________________ - || देवो पण पोताचे मुखरहित मानवा लाग्या, अचे तेथी जाणे लज्जा आववाथी पोते अदृश्य थई गया होयनी ! || // 191 // "श्रीनामाकनराधीश, प्रपाल्योति चिरं स्थिरम्। राज्यं प्राज्यं प्रान्तकाले, संसाध्योऽनशनं सुधीः // 292 / / .. अमाद शदशकस्पेऽथ, नृजन्माऽचाप्य सेत्स्यति / देवोऽपि प्राप्य मानुष्यं, शाश्वतं सौख्यमाप्स्यति // 293 / / युग्मम् / भावार्थ-आ प्रमाणे पुण्यशाली नाभाकराजाए पोताना विस्तृच राज्यने चिरकाल सुधी स्थिर रीते पालन // करें, अंतकाले ते बुद्धिमान् राजा अणसण ग्रहण करी बारमा अच्युत देवलोकमां देव थयो, त्यांची व्यवी मनुष्य जन्म प्राप्त करी सिद्ध यो. चन्द्रादित्य देव पण देवलोकमाथी च्यवी मनुष्यपणु मास करी मोक्षमा शाश्वतुं मुख पाम // 292-293 // श्रीनामाकनरेन्द्रस्य, निशम्येदं कथानकम् / ...: देवव्याच दूरेण, नित्यं स्थेयं मनीषिभिः // 294 / / ......: P.P.AC.Gunratnasuri M.S. * Jun Gun Aaradhak Trust tubT . . .