________________ ज्ञानं तृतीयसोपानं, नृभवेऽवाप्य केवलम। सर्वकर्मविनिर्मुक्तो, मुक्तराशौ निवेक्ष्यसि // 234 // भावार्थ--देवलोकमाथी च्यवी मनुष्यभवमा आवेलो तुं सर्व कर्मोथी रहित थयो छतो त्रीजा फ्गीया रूप || केवलज्ञान पामी मोक्षराशिमा प्रवेश करीश // 234 / / परं तत् प्राक्तनं कर्म, च्छमस्थत्वान्न बुध्यते। अतः पृच्छ विदेहेषु, श्रीमत्सीमन्धरं जिनम् // 235 // 1841 भावार्थ-परंतु हुं छद्मस्थ होवाथी तें पूर्वे करेलुं ते अन्तराय कर्म जाणी शकतो नीं, माटे महाविदेह क्षेत्रमा विराजमान श्रीसीमंधर प्रभुने पूछ " // 235 // . प्राप्नोमीहक्कथं राज्ञे-त्युक्ते श्रीगुरवोऽवदन् / ___ भवत्पुण्यप्रभावेण, भवितेत्यचिरादपि // 236 // भावार्थ-नाभाक राजाए पूछ्यु के-'श्रीसीमंधर स्वामी पासे केवी रीते जवाय ?'. त्यारे गुरुमहाराज | बोल्या के-'तमारा पुण्यना प्रभावथी योडाज वखतमा तमारे त्यां जवानुं थशे // 236 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. .: Jun Gun Aaradhak Trust