________________ एतद्विशेषलाभाया-दिदिशे गुरुणा तदा।। अन्यथा केवलिप्रश्नात्, पूर्वविद् बुध्यतेऽखिलम् // 237 // भावार्थ-ते वखते नाभाक राजाना विशेष लाभ माटे युगंधरमूरिए उपर प्रमाणे कां, नहींतर चं | पूर्वना जाणकार तो केवली भगवान ने पूछवाथी सर्व वात जाणी शके छे / / 237 // . अथाऽन्तरायविच्छित्यै, पारणाहेऽप्युपोषितः। ईषन्निद्रां गतो याव-जागर्ति स निशात्यये // 238 // तावद्धीक्ष्य महारण्ये, पतितं स्वं व्यचिन्तयत् / हा हा! कथं स एवाऽय-मन्तरायः समापतात् // 239 // युग्मम् / . भावार्थ-त्यार बाद अंतराय कर्मनो विच्छेद करवा माटे राजाए पारणाने दिवसे पण उपवास कर्यो. अने धर्मध्यान पूर्वक रात्रे सूइ गयो. थोडी निद्रा करी रात्रिना छेल्ले पहोरे जेवामा जागे छे तेवामा पोताने एक मोटी || विकट अटवीमां पडेलो जोइ विचारता लाग्यो के-अरेरे! शं मने गुरु महाराजे जे अंतराय कर्म कह्यु हतुं तेज उदयमा आबी पडयुं ? // 238-339 / / ..P.P.Ac:Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust.