________________ ___ भावार्थ-सिंहलद्वीपा सिंहे त्यांना राजानी महेरवानी मेळवी. पछी अन्य वस्तुओनी खरीदीथी लाभ न थाय || || तेवू होवाथी हाथीदांत ग्रहण करवानी इच्छाथी पोते घोर अरण्यमां गयो / / 111 // स तत्र दन्तिवधकै-दन्तवृन्दान्यथाऽऽनयत्। पापद्व्येण यत् पापे-ध्वेव बुद्धिः प्रजायते // 112 // भावार्थ-ते जंगलमा हाथीना वध करनार माणसो द्वारा, हाथीदांत मंगावीने खरीद कर्या. खरेखर शास्त्रकारोए सत्यज वचन कहां छे के-'पापथी संचय करेल धनयी पापकारी अधम कृत्यो करवानीज बुद्धि उत्पन्न थाय ||14| छ.' ऑपणामं एक लौकिक सादी कहेणी छे के-'जेवो आहार तेवो ओडकार.' माटे सुज्ञ जनोए नीतियुक्त धन प्रपार्जन करवामांज़ प्रयत्नशील बनवु जोइए. श्रावकने प्रथम मोक्षमार्ग तस्फ दोरवनार मार्गानुसारीना पांत्रीश गुणो पैकी 'न्यायथी द्रव्य मेळवqए प्रथम गुण छे, अने ए गुण मेळवा माटे दरेक मनुष्ये पोताना विचार मक्कम करवा जोइए के " मारा जीवननो मुखपूर्वक निर्वाह करवा माटे नीतिमार्गथी द्रव्य मेळवीश." आ जीवनसूत्र दरेके पोताना हृदयपट्ट उपर सुवर्णाक्षरे कोतरी राखवू जरुरतुं छे // 112 // भृत्वा चत्वारि यानानि, दन्तैर्वारिधिवर्मना। - मुत्तवा कुटुम्ब लत्रैव, सुराष्ट्रां प्रति सोऽचलत् // 113 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust