्मना शेषथी ते सॅटेली- 11 // चार नीच भवा उत्पन्न थयो छे / / 177 // . प्रतिजन्माऽद्रिशृङ्गेऽस्मिन्, कर्मकार्यकृते सदा। ------- चटनाभ्यासतोऽत्राद्रौ, स्वयमेव चटत्यसौः // 178 / / भावार्थ-दरेक जन्ममा आ पर्वतना शिखर उपर वैतरु करवा माटे हमेशा चडवाना अभ्यासर्थी आ भवमा | पण आ गधेडो पर्वतः उपर पोतानी मेळे चही जाय छे // 178 // श्रुत्वेति भूपतिस्तस्य, सारार्थ कृपया ददौ / शिक्षा कुम्भकृते सोऽपि, यत्नात्तं पर्यपालयत् // 179 // भावार्थ--आ प्रमाणे राजाए मधेडा- वृत्तान्त श्रवण करी दया आक्वाथी तेनी सारवार माटे कुंभारने | शिखामण आपी, स्पास्थी कुंभार पण तेनुं सारी रीते पालन करवा लाग्यो / 179 // अथासौ भद्रकस्वान्तो, मृत्वा ग्रामे मुरस्थले / / .. . प्रामणीर्भानुनामाऽभूद्, राज्ञा निर्वासितोऽन्यदा // 18 // मा. प्रांती बजीत मायरो गणी शासन प्रसिय वक्ता पंन्यासमी भीमा Ramanamannaadioamarents P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / 'भावार्थ-तदनन्तर भद्रक मनवाळी गडी मरण पामीने मुरस्थळ गाममा भानु नामनी गामनी मुखी थयो, 11 त्यां कोइ पण कारणसर राजानो अपराधी बनवायी एक दिवसे राजाए गाममाथी काढी मूक्यो // 18 // गङ्गावर्ते स्थितः सोऽथ, वृत्तिलोपमसासहिः। तरेव, द्रव्यैः स्वं निरवीवहत् // 181 // भावार्थ-राजाए गामाथी काही मकेलो भानु गंगाने कांटे रहेवा लाग्यो, अने पोतानी चाल आजीवि- || च. कानो नाश नहीं सहन यवायी पापथी भरपूर क्रूर कार्योथी पैसा उपार्जन करी ते बड़े पोतानो निर्वाह चलावका ||166 / लाग्यो // 181 // श्रीशनुज्जययात्रातो, निवृत्तः कोऽपि वाडवः। पत्नी-पुत्रयुतस्तत्र, रात्री ग्रामे समेतवान् // 182 // भावार्थ-एक दिवसे श्रीशत्रुजय तीर्थनी यात्रा करी पाछो फरेलो कोइ ब्रामण पोतानी स्त्री अने पुत्र सहित ते मुरस्थल गाममा रात्रे आच्यो // 182 // भक्तदत्तां गृहीत्वा गां, सोऽन्त्ययामे चलस्ततः / गो पत्नी-पुत्रयुक् तेन, दुष्टेनाऽघाति भानुना // 13 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. भावार्थ-त्यां पोताना कोइ भक्ते आपेल गायने ग्रहण करी ते ब्राह्मणे सत्रिम छेल्ला पहीरने विष पोताना गाम तरफ जवा प्रयाण कयु, तेवामा ते दुष्ट भानुए आवीने गाय, पत्नी अने पुत्र सहित मारी नाख्यो // 183 // ततः पापी पलाय्याऽगाद, गनावर्ते यदा तदा। ....:-.:: : शीततौ सायमद्राक्षीत्, कायोत्सर्गस्थितं मुनिम् // 184 // भावार्थ-त्यांथी महारौद्र अध्यवसायी भानु नासीने गंगाने काठे पोताने स्थाने चाल्यो गयो, गंगाने काठे || . सायंकाळे शियाळानी ठंडी ऋतुपां एक मुनिराजने काजसग्गल्याने उभा रहेला जोया // 184 // 67 . . अहो! कियचिरं कष्ट-मसावत्र सहिष्यते / ... इति विस्मयवांस्तस्थौ, तत्र यामचतुष्टयम् // 185 // भावार्थ-शियानानी कडकडती ठंडीमा सायंकाले काउसग्ग ध्याने उभा रहेला महात्माने जोइ भानु विचार करवा लाग्यो के-'अहो ! आ मुनिराज केटलो वखत आवा प्रकार कष्ट सहन करशे ?' एम आश्चर्ययुक्त बन्यो छतो त्यांज रात्रिना चार पहोर रह्यो // 185 // प्रातः स पारितोत्सर्गः, प्रणम्याश्मच्छि भानुना। P.P.AC. GunratnasuriM.S. किं कार्य प्राज्यराज्येन, यदेवं तपसे तपः // 186 // Jun Gun Aaradihas Just / Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना. . 68 ___ भावार्थ-मातः समय मुनिए. काउसंग्ग पार्यों, त्यारे भानुएँ नमस्कार करीने पूछयु के-'महाराज ! तमारे || कोइ मोटुं राज्य मेळवद् छे के जेथी आवी घोर अने असह्य तपश्चर्या करों छो 1.5 // 186 // .. मुनिः प्रोचे न राज्येन, कार्य नरकहेतुना। किन्तु मोक्षकृते सर्व-साधुभिस्तप्यते तपः // 187 // भावार्थ-मुनिए जवाब प्यो के-'नरकगति प्राप्त यवाना कारणभूत राज्य मारे काइ पण काम नथी, || परंतु सर्वे साधुओ मोक्ष मेळवा माटे तपश्चर्या करें छे // 187 // ....... को मोक्ष इति तेनाऽपि, पृष्टः साधुरभाषत। . .. संसार-मोक्षयोळक्तं, स्वरूपं बटुयुक्तिभिः॥१८॥ भावार्थ-मानुए पूछयु के-'मोक्ष एटले शृं?" त्यारे मुनिराजे तेने संसार अने मोक्षवें स्पष्ट स्वरूप घणीज युक्तिपूर्वक समजाव्यु // 18 // असौ जन्मजरामृत्यु-मुख्यक्लेशसहस्रः। . चतुर्गतिकसंसार, कस्क स्यान विरक्तये ?. // 189 // . ................ PP.AC.Gunratnasuri M.S. IT GUTTAaraunaK Trust Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . - भावार्थ-वळी जणाव्यु के जन्म, जरा अने मृत्यु विगैरे हजारो दुःखथी गहन बनेला. चार गतिरूप आ || संसारथी कोने वैराग्य न याय // 189 // 7 . शाश्वताऽनन्तसौख्यश्री-निवास वासवा अपि / . . . ना स्वर्गसौख्यमनाहत्य, याचन्ते मोक्षमुत्तमम् // 19 // भावार्य-शाश्ववा अने अनंता मुखरूप लक्ष्मीनुं निवास स्थान मोक्ष छ, आ मोक्षमुख पासे स्वर्गमुलं पण के तुच्छ के, अने त्रेयीज इन्द्रो पण स्वर्गमुखनो अनादर करी आवा अनुपम मोक्षने माटे याचना करी रखाछे // 190 // पर सप्राप्यते प्रायः कृतः सुकृतकर्मभिः।... ..मुख्यं तेष्वपि सर्वज्ञः, सर्वसत्त्वकृपोच्यते // 191 / / भावार्थ-इंद्रो पण जेनी असे पोतानुं स्वर्गमुख तुच्छ समजी जेने माटे तळसी रया छ एको उत्तमोत्तम मोक्ष प्रायः सुकृत को वहें जीवो प्राप्त करे छे. ते मुकृतकर्मोमां. पण सर्व जीवो. उपर करुणाभाव सखयो ए मुख्य मुकतकर्म सर्वनोए. कबुं छे // 191 // कृपाधिकारे जीवानां, हिंसाऽहिंसाफलं तथा / उपादिष्टं यथा मान-श्रक्रम्पे निजपपिके: // 1.92 . ... . ..... P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / AT. भावार्थ-आ प्रमाणे जीवदयाना अधिकारमा प्राणीओने हिंसा करचाथी केवा माठां फळ भौगवां पड़े / छे, अने दया राखवायी केवां अनुपम मुख भोगवे छे ते सर्वनुं एवं स्पष्ट स्वरूप ते मुनिराजे समजाव्युं के जेथी भानु पोताना करेला पापयी कंपवा लाग्यो // 192 // . ___ यावजीवमथादाय, हिंसानियममुत्तमम् / साघु स्वाऽवसथे नीत्वा, शुद्धान्नैः प्रत्यलाभयत् / / 193 // भावार्थ-हवे ते मुनिराज पासे जींदगी पर्यंत हिंसाना उत्तम नियमने ग्रहण करी, साधु महाराजने पोताने घेर कइ जइ शुद्ध अन्नथी प्रतिकाभ्या // 193 // एवं लेनाऽर्जितं भोग-फलं कर्म ततोऽनिशम् / कृपावान् पूज्यते लोका-दाप्तस्वो जीविकां ध्यधात् // 194 // . भावार्थ---आ प्रमाणे तेणे अहिंसावत अहण करवायी अने मुनिराजने भावपूर्वक वहोराववाची भौगरूपी / फळ आपनाएं शुभ कर्प उपार्जन कर्युत्यार पछी निरंतर दयावाळो ते लोकोमा माननीय थयो, अने लोको || पासेसी शुद्ध नीतिपूर्वक द्रव्य मेळवी पोतानी आजीविका चलावा लाग्यो // 194 // Jun Gun Aaradhak Trust Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पान्ते मृत्वा दानपुण्याद्, राजन् ! राजा भवानभूत् / शुद्धजीवदयापुण्याद्, रूपनिर्जितमन्मथः // 195 // भावार्थ-हे सजन् ! आयुष्य पूर्ण यता भानु मरण पामी, मुनिराजने दान आपवाना पुण्यथी नाभाक नामनो हुँ राजा थयो छे, अने शुद्ध जीवदया पाळी उपार्जन करेला पुण्ययी कामदेव करता पण तने अधिक रूप | ना. प्राप्त ययं छे // 195 // चन्द्रादित्योऽपि सम्पूर्ण-निर्मापितजिनालयः। . प्रायश्चित्तेन शुद्धात्मा, सौधर्मे त्रिदशोऽभवत् // 196 / / / भावार्थ-पूर्वभवमो पेनद्रव्यनो विनाश करवाथी कोढियो थयेलो चित्रपुरी नगरीनो राजा चन्द्रादित्य के || जे मुनिराजना उपदेशथी परमेष्ठी पहामंत्र ध्यान करी छ मासमां कांचन जेवी कातिवाळो थयो हतो, तेणे चित्रकूट पर्वतना शिखर उपर आरंभेल जिनालय संपूर्ण कराव्यु. आची रीते प्रायश्चित्त करी शुद्धात्मा थयेलो ते भरण पामी सौधर्म देवलोकमां देव धयों // 196 // त्वं तत्रैव भवे मूर्त-पुण्यवजिनमन्दिरम् / पातयित्वा पुरस्याऽस्य, परितो दुर्गमातनोः // 197 // PP.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... | भावार्थ-हे नामाकराजा! तुं भानना भवर्मा मुरस्थल गाममा मुखी हतो तेज भवर्मा ते साक्षात पुण्यस्वरूप || जिनमंदिरने पाडी नाखी गामनी चारे बाजु किलो बनान्यो हतो // 197 // . भूपैवं तत्र विप्रस्त्री-भ्रूणगोतीर्थघातिनः। पश्च हत्या इमाः सर्वाः, पुण्यविघ्ननिबन्धनम् // 198 // . भावार्थ-हे राजन् ! आ प्रमाणे भानुना भवमा ते विपघात, स्त्रीघात, पालघात, गौघांत अने तीर्थयात || च. आची रीते पांच मोटी इत्याओ करी इती, आ सर्व हत्याओ तने आ भवर्मा पुण्यनुं विघ्न यवाचं कारणभूत ||72 ययेली छे // 198 // तत्रापि यागाविघ्नस्य, तीर्थहत्यैव कारणम् / अतस्तदपनोदाय, प्रायश्चित्तमिदं शृणु // 199 // भावार्थ-तेोमां पण तने शर्बुजयनी यात्रामा आवी पडेला विघ्न कार दूर करवा माटे आ प्रकारे प्रायश्चित्त सांभळ // 199 // तपोऽभूद् वार्षिकं मूल-मादिदेवस्य वारके। अष्टमास्यधुना मावि-वारे पाण्मासिकं ततः॥२०॥ PP.AC. Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... भावार्थ-तीर्थकर श्रीआदीश्वर प्रभुना वारामां मूळ बार मासी तप हतो, अत्यारे आठ मासी तप छे, अने भाविकाळमा छ मासी तप थशे // 20 // सर्वोत्कृष्टं तपः प्रायश्चित्तमेतदुदीरितम् / विशेषस्तु तीर्थहत्या-कृतां तीर्थविधापनम् // 201 // .. भावार्थ-सर्वथी उत्कृष्ट प्रायश्चित्त उपर जणावेल तप कह्यो छे, विशेष एटलो के-तीर्थहत्या करनाराओए I Nare तीर्थनी स्थापना करवी जोइए // 201 // विशिष्टाभिग्रहाः प्रोक्तं, प्रायश्चित्तं चरन्ति ये। शत्रुजंयादितीर्थेषु, ते मुच्यन्तेऽखिलैनसा // 20 // भावार्थ-जेओ उपर कहेलं प्रायश्चित्त विशिष्ट प्रकारना अभिग्रहो लइ शत्रुजयादि तीर्थोमा जइ आचरे छ, ! तेओ समग्र पापथी मुक्त थाय छे // 202 // . .. .:. इति श्रुत्वा नृपो दुर्ग-प्रवेशनियम ललौ। आकार्य सर्वलोकं च, तत्रैवाऽतिष्ठिपत पुरम् // 203 // प्रांतीन. त सागरजी गयी .. पति पता संपादकसी भी goateLAHSUNSEREYGoatSaPROBERTips ___ P.P.AC.Gunratriasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust . Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || ना. . 11. भावार्थ-आ प्रमाणे श्रीयुगंधरसूरिनो उपदेश सांभळी तेज वखवें नामांकराजाए किल्लामा प्रवेश करवानो || नियम ग्रहण कर्यो, अने सर्व प्रजावर्गने बोलायी त्यांज नगर वसाव्युं // 203 स्थापयित्वा गुरूस्तन्त्र, जग्राहाऽभिग्रहानिति / यावद्यात्रां विधायात्रा-यामि तावत् क्षितौ शये // 24 // अब्रह्म दधि-दुग्धे च, वर्जयामि क्रमादिदम् / तीर्थ-ब्रह्मा-ऽपत्यहत्या-शुद्धयै मेऽभिग्रहत्रिकम् // 205 // 74 / परस्त्री मांस-मद्ये च, यावजीवमतः परम् / त्यक्तानि नियमा एते, स्त्री-गोहत्याविमुक्तये // 206 // त्रिभिर्विशेषकम् / भावार्थ-गुरुमहाराजने पण त्यांज राखी तेओश्री पासे नामाकराजाए आ प्रमाणे अभिग्रहो ग्रहण कर्या|| ज्यां सुधीमा हुं श्रीशत्रुजय तीर्थनी यात्रा करी पाछो अहीं आईं त्यां सुधी पृथ्वी पर शयन करीश. तीर्थहत्यानी शुद्धि माटे यात्रा करीने पाछो आq त्यां सुधीमा मैथुननो त्याग करूं छु, ब्राह्मणहत्यानी शुद्धि माटे. दहीनो त्याग. करु छ, अने बालहत्यानी शुद्धि माटे दूधनो त्याग करूं छु, स्त्रीहत्या अने गौहत्यानी शुद्धि माटे यावज्जीव परस्त्री | मांस अने मधनो त्याग करुं छु // 204-205-206 / / P.P.AC. Ganratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Mala.. . - Manipariuout Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ % ..... नियोज्य स्वजनान्नव्य-प्रासादार्थे गुरोगिरा। एकान्तरोपवासैः सोऽष्टमासीतप आददे // 207 // भावार्थ-स्यार पछी गुरुमहाराजना उपदेशथी नवीन देरासर बंधाववा माटे पोताना माणसोने आज्ञा करी | || एकांतरे उपवास करवा पूर्वक तेणे अष्टमासी तप शरु कर्यो // 207 // सिद्धिं गतेऽथ प्रासादे-अष्टभिर्मासैः स काञ्चनाम् / - श्रीआदिदेवप्रतिमां, स्थापयामास सोत्सवम् // 208 // 75 भावार्थ-आठ महिने देरासर पूर्ण थयुं त्यारे नाभाकसजाए ते देरासरमा म्होटा उत्सव पूर्वक श्रीऋषभदेव प्रभुनी सुवर्णमय प्रतिमा प्रतिष्ठित करावी // 208 // तत्र त्रिकालं सर्वज्ञ-मर्चयन् विधिवन्नृपः। सासाष्टकेन सम्पूर्णी-चक्रे शेषतपोऽखिलम् // 209 // भावार्थ-पोते बंधावेला नवीन देरासरमा प्रतिष्ठित कारावेली श्रीऋषभदेव सर्वज्ञनी अतिमानी हमेशा त्रण || काळ विधियुक्त पूजा करतां नामाकराजाए आठ महिने बाकीनो तंप पूरो कर्यो // 209 // D ना P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थहत्याविनिर्मुक्तः, शुभेऽहि भरतेशवत् / ..श्रीशत्रुञ्जययात्रार्थ, चचाल गुरुभिः सह // 210 // ... भावार्थ-आ प्रमाणे अष्टमासी तप करवायी अने नवीन देरासर बंधाववाथी तीर्थहत्याना पापी मुक्त थयेल ते नामाकराजाए शुभ दिवसे चक्रवर्ती भरतेश्वर महाराजांनी पेठे श्रीशत्रुजय तीर्थनी यात्रा निमित्ते गुरु महाराज साथे त्यांथी प्रयाण कर्यु // 210 // चतुर्धाऽऽद्यप्रयाणेषु, मार्जारीषु पदोपरि। . . समुत्तीर्णासु त तुं, पृष्टाः श्रीगुरवोऽवदन // 211 // भावार्थ-श्रीशत्रुजयनी यात्रा माटे नाभाक राजा प्रयाण करतो हतो तेवामां शरुआतमा ज चार बिळाडी तेना पग आगळ थइने चाली गइ. राजाए गुरुमहाराजने तेनुं कारण पूछ्युं, त्यारे गुरुमहाराजे कह्यु के-॥ 211 // घालादिहत्याः स्वं भावं, पुण्यप्रत्यूहहेतवे / दर्शयन्ति परं सिद्धि-ध्रुवं स्यादेकचेतसः // 212 // भावार्थ-" हे राजन् ! ते जे पूर्व भानुना भवमा बालहत्यादि हत्याओ करी हती ते पापो पुण्यकार्यमां / / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विघ्न करवा माटे पोतानो भाव भजवे छे, पण पुण्यकार्यमा प्रवृत्त थयेल दृढ चित्तवाळो खरेखर पोताना कार्यमा || फत्तेह मेळवे छे" // 212 // . .. मत्वैवमेकचित्तः स-नादिदेवस्मृतौ नृपः। . उपशत्रुजयं प्रापा-ऽनवच्छिन्नप्रयाणकैः // 213 // :. भावार्थ-आ प्रमाणे गुरु महाराजनुं वचन हृदयमा सद्दहीने श्रीमान् आदीश्वर प्रभुना ध्यानमां एकाग्र मनवालो नाभाक राजा अस्खलित प्रयाणथी श्रीशत्रुजय पर्वत पासे पहोंच्यो // 213 // . ..... दृग्विषयं तीर्थे प्राप्ते, निजसैन्यं निवेश्य सः।... शुचिर्भूत्वाऽभितीर्थ च, पदानि कतिचिद्ददौ // 214 / / .. ... 'सिंहासनेऽथ न्यस्याऽहंदु-बिम्बं सकलसङ्घयुक् / . ..... स्नपयित्वा ततः सर्व-पूजाभेदैरपूजयत् // 215 // भावार्थ-श्रीशत्रुजय तीर्थ दृष्टिए पडयु के तुर्त पोताना सैन्यने त्यांज स्थापन करी, शरीरे पवित्र थइ, तीर्थ || सन्मुख केटलाएक डगला आगळ जइ, सर्व संघ सहित सिंहासन पर अरिहंत प्रभुनी प्रतिमा पधरावीने ते प्रतिमानी || म पखाळ करी पूनानी सर्व सामग्री वडे विधिपुरःसर पूजा करी // 214-215 // भुपत कागरजी गली सिद धाशा पन्यासकी। अष्ट्र BukutteivelineDNEYatuildin sabsitya म P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वर्णरूप्ययवै रत्न-स्थालेऽथो मङ्गलाष्टकम् / आलिख्याऽष्टोत्तरशत-वृत्तैः सानन्दमस्तवीत् // 216 // भावार्थ-त्यार बाद रत्नना थाळमा स्वर्ण अने रूपाना जवीथी आठ मंगल आलेखीने हृदयना उल्लासथी || .. एकसो आठ श्लोको बड़े भावपूर्वक प्रभुनी स्तुति करी // 216 // शक्रस्तवेन वन्दित्वा, सिद्धादि चाऽथ सद्गुरून् / नत्वा स्वर्णमणिरत्न-मुक्ताभिस्तानवीवधत् // 217 // भावार्थ-त्यार बाद नमुत्थुणं चड़े सिद्धाचलने वांदी, गुरु महाराजने नमन करी ते भोने नर्ण, मणि, रत्न अने मोती बड़े वशव्या // 217 // दत्त्वा यथेच्छमर्थिभ्यो, दानं मिष्टान्नभोजनः / अतूतुषत् सर्वलोकान् , धार्मिकांश्च विशेषतः // 218 // भावार्थ-याचक जनोने इच्छित दान आप्युं, तेमन मिष्टान्न भोजन वडे सर्व लोकोने संतुष्ट कर्या, तेमां पण धार्मिक पुरुषोनी तो विशेष प्रकारे आदर सत्कार पूर्वक भक्ति करी तेओने संतोष उपजाव्यो / / 218 // P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- - ना च. ततोऽतिक्रान्त शेषाऽध्वा, पुरस्कृत्य गुरुं नृपः। . रेजे चटन् गिरि मुक्त्यै, प्रस्थानं साधयन्निव // 219 // || भावार्थ-त्यार पछी बाकीनो मार्ग उल्लंघन करी गुरुमहाराजने आगळ करी जाणे मुक्तिने माटे प्रस्थान साधतो होयनी! तेवी रीते शत्रुजय उपर चडतो राजा शोभवा लाग्यो // 219 / / प्रासाददर्शने पूर्व-मपूर्वोत्सवपूर्वकम् / याचकेभ्यो दददानं, कल्पवृक्षायते स्म सः // 220 // .. भावार्थ-पहा पवित्र तीर्थ श्रीशत्रुजप उपर चडतां प्रथम श्रीआदीवर प्रभुना देरासर दर्शन थतांज अपूर्व || याचकीने दान आपतो ते नाभाक राजा साक्षात कल्पवृक्ष सपान देखावा लाग्यो / 220 / स्नात्रपूजाध्वजारोपा-ऽमारिस्नानाशनादिकम् / . सव सङ्घपतधेमे-कमीऽष्टाहमपि व्यधात् // 221 // भावार्थ-ते नाभाक राजाए अट्ठाइ महोत्सव करी आठे दिवस स्नात्रपूजा, ध्वजारीपण, * अमारिपडह, || / स्नान, स्वामिवात्सल्य विगेरे संघपतिनां धर्म कार्यो कर्या // 221 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - तीर्थसेवाचिक / Hom तीर्थसेवाचिकी मा-नापृच्छयाऽथ विधिं गुरून् / . धर्मध्यानैकलीनात्मा, त्रिकालं पूजयन् जिनम् // 222 / / अहोरात्रं पवित्राङ्गो, महामन्त्रमसौ स्मरन् / साधून सार्मिकांश्चाऽपि, प्रतिपारणकं स्वयम् // 223 // . सत्कारयन् यथायोग्यं, भक्तपानैर्यथोचितः। मासेन दश षष्ठानि, निरम्भांसि वितेनिवान् // 224 // त्रिभिर्विशेषकम् / 80 भावार्थ-तीर्थसेवा करवानी इच्छा राखनार नाभाक नृपे गुरु महाराजने विधि पूछी, धर्मध्यानमा लीन | आत्मावाळो थइ, त्रणे काल अरिहंत प्रभुनी पूजा करतां, पवित्र अंगवाळो थइ रात्रि-दिवस परमेष्ट्री महामंत्रनं / / स्मरण करता, दरेक पारणाना दिवसे साधुओने अने साधर्मिक बंधुओने यथायोग्य उचित भोजन-पानथी सत्कार li करता एक मासमां दस छठनी तपश्चर्या पाणी विना करी // 222-223-224 // दिने त्रिंशत्तमे ब्राह्म-मुहूर्ते तेन वीक्षिताः। चतस्रा पदिकामात्रा, मार्जार्यः कर्बुराः पुरा // 225 // - - PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust mernam... .... Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ-ते राजाए त्रीशमे दिवसे ब्राह्म मुहूर्ता पोतानी आगळे पगला मात्र प्रमाणवाली चार कोबरा वर्ण| नी बिलाडी जोइ // 225 // ब्रह्मादिहत्या एतास्ता, क्षीयन्ते तपसो बलात् / अनुमीयेति स प्राग्वद, विधेऽथाऽष्टमाष्टकम् // 226 // भावार्थ-" में पूर्व भानुना भवमा करेली ब्राह्मण विगैरेनी हत्याभो तपस्याना प्रभावी क्षीण थी जायन छ” ए प्रमाणे पूर्वनी जेम अनुमान करी आठ अहम कर्या // 226 // - तदन्ते कालमात्रास्ता, वीक्षिता धूसराः पुनः / / ... मत्वा तथैव ताः प्राग्व-चकार ददामानि षट् // 227 // भावार्थ-आठ अहमने छेडे ब्राह्म मुहूर्तपां कोयळना परिमाणवाळी धूसर वर्णनी चार बिलाडी || जोइ, त्यारे पण पूर्वनी जेम 'ब्रह्महत्यादि हत्याओ क्षीण थती. जाय छे' ए प्रमाणे मानी नॉभाक राजाए छ चारउपवास कर्या // 227 // .' - तत्वान्ते मूषिकामात्रा, दृष्टास्ता धवलाः पुनः। ... -- ततो विशेषतो. हृष्ट-श्चक्रे छादशपञ्चकम् // 228 / / . .. Filप्रांतीक्षा Deadekura ईजीत साक शाखासंग्रह असिख का....... पहली भीमा Fougmgeer P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Sun Aaradhak Trust Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'भावार्थ- चारउपवासनी तपश्चर्याने छेड़े उदरना प्रमाण जेटली चार धोळी बिलाड़ी जोइ, तेथी विशेष || हर्षित थयेला नामाक राजाए पांच पांचऊपवास कर्या // 228 // ईषन्निद्रान्तरेकोन-त्रिंशत्तमदिने ततः। नमस्कारान् स्मरनेव, स्वप्नमेवमलोकत // 229 // भावार्थ-त्यार बाद ओगणत्रीशमा दिवसे नमस्कारनुं स्मरण करता करता ज थोडी निद्रा लीधी. निद्रामा || heal एवं स्वप्न जो' के-॥ 229 // क्वाऽपि स्फटिकशैलेऽहं, सोपाने प्रथमे स्थितः / . ... केनाप्यतीववृद्धेन, कृशेन लोठितः परम् / / 230 / / प्राप्तो बितीयसोपानं, तृतीयं च गतस्ततः / शैलशृङ्गमथारुह्य, मुक्तराशौ निविष्टवान् // 231 // युग्मम् / भावार्थ-"हु कोइ स्फटिक पर्वत उपर पहेले पगयीये चड्यो इतो, तेवामां कोइ एक कृश अने अत्यंत वृद्ध // LL P P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak, Trust Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना. || पुरुषे धक्को मारी गबढ़ाव्यो, परंतु नीचे जवाने बदले उलटी बीजे पगयीय प्राप्त थयो, त्यार पछी बीजे पगथीये // चड्यो, क्रमसर पर्वतना शिखर उपर चडी छेवटे मुक्तिमा जइ बेठो " // 230-231 // प्रभो! फलं किमस्येति, पृष्टा, श्रीगुरवो जगुः। स्फटिकाद्रिर्जिनधर्मः, सोपानं मानुषो भवः // 232 // भावार्थ-आ प्रमाणे आश्चर्यकारी स्वप्न जोइ जागृत ययेला नाभाक राजाए प्रातःकाले मुनिराजने पूछयु के-'प्रभो! आ स्वप्नन फळ शृं?' त्यारे गुरुमहाराजे कयु के-"जे तुं स्फटिक पर्वत उपर चड्यो ते ज़िनधर्म ||८श जाणवो, ते पर्वतना पहेला पगथीया रूप मनुष्य जन्म समजवो / / 232 // 'अतो धर्माच्च यत्नेना-ऽन्तरायस्वल्पकर्मणा / पात्यमानोऽपि सत्त्वेना-ऽच्युतस्त्वं स्वर्गमिष्यसि // 233 // . भावार्थ-आ जिनधर्म रूपी स्फटिक पर्वतना पहेला पगयीयायी अंतराय रूपी स्वल्प कर्म वडे गवडावातो छतां सत्व वढे दृढ रहेलो तुं पतित नहीं थयो छतो देवलोक रूपी बीजे पगथीये जइश // 233 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानं तृतीयसोपानं, नृभवेऽवाप्य केवलम। सर्वकर्मविनिर्मुक्तो, मुक्तराशौ निवेक्ष्यसि // 234 // भावार्थ--देवलोकमाथी च्यवी मनुष्यभवमा आवेलो तुं सर्व कर्मोथी रहित थयो छतो त्रीजा फ्गीया रूप || केवलज्ञान पामी मोक्षराशिमा प्रवेश करीश // 234 / / परं तत् प्राक्तनं कर्म, च्छमस्थत्वान्न बुध्यते। अतः पृच्छ विदेहेषु, श्रीमत्सीमन्धरं जिनम् // 235 // 1841 भावार्थ-परंतु हुं छद्मस्थ होवाथी तें पूर्वे करेलुं ते अन्तराय कर्म जाणी शकतो नीं, माटे महाविदेह क्षेत्रमा विराजमान श्रीसीमंधर प्रभुने पूछ " // 235 // . प्राप्नोमीहक्कथं राज्ञे-त्युक्ते श्रीगुरवोऽवदन् / ___ भवत्पुण्यप्रभावेण, भवितेत्यचिरादपि // 236 // भावार्थ-नाभाक राजाए पूछ्यु के-'श्रीसीमंधर स्वामी पासे केवी रीते जवाय ?'. त्यारे गुरुमहाराज | बोल्या के-'तमारा पुण्यना प्रभावथी योडाज वखतमा तमारे त्यां जवानुं थशे // 236 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. .: Jun Gun Aaradhak Trust Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एतद्विशेषलाभाया-दिदिशे गुरुणा तदा।। अन्यथा केवलिप्रश्नात्, पूर्वविद् बुध्यतेऽखिलम् // 237 // भावार्थ-ते वखते नाभाक राजाना विशेष लाभ माटे युगंधरमूरिए उपर प्रमाणे कां, नहींतर चं | पूर्वना जाणकार तो केवली भगवान ने पूछवाथी सर्व वात जाणी शके छे / / 237 // . अथाऽन्तरायविच्छित्यै, पारणाहेऽप्युपोषितः। ईषन्निद्रां गतो याव-जागर्ति स निशात्यये // 238 // तावद्धीक्ष्य महारण्ये, पतितं स्वं व्यचिन्तयत् / हा हा! कथं स एवाऽय-मन्तरायः समापतात् // 239 // युग्मम् / . भावार्थ-त्यार बाद अंतराय कर्मनो विच्छेद करवा माटे राजाए पारणाने दिवसे पण उपवास कर्यो. अने धर्मध्यान पूर्वक रात्रे सूइ गयो. थोडी निद्रा करी रात्रिना छेल्ले पहोरे जेवामा जागे छे तेवामा पोताने एक मोटी || विकट अटवीमां पडेलो जोइ विचारता लाग्यो के-अरेरे! शं मने गुरु महाराजे जे अंतराय कर्म कह्यु हतुं तेज उदयमा आबी पडयुं ? // 238-339 / / ..P.P.Ac:Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust. Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना. अथवाऽलं विषादेन, श्रीशत्रुञ्जयनायकम् / 'नत्वा श्रीऋषभदेव-मादास्ये भक्तपानकम् // 240 // भावार्थ-अथवा विशेष खेद करवाथी शुं वळवार्नु छ ?. श्रीशत्रुजय तीर्थना अधिराज भगवान् श्रीआदीश्वर / प्रभुने बंदन कों बाद हुं भोजन अने जल वापरीश / / 240 // निश्चित्येत्यनुपानत्का, क्षर द्रक्ताकुल क्रमः / तपःक्रान्तस्तृषाक्लान्तः, परिश्रान्तः क्षुधार्दितः // 241 // मध्याहातपसंतप्त-वालुकाभिः पथि ज्वलन् / अनिर्विष्णमना देव-ध्यानादेव चचाल सः / / 242 // युग्मम् / भावार्थ-आ प्रमाणे पोते दृढता पूर्वक नियम ग्रहण करी, पगरखा रहित होवाथी अटवीमां चालतां लोहीथी खरडायेल पगवाळो, तडकाथी आकुल बनेलो, पाथी शरीरे ग्लानि पामेलो, चालता चालता थाकी गयेलो, भूखथी पीडायेलो, अने खरा बपोरना तडकाथी तपी गयेली रेती वडे परे रस्तामां बळतो छतो पण चित्तमा जरा पण खेद नहीं लावतो ते धैर्यवान् नाभाक राजा आदीश्वर प्रभुनं ध्यान धरतो थको आगळ चाल लाग्यो / 241-242 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना. अपराहे पुरः क्वापि, कयाचिन्नवनिस्त्रिया। ढौकितं न फलमादत्, सत्त्वान्नाऽपि पयः पपौ // 243 // भावार्थ-राजा अगाडी चाल्यो जायछे तेवामा बपोर पछीना समयमा कोइक नवीन स्त्रीए आवी तेनी सन्मुख सुंदर फळ तथा शीतल जळ मूक्युं, पण तेने श्रीआदीवर प्रभुनुं दर्शन का सिबाय कांइ पण वस्तु खावानो तथा जल पीवानो दृढ नियम होवाथी सत्वशाळी ते महापुरुषे फळ खाई नहीं तेम जळ पण पीधुं नहीं // 243 // || च. . .. तया सह महःस्तोम-व्योमव्यापिनि मन्दिरे।। 187) - आश्चर्यपरिपूर्णान्तः, स्वच्छेन मनसा ययौ // 244 // भावार्थ-त्यार बाद आश्चर्यथी पूर्ण बनेला हृदयवाळो नामाक आकाशमा व्यापी रहेला तेजना झळहळाट वाळा एक महेलमा ते स्त्री साथे स्वच्छ चित्ते गयो // 244 // स तत्र चित्रकृद्रपाः, सारशृङ्गारहारिणीः। हरिणाक्षीनिरीक्षिष्ट, विलसन्तीः सहस्रशः // 245 // भावार्थ-पोताने अपरिचित ते नूतन प्रासादमां नाभाक राजाए आश्चर्य उत्पादक स्वरूपवाळी, उत्कट बारी, मनोहर विलास करती हजारो सुंदरीओने जोइ / / 245 // P.AC.GunratnasuTIMES Jun Gun Aaradhak Trust Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M तासां मध्यादथोत्थाय, स्वामिनी हंसगामिनी / ...... . योजिताञ्जलिरभ्यत्य, सानुरागमदोऽवदत् // 246 // भावार्थ-ते मनहरणी सुंदरीओमाथी तेओनी स्वामिनी एक अग्रेसर स्त्री ऊठीने हंसनी जेवी मंद मंद गति || करती नामाक राजा पासे आवी, अने वे हाथ जोडी प्रेमपूर्वक बोली के-॥ 246 // .... अस्मदीयेन भाग्येन, समेतोऽसि गुणोदधे! / - स्त्रीणां राज्यमिदं विद्धि, योऽति पतिरेव नः // 247 / / भावार्थ-" हे गुणसमुद्र ! तमे अमारा भाग्यथीज अहीं पधार्या छो, आ स्त्रीओ राज्य छे, अने जे अहीं आवे छे तेने अमे पति तरीकेज मानीए छीए" // 247 // श्रुत्वेति नृपतिर्दध्यौ, सङ्कटान्तरमागतम् / मौनमेवाऽन मे श्रेयो, मौनं सर्वार्थ साधनम् // 248 // भावार्थ-आ प्रमाणे स्नेह सहित प्रेपाळ वचनविलास सांभळी राजा विचारवा लाग्यो के-"आ बळी | मारे माथे बीजु संकट आवी पडयुं !. 'इतो व्याघ्र इतस्तटी' ए न्याय प्रमाणे हुं पण अहीं सपडायो 9. हवे | - P.P.Ac-GunratnasuriM.S. . Jun Gun Aaradhak Trust 2 . net Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवा प्रसंगे मारे मौन धारण करवू एज सर्वथा श्रेयस्कर छे, कारण के-मौन ए सर्व इच्छित वस्तुनुं साधन || छे" // 248 // इति तूष्णी स्थिते भूपे, मुख्यादिष्टाः स्त्रियोऽपि ताः / स्नानभोजनसामग्री, सज्जीकृत्योपतस्थिरे // 249 // भावार्थ-आ प्रमाणे ज्यारे राजाए मौन धारण करी कांइ पण उत्तर आप्यो नहीं त्यारे ते मुख्य स्वामि-!! नीए हुकम कराएल बीजी सुंदरीओ स्नान अने भोजननी सामग्री तैयार करी राजानी समक्ष लावीने उपस्थित थइ. अने कयु के-॥ 249 // प्रसव सद्यः प्राणेश!, स्नात्वा भुक्त्वा यथारुचि। / यावजीवं सहाऽस्माभि-भोगान् शुक्ष्वाऽकुतोभयः // 25 // भावार्थ-“हे प्राणेश ! अमारा उपर जलदी कृपादृष्टि करी, यथारुचि स्नान अने भोजन करी अमारी साथे जींदगी पर्यंत भोग भोगवो. अहीं तमारे कोइ पण तरफथी कांइ पण भय राखवो नहीं" // 25 // एवं वदन्त्यः शीताम्भः, सिता-द्राक्षाम्भसी अपि। सिताघृतपुरस्निग्ध-पायसादि च तत्पुरः // 251 // अजील माजी गनी , अखिस्ता यावनी मद, P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / .. प्रदश्य चाटुभिर्वाक्यै-रुपसर्गाननेकशः। .... पूर्व कृत्वाऽनुकूलांस्ताः, प्रतिकूलानपि व्यधुः // 252 // युग्मम् / भावार्थ-आ प्रमाणे बोलती छती ते मन हरणी सुंदरीओए नामाक राजा आगळ शीतल अने सुवासित जल, साकर अने द्राक्षानं पाणी, घी अने साकर नाखी स्वादिष्ट बनावला दूधपाक विगेरे मिष्टान देखाडी मीठां मीठां प्रीतिपूर्वक वचनो वडे पहेला तो अनेक अनुकूळ उपसर्गो कर्या, अने त्यार पछी अनेक प्रतिकूल उपसर्गो करवा मांड्या // 251-252 // .. . . ||90 / तथाप्यक्षुब्धचेताः स, धर्मे यावदवस्थितः / श्रीशत्रुञ्जयशृङ्गस्थं, तावदात्मानमैक्षत // 253 / / भावार्थ-ते स्त्रीओए अनेक अनुकूल अने प्रतिकूल उपसर्गो करवा छतां पण ज्यारे अस्खलित चित्तवालो नाभाक जरा मात्र नहीं डगतां धर्म ध्यानमा ज लीन रह्यो, तेवामा पोताने श्रीशत्रुजय पर्वतना शिखर उपर रहेल जोयो // 253 // अहो! किमेतदित्येवं, साश्चर्ये नृपपुङ्गवे / सौरभ्याकृष्टभृङ्गालिः, पुष्पवृष्टिर्दियोऽपतत् // 254 // PP. Ac Gunratnasuri M.S. VAR DIGIRAaradhai Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ-'अहो! औ ते शुं स्वप्न छ के साचो बनाव छे ?' ए प्रमाणे आश्चर्यमां गरकाव बनेलो नपर विचार करे छे तेवामा आकाशायी मुगंधीने कीधे खेंचाइ आवेळा भमराओनी पंक्तिथी व्याप्त बनेला पुष्पोनी दृष्टि पड़ी // 254 // पुर: सुरः स्फुरस्कान्तिः, कश्चित् काब्चन कुण्डलः। प्रादुर्भूयेत्यभाषिष्ट, कुर्वन् जयजयारवम् / / 255 // भावार्थ-तथा तेनी सन्मुख सुवर्णना कुंडल धारण करनार देदीप्यमान कातिवाला अने 'जय जय' शब्द करता कोइक देवे प्रगट थइने कधु के-॥२५५॥ तव प्रशंसां सद्धर्मन् !, सौधर्मस्वामिनिर्मिताम् / . . असासहिरहं सर्व-मकार्षमिदमीदृशम् // 256 // भावार्थ-" हे धार्मिक शिरोमणे ! देवलेोकमा सौधर्मेन्द्रे करेली तमारी प्रशंसा सहन नहीं थवाथी तमारी || परीक्षा माटे में आवं सर्व कार्य कर्यु छे // 256 // तत् क्षमस्व महाभाग !, यदेवं क्लेशितो भवान् / . .. तुष्टोऽस्मि तव सत्त्वेन, वरं घृणु बरं वृणु // 257 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradi Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ-हे महाभाग्यशाली! जे में तमने दुःख आप्यु तेनी क्षमा करो, हुं तमारा सत्त्वधी संतुष्ट थयो || कुं, माटे जे तमारे जोइए ते वरदान मागी ल्यो // 257 // राजाऽवोचन्न याचेह-माप्तधर्मधनः परम् / परं सीमन्धरस्वामि-निनंसां मम पूरय // 258 // भावार्थ-राजाए कह्यु के-" में धर्मरूपी अखूट खजानो प्राप्त करेलो होवाथी मारे मागवानुं कांइ रघु नथी, | पण मारे श्रीसीमंधर स्वामीने वंदन करवानी इच्छा छे ते पूर्ण कराव // 258 // 920 अथो देव-गुरुन्नत्वा, सत्त्वाधिकशिरोमणिः। नाकिक्लप्तविमानेन, विदेहेषु ययौ नृपः // 259 // . भावार्थ-त्यार बाद देवे विमान बनाव्यु, तेनी अंदर सत्त्वशाळी पुरुषोमा शिरोमणि नाभाक राजा देव अने गुरुने नमस्कार करी बेठो, अने देवनी सहायथी ते विमान बडे महाविदेह क्षेत्रमा ज्यां श्रीसाधर स्वामी विराजेला इता त्यां गयो / 259 // तत्राऽष्टमातिहार्यश्री-सेव्यं सीमन्धरं जिनम् / 'नत्वाऽपृच्छचिरत्नो मे-ऽन्तरायः कोऽयमित्यसौ // 26 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / 93 भावार्थ--त्या आठ महापातिहार्य रूप लक्ष्मी वडे सेवाता श्रीसीमन्धर जिनेन्द्रने वंदन करी पूछ्यु के-हे || प्रभो.! मने घणा लांबा काळयी शुं अंतराय कर्म लाग्युं छे ?' // 260 // , अर्थ च- समुद्र-सिंहयो ग-गोष्ठिकस्य च सा कथा / ' यथा युगन्धराचार्य, प्रोक्ता स्वामी तथादिशत् // 261 // भावार्थ-आ प्रमाणे नाभाक राजानो प्रश्न सांभळी प्रभु श्रीसीपंधर स्वामीए जेवी रीते युगंधराचार्य समुद्रपाल सिंह अने नागगोष्ठिकनी कथा कही हती तेवी रीते संपूर्ण कही // 261 // ....... .. पुनः प्राहः प्रभुभूपं, न पूर्वकृतकर्मतः। विमुच्येत क्वचित् कोऽपि, त्वमेवाऽस्य निदर्शनम् // 262 // भावार्थ-वळी प्रभुए राजाने कयु के-पूर्वभवमां उपार्जन करेला कर्मो भोगव्या सिवाय कोइ पण प्राणी कदापि छूटी शकतो नयी वेधमा ज पोते दृष्टांतरूप छे // 262 // .. ..... त्वया सिंहभवे यात्रा-ऽन्तरायोऽकारि बान्धवम् / धारयित्वा स विज्ञेयो, वृद्धः सोपानलोठकः // 263 // . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ-तें सिंहना भवमा तारा भाइ समुद्रपालने यात्रा करतां अटकावी अंतराय को हतो, अने तेथी || ते अंतराय कर्म उपार्जन कर्यु हतुं, ते अंतराय कर्मज तने पहले पगथीयेथी गबडावनार वृद्ध पुरुष जाणवो // 263 // | .... असौ नागस्य जीवोऽपि, चन्द्रादित्यभवे पुरा। क्षालिताऽखिलसत्कर्मा, सौधर्मेऽजनि निर्जरः // 264 // ... भावार्थ-वळी जे आ तारी साथे देव आवेलो छे ते नागश्रेष्ठीनो जीव छे, तेणे पहेलां चंद्रादित्यना भवमा पुण्यकर्म बडे समग्र पाप प्रक्षालन करी अत्यारे सौधर्म देवलोकमां देवता थयो छे // 264 // ...- . इति सीमन्धरस्वामि-मुखात्तौ चरितं निजम् / : श्रुत्वा प्रीतौ जिनं नत्वा, शत्रुञ्जयमगच्छताम् // 265 // भावार्थ-आ प्रमाणे सीमंधर स्वामीना श्रीमुखथी ते देव अने जाभाक राजा पोतपोतार्नु चरित्र सांभळी घणा हर्षित थया, अने ते प्रभुने वंदन करी श्रीशत्रुजय पर्वत उपर गया // 265 // ... तत्र श्रीआदिदेवस्य, स्नात्रपूजामहोत्सवम् / R.P.AC.GunratnasuriM.S. कत्वाऽष्टाहश्रयं भक्त्या , तो स्वं धन्यममन्यताम् // 266||- Jun GurAaradhana Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ-शत्रुजय पर्वत पर ते बझे जणाए त्रण अक्वाडिया सुधी भक्तिपूर्वक श्रीआदीश्वर प्रभुनी स्नात्रपूजानो महोत्सव करी पोताना आत्ताने भाग्यशाली मानवा लाम्या // 266. // - अथ शाश्वतपूजार्थ, सर्वाङ्गाभरणानि तौ। कारयित्वा महापूजा-क्षणेऽरोपयतां क्रमात् // 267 // भावार्थ-त्यार पछी शाश्वत पूजा मादे सर्व अंगनो आभूषणो करावी ते महापूजा वखते आभूषणोने क्रम | || सर प्रभुना अंग उपर चड़ाव्या // 267 // माणिक्यरत्नखचितां, दवा हेमी महाध्वजाम् / 'अभङ्गरसङ्गीत-भक्ति दर्शयतश्च तौ / / 268 // भावार्थ-त्यार पछी माणेक अने रत्नोथी जडेली सुवर्णनी महाध्वजा चडावी अने अखंडित मावोल्लास || पूर्वक संगीत गान करी प्रभुना उपर पोतानी अवर्णनीय भक्ति देखाडी आपी // 2685. एवं निर्माय निर्मायौ, प्राज्यप्रौढप्रभावनाः / सर्वज्ञशासनौन्नत्यं, तो व्यस्तारयतां चिरम् // 269 / / . . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | भावार्थ-आ प्रमाणे कोइ पण प्रकारनी माया रहित पवित्र हृदये ते राजा अने देवे अत्यंत मोटी प्रभावना | करी लांबा वखत मुधी सर्वज्ञ प्रभुना शासननी उन्नति विस्तारी // 269 // अथाऽनन्तगुणोत्साह-बद्धरोमाञ्चकञ्चुकः। - नाभाकभूपतिधर्म-शालास्थानमशिश्रियत् // 270 // ... भावार्थ-त्यार बाद अनंतगणा उत्साहथी प्रफुल्लित रोमांचवाला नाभाक राजाए धर्मशालाना स्थाननो आश्रय लीधो // 27 // ... तत्र न्यक्कृतकल्पद्रु-डिण्डिमोद्घोषपूर्वकम् / .. __ स्वमर्थमर्थिसात्तन्व-नदारिद्रयं जगद् व्यधात् // 271 // ||-- भावार्थ-त्यां रही दान आपवा माटे पटहोद्घोषणा करावी, अने जेना दानगुण पासे कल्पवृक्षो पण हलका | पड़ी गया एवा ते राजाए पोतार्नु धन याचक जनांने आपतां सर्व जगत् अदारिद्रय करी दीधुं // 271 // अथ पुण्यपविनात्मा, क्षालिताऽखिलकश्मलः। गुरुभिः सह भूपालः, प्रतस्थे स्वपुरं प्रति // 272 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - an - - - - - . भावाथ-हवे पुण्य वडे पवित्र आत्मावालो ते नाभाक राजा पोताना समग्र पापनी शुद्धि करी गुरु महाराज साथे पोताना नगर तरफ चाल्यो / / 272 // अनुपानद् गुरोर्वाम-भागेन पथि सञ्चरन् / दर्शयन्नुचनीचां च, भुवं भक्तामणीरभूत् // 273 // . भावार्थ-रस्तामां गुरुमहाराजने डावे पडखे उघाडे पगे चालतो अने उंचाण-नीचाणवाळी पृथ्वीने बतावतो ते नाभाक राजा गुरुभक्त शिरोमणि थयो // 273 // ... चन्द्रादित्यसुरः सेना-मानं छत्रं वितानयन् / / चामरांथालयन् पार्श्व-द्वये सद्गुरुभूपयोः // 274 // संवर्तकाऽनिलेनाग्रे, कण्टकाद्यपसारयन् / ... गन्धोदकस्य वर्षेण, भार्गस्थं शमयन् रजः // 275 // सुगन्धिभिः पञ्चवण-दिव्यपुष्पैर्मुवं स्तृणन् / संचारयन पुरस्थं च, योजनोचमहाध्वजम् // 276 // मजति प्ति व. पंन्याली गली लाल . . . . : . - me - -- - .- ' . - P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Agihak Trust - Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एतयोरवमन्तारी, यास्यन्ति प्रलयं स्वयम् / ...... एतत्पाद्राजनन्तारो, वद्धिष्यन्ते महाश्रिया // 277 // इत्यम्बरगिरा साक, दुन्दुभिं दिवि ताडयन् / / ....... - गुरूणां विद्धे भक्ति, सान्निध्यं च महीपतेः // 278 // पञ्चभिः कुलकम् / भावार्थ-चन्द्रादित्य देव पण सेनाना परिमाण जेटलं छत्र विस्तारतो, सद्गुरुमहाराज अने राजाना || च. बन्ने पडखे चामरो वीजतो-॥ 274 / संवर्तक वायस बडे रस्तामा आगळ आगळ कांटा विगेरेने दूर करतो, मु. गंधी पाणी वरसावी मार्गनी धूल शांत करतो / / 275 // गंधयी बहेकी रहेला पांच वर्णना दिव्य पुष्पोथी पृथ्वीने आच्छादित करतो, आमळ एक योजन प्रमाण उंची मोटी ध्वजा फरकावतो, // 276 // " आ गुरुमहाराज अने राजानु अपमान करनारा स्वयं नाश पामशे, अने एमना चरणकमलने नमस्कार करनार लोकोने महाँलक्ष्मीनी वृद्धि थशे" // 277 // एवी आकाशवाणी साथे गगनां दुंदुभिनो जाद करतो छतो गुरुमहाराजनी भक्ति करतो हतो, तेमज राजानु सानिध्य करतो हतो // 278 // .. ... इत्थं प्रतिपदं नैक-भूपैः प्राभृतपाणिभिः। प्रवर्धमानभव्यश्री-वृपः प्रापनिजं पुरम् // 279 // ........ ___P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhek Trust SEMAMASOL oniaaadiatoubnabadataamanand aninata nAAAAAAAAA Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / || भावार्थ--आवी रीते मार्गमा चालतां पगले पगले अनेक राजाओ हाथमा भेटणा.. लइ नाभाक राजान / सन्मान करवा लाग्या, अने जेथी वृद्धि पामती मनोहर लक्ष्मीकाळो राजा पोताना नगरमा आवी पहोंच्यो // 279 // .... गुरवोऽपि ततो दत्त्वा, श्रीमन्नाभाकभूपतेः। . . सम्यक्त्वमूलाधाणु-व्रतानि व्यहरन् भुवि // 280 // ................. . भावार्थ-त्यार बाद गुरुमहाराजे नामाकराजाने सम्यक्त्वमूळ श्रावकना अणु व्रत उचरावी शुद्ध श्रावक | कर्यो, पछी गुरुमहाराजे बीजे स्थळे विहार क्रर्यो॥ 280 // ||99 .... अथ देवस्य सान्निध्याद, वासुदेव इव स्वयम् / भूपालो भरतार्धेस्य, त्रीणि खण्डान्यसाधयत् // 281 // . भावार्थ-त्यार पछी चन्द्रादित्यदेवनी सझयथी नामाकराजाए. वासुदेवनी पेठे अर्घ भरतना बणे खंड साध्या // 281 // भूमिपतिसहस्राणां, षोडशानां च मूर्धनि / आज्ञा संस्थाप्य राज्यं स्व-धर्म च समपालयत् // 282 // ... BIOTISon / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ना. - भावार्थ-नाभाकराजाए सोळ हजार राजाओ उपर पोतानी आज्ञा प्रवर्तावीने सम्यक् प्रकारे पोताना राज्यतुं | अने धर्मनुं पालन करवा लाग्यो // 282 // ..... त्रिकालं देवमभ्यर्चन् , द्विसन्ध्यं सद्गुरूनमन् / :- षडावश्यककृत्यं च, तन्वन् राज्यफलं ययौ // 283 // ... भावार्थ-रोजाए त्रण काळ प्रभुनी पूजा, अने सांज सवार सद्गुरु महाराजने वंदन तथा छ आवश्यक कृत्य करतां राज्यनुं शुभ फळ मेळव्युः // 283 // .. ...... प्रतिग्रामपुरं जैन-प्रासादास्तुणतोरणाः। व्यधाप्यन्त नरेन्द्रेण, धर्मशालाः सहस्रशः // 284 // भावार्थ-ते राजाएँ दरेक गाम अने शहेरोमां उंचा तोरणवाळा जिनमंदिरो बंधाव्या, तेमज हजारो धर्मशाला बंधात्री // 284 // साहिलीकपरद्रोह-पैशून्यकलिमत्सराः। ... ... ... ... ... निर्मूलं वारिताः सप्त-व्यसनानि विशेषतः // 285 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust RCHR Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - भावार्थ-वळी ते राजाए पोताना राज्यमा निंदा, परद्रोह, चाडी, कजीओ, इा विगेरेनुं निर्मूल निवा- | | रण कर्यु, तथा सात व्यसनोनो तो विशेष प्रकारे निषेध कर्यों // 285 // मिथ्यात्वं पापमन्याय, विधत्ते मनसाऽपि यः __ तस्य देवः स्वयं शिक्षा, दत्ते तत्क्षणमेव सः // 286 // भावार्थ-तेना राज्यमां कोई पण माणसे मिथ्यात्व पाप अने अनीति मनथी पण करतो तो तेने चन्द्रादित्य देव तेज क्षणे शिक्षा करतो // 286 // ... तद्देशवास्तव्यजना-स्ततः पुण्यैकबुद्धयः। .. ... राजवाऽनुवर्तन्ते, यथा राजा तथा प्रजाः // 287 // भावार्थ-पुण्यमा लीन करेली बुद्धिवाळा ते देशना लोको राजाने मार्गे धर्म अने नीतिने अनुसरवा लाग्या, || कारण के जेवो राजा होय नेत्री तेनी प्रजा होय छे / / 287 // .. .. एवं यथा यथा पृथ्व्यां, पुण्यवृद्धिस्तथा तथा। ...काले सृष्टिान्यपुष्टि बहुपुष्पफला गुमाः // 288 // .. ....... .. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - A - .- . . बहुक्षीरपदा गावो, बहुरत्नाश्च खानयः / व्यवसाया महालाभा, दूरदेशा सुसचराः // 289 // ............... निरामया निरातका, महासौख्याश्चिरायुषः। .... ... ... पुत्रपौत्रादिसन्तान-वृद्धिभाजोऽभवन् जनाः // 290 // शिभिर्विशेषकम् / भावार्थ-आवी रौते पृथ्वीमा जेम जेम पुण्यनी वृद्धि थका लागी तेम तेम भारी रीते समयसर वृष्टि थवा लागी, घणुं धान्य नीपजवा लाग्युं, वृक्षो घणा पुष्पो अने फळ आपनास यया // 284 // गायो अधिक दूध ||102 आपवा लागी, खाणो घणा रत्नोपाळी थइ, व्यापारमा अतिशय लाभ थवा लाग्यो, घणा दूरना देशो पण सुखरूप मुसाफरी थइ शके तेचा यया // 289 // तेमज लोको निरोगी, निर्भय, अत्यंत मुखी, लांबा आयुष्यवाळा अने पुत्र-पौत्रादि संततिनी दिवाळा थयां // 29 // एवं सब्राज्यलोकानां, धर्मशर्मनिरीक्षणात् / हियेव स्वर्गिणोऽभूव-अदृश्या धर्मवर्जिताः // 291 // भावार्थ-आवी रौवे ने राज्यना लोको धर्मना प्रभाषथी एटला मुखी हता के जे मुखने जोइ धर्मवर्जित || FEAc. Sinratnasun M.S. Juri Gun Aaradhak Trust antantralaMadalandshadiuokalhalksosdownloadhosalie.aniruk..........karanasiumricanid MAHESHRIMARomshaheadline s Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - || देवो पण पोताचे मुखरहित मानवा लाग्या, अचे तेथी जाणे लज्जा आववाथी पोते अदृश्य थई गया होयनी ! || // 191 // "श्रीनामाकनराधीश, प्रपाल्योति चिरं स्थिरम्। राज्यं प्राज्यं प्रान्तकाले, संसाध्योऽनशनं सुधीः // 292 / / .. अमाद शदशकस्पेऽथ, नृजन्माऽचाप्य सेत्स्यति / देवोऽपि प्राप्य मानुष्यं, शाश्वतं सौख्यमाप्स्यति // 293 / / युग्मम् / भावार्थ-आ प्रमाणे पुण्यशाली नाभाकराजाए पोताना विस्तृच राज्यने चिरकाल सुधी स्थिर रीते पालन // करें, अंतकाले ते बुद्धिमान् राजा अणसण ग्रहण करी बारमा अच्युत देवलोकमां देव थयो, त्यांची व्यवी मनुष्य जन्म प्राप्त करी सिद्ध यो. चन्द्रादित्य देव पण देवलोकमाथी च्यवी मनुष्यपणु मास करी मोक्षमा शाश्वतुं मुख पाम // 292-293 // श्रीनामाकनरेन्द्रस्य, निशम्येदं कथानकम् / ...: देवव्याच दूरेण, नित्यं स्थेयं मनीषिभिः // 294 / / ......: P.P.AC.Gunratnasuri M.S. * Jun Gun Aaradhak Trust tubT . . . Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " भावार्थ-आ प्रमाणे श्रीनामाकराजानी कथा सांभळीने बुद्धिपाम् पुरुषोए देखद्रव्ययी तद्दन दूर रहेउचित छ / 294 // .. श्रीमदञ्चलगच्छेश-श्रीमेरुतुसूरिभिः / युगयुगभूसङ्ख्ये, वर्षे निर्मिता कथा // 295 // भावार्थ:-श्रीमान् अंचलगच्छाधिपति श्री मेरुतुंगरिए चौदसो चौसठनी सालमा आ कथा रची // 29 // . 4C . D * श्रीनाभाकराजचरित्रं गुर्जरभाषानुवादसहित / समाप्तम् Satara a pasabh an P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust mikalnitientasiansplawsandednaselilonwantenthusny anadaciditicalsanskaationalesabitasalenlowadsdedestinene smp a ..