________________ ना.॥ च. महापूजा-ध्वजारोपा-दिषु कृत्येष्वसौ तथा। - ददौ दानं यथा श्यामो, जज्ञे मेघोऽपि लज्जया // 75 // .. भावार्थ-समुद्रपाल राजाए से शत्रुजयगिरि उपर महापूजाओ ध्वजारोपण विगेरे पवित्र कार्यामां एटलं तो पुष्कळ दान आप्युं के जे दान जोइने दृष्टिदान करतो मेघ पण लज्जा वडे श्याम थइ ययो, अर्थात् अखूट वृष्टिदान करतो मेघ पण आ राजाना दाम आगळ पोताने तुच्छ मानतो थको लज्जा पामी श्याम थह गयो॥७५॥ 30 विधायाऽष्टाह्निकां नाग-नामग्राहं जगत्पतेः।। पूजा द्रागादिसत्कृत्यैः, स निधानार्धभव्ययत् // 76 // भावार्थ-नागभेष्टीनं नाम ग्रहण करी श्रीजिनेन्द्रनो आठ दिवस असार महोत्सव करी. प्रजा धान निगरे मुकत्यो करवामां ते नागश्रेष्ठीना निधाननो बचेलो अरधो भाग समुद्रपाल राजाए चापों // 76 // सिद्धक्षेत्रादयोत्तीर्य, स्वपुरं प्राविशन्नृपः। . को राज्याऽसहिष्णुत्वाद्, वाणिजो दुष्टपार्थिवैः // 77 // "भावार्थ-हवे समुद्रपाल सिद्धक्षेत्रथी उतरीने जेवामा पोताना नगरमा प्रवेश करतो हतो, तैवामा ते वैश्य || होवापी तेने मळेला राज्यने सहन नहीं करनारा आसपासना ईलि दुष्ट राजाओए घेरी लीधो // 77 // P. Ac. Gunratnasur MS Jun Gun Aaradhak Trust