________________ / 93 भावार्थ--त्या आठ महापातिहार्य रूप लक्ष्मी वडे सेवाता श्रीसीमन्धर जिनेन्द्रने वंदन करी पूछ्यु के-हे || प्रभो.! मने घणा लांबा काळयी शुं अंतराय कर्म लाग्युं छे ?' // 260 // , अर्थ च- समुद्र-सिंहयो ग-गोष्ठिकस्य च सा कथा / ' यथा युगन्धराचार्य, प्रोक्ता स्वामी तथादिशत् // 261 // भावार्थ-आ प्रमाणे नाभाक राजानो प्रश्न सांभळी प्रभु श्रीसीपंधर स्वामीए जेवी रीते युगंधराचार्य समुद्रपाल सिंह अने नागगोष्ठिकनी कथा कही हती तेवी रीते संपूर्ण कही // 261 // ....... .. पुनः प्राहः प्रभुभूपं, न पूर्वकृतकर्मतः। विमुच्येत क्वचित् कोऽपि, त्वमेवाऽस्य निदर्शनम् // 262 // भावार्थ-वळी प्रभुए राजाने कयु के-पूर्वभवमां उपार्जन करेला कर्मो भोगव्या सिवाय कोइ पण प्राणी कदापि छूटी शकतो नयी वेधमा ज पोते दृष्टांतरूप छे // 262 // .. ..... त्वया सिंहभवे यात्रा-ऽन्तरायोऽकारि बान्धवम् / धारयित्वा स विज्ञेयो, वृद्धः सोपानलोठकः // 263 // . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust