________________ तत्र रङ्गत्तुरङ्गेण, कुरणवधरङ्गतः। .. धावमानो मुनि कायोत्सर्गस्थं वीक्ष्य पृष्टवान् // 157 // . भावार्थ-बनमा पूर वेगयी दोडना घोडा बहे हरणीयाओनो वध करवाने आसक्त बनेला अने तेओनी || ना. पाछळ पढेका ते सजाए काउसागमा रहेला एक मुनिने देखी पूछयु के-॥ 157 // कस्यां दिशि मृगा जग्मु-निः प्रोक्ते नाऽवदन्मुनिः। ... ... राजा जिघांसुर्बाणेन, तमपि स्तम्भितोऽभितः // 158 // भावार्थ-'मृगलामो कइ दिशामां गया छे ?' आ प्रमाणे त्रण वक्त चन्द्रादित्ये पूछवा छतां मुनिराज काइ पण बोल्या नहीं, त्यारे ते मुनिने पण बाण बड़े हणवानी इच्छावालो चन्द्रादित्य तैयार ययो // 158 // .|| कायोत्सर्ग पारयित्वा, मुनिस्तारस्वरं जगौ। प्राच्याच्छुटसि नाऽद्यापि, नव्यं च कथमर्जसे? // 159 // भावार्थ-मुनिए काउसग्ग पारीने अतीव गंभीर स्वरे कयु के–'हजु सुधी पूर्वनां बांधेलां कर्मपी तो || छूटतो नथी, अने नवा कर्मो केम बांधे छे ?' // 159 // . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhakrust