________________ 15 मात्र एक तीर्थाधिपति श्रीशत्रुजयतीर्थनां दर्शन करवायी प्राप्त थाय छे. // 30 // तीर्थमालास्तवे- अतो.धराधीश्वर ! भारती भुवं, तथाऽधिगम्योसममानुषं भवम् / - युगादिदेवस्य विशिष्टयात्रया, विवेकिना ग्राह्यमिदं फलं श्रियाः॥३१॥ भावार्थ-तीर्थयाला स्तवमा पण क{ छे के–माटे हे भूपति ! आ भारतभूमि तेमज उत्तम मनुश्यजन्म पामीने, युगादिदेव श्रीआदिनाथनी विशिष्ट प्रकारनी यात्रा करीने विवेकी पुरुषोए पोताने प्राप्त थयेली लक्ष्मीचं फळ || ग्रहण करवु.॥३१॥ एवं श्रुत्वा नरेशोऽपि, तीर्थमाहात्म्यमद्भुतम् / विसृज्य श्रेष्ठिनं यात्रा-निमित्तं लग्नप्रग्रहीत् // 32 // भावार्थ-आ प्रमाणे श्रीशQजय तीर्थनो अद्भुत प्रभाव सांभळीने नाभाक राजाए ते धनान्य शेठने विसर्जन करी, श्रीशQजय तीर्थनी यात्राने माठे उत्तम लग्न-मुहूर्त जोवडाव्यु.॥ 32 // लगक्षणे व्यतिक्रान्ते, ब्रह्महारव्यथावशात् / पश्चात्तापं द्घद् भूपो, द्वितीयं लग्नमग्रहीत् / / 33 // भावार्य--पण ज्यारे मुहूर्तनो दिवस आव्यो त्यारे कर्मयोगे मस्तका माद्वारने विषे असह्य पीडा थवाथी || P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust