________________ 'भावार्थ- चारउपवासनी तपश्चर्याने छेड़े उदरना प्रमाण जेटली चार धोळी बिलाड़ी जोइ, तेथी विशेष || हर्षित थयेला नामाक राजाए पांच पांचऊपवास कर्या // 228 // ईषन्निद्रान्तरेकोन-त्रिंशत्तमदिने ततः। नमस्कारान् स्मरनेव, स्वप्नमेवमलोकत // 229 // भावार्थ-त्यार बाद ओगणत्रीशमा दिवसे नमस्कारनुं स्मरण करता करता ज थोडी निद्रा लीधी. निद्रामा || heal एवं स्वप्न जो' के-॥ 229 // क्वाऽपि स्फटिकशैलेऽहं, सोपाने प्रथमे स्थितः / . ... केनाप्यतीववृद्धेन, कृशेन लोठितः परम् / / 230 / / प्राप्तो बितीयसोपानं, तृतीयं च गतस्ततः / शैलशृङ्गमथारुह्य, मुक्तराशौ निविष्टवान् // 231 // युग्मम् / भावार्थ-"हु कोइ स्फटिक पर्वत उपर पहेले पगयीये चड्यो इतो, तेवामां कोइ एक कृश अने अत्यंत वृद्ध // LL P P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak, Trust