________________ . - भावार्थ-वळी जणाव्यु के जन्म, जरा अने मृत्यु विगैरे हजारो दुःखथी गहन बनेला. चार गतिरूप आ || संसारथी कोने वैराग्य न याय // 189 // 7 . शाश्वताऽनन्तसौख्यश्री-निवास वासवा अपि / . . . ना स्वर्गसौख्यमनाहत्य, याचन्ते मोक्षमुत्तमम् // 19 // भावार्य-शाश्ववा अने अनंता मुखरूप लक्ष्मीनुं निवास स्थान मोक्ष छ, आ मोक्षमुख पासे स्वर्गमुलं पण के तुच्छ के, अने त्रेयीज इन्द्रो पण स्वर्गमुखनो अनादर करी आवा अनुपम मोक्षने माटे याचना करी रखाछे // 190 // पर सप्राप्यते प्रायः कृतः सुकृतकर्मभिः।... ..मुख्यं तेष्वपि सर्वज्ञः, सर्वसत्त्वकृपोच्यते // 191 / / भावार्थ-इंद्रो पण जेनी असे पोतानुं स्वर्गमुख तुच्छ समजी जेने माटे तळसी रया छ एको उत्तमोत्तम मोक्ष प्रायः सुकृत को वहें जीवो प्राप्त करे छे. ते मुकृतकर्मोमां. पण सर्व जीवो. उपर करुणाभाव सखयो ए मुख्य मुकतकर्म सर्वनोए. कबुं छे // 191 // कृपाधिकारे जीवानां, हिंसाऽहिंसाफलं तथा / उपादिष्टं यथा मान-श्रक्रम्पे निजपपिके: // 1.92 . ... . ..... P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust