________________ ..... आचं गत्वा पुनः श्वन, जझे दुष्टसरीसृपः। :. . .. ....द्वितीयनरकं भक्त्वा दुष्टपक्षी बभूव सः 116 // भावार्थ-सिंहना भवमा पण अनेक प्रकारना हिंसादि कृत्यो करी फरी पहेली नारकीयां गयो. त्यांची नीकळी दुष्ट साफ्पणे उत्पन्न थयो. त्यांची बीजी नारकीमा गयो, त्या पण अपार. दुःखो भोगवी, दुष्ट पक्षी ||" | थयो. // 116 // .... तृतीयनरकं प्राप्य, दुष्टसिहोऽभवद् वने। . चतुर्थेनरकं गत्वा, संर्पोऽजायत दग्विषः // 117 // भावार्थ--त्यार वाद त्रीजी नारकीमा गयो. त्यांची वनमां दुष्ट सिंह थयो, सिंहनुं आयुष्य पूर्ण करी चोथी | नारकीमा गयो, त्यां कष्टकारक दुःखों भोगवी दृष्टिविष सर्प थयो. // 117 // . पश्चम मरकं लब्ध्वा, चण्डालस्त्री ततोऽजनि / अवाप्य नरकं षष्ठ-मजनिष्टाऽर्णवे तिमिः // 118 // भावार्थ त्यांची पचिपी नारकीयां गयो, त्यारबाद चंडालनी स्त्री थयो. तदनन्तर छही नारकीमा गयो. || त्यार्थी समुद्रमा मत्स्य थयो. // 118 / / . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust -