________________ D श्रीपुण्डरीकं गणनायक श्री प्रभुः पुरस्कृत्य तदेत्यवादीत् / . . इदं महातीर्थमनाद्यनन्तं, ......कालेन सङ्कोचविकोचधर्मि // 19 // ......|| नाभांक 'भावार्थ-प्रभुए ते समये श्रीपुंडरीक गणधरनी समक्ष आ प्रमाणे कत्यु के, 'आ महातीर्थ शत्रुजयगिरि अनादि ! चरित्र. अनंत-छे, पण ते कालक्रमे संकोच अने विस्तारने पामेछे // 19 // // 10 // मूले पृथुः सम्पत्ति योजनानि, पञ्चाशदूर्व दश योजनानि / उच्चस्तथाऽष्टाचथं ससहस्तो, भूत्वा पुनः प्राप्स्यति वृद्धिमेवम् // 20 // "भावार्थ-हालमों आ गिरि मूळमां पचास योजन विस्तारवाळो, उपर दस योजन विस्तारवाळो, अने उंचाइयां आठ योजनप्रमाण छे. अने आ अवसर्पिणीमा घटतो घटतो छठा आरामा छेवटे सात हाथप्रमाण || थइ पाझे उत्सर्पिणीमा विस्तारने पामशे // 20 // शत्रुञ्जयश्रीविमलांद्रिसिद्धक्षेत्रेतिनामत्रितयं सदाऽस्य / - - P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust