________________ ना. .. . देवद्रव्यं च तज्ज्ञात्वा. प्रत्यर्थन्यायधर्मविता. ... .. समुद्र बहु सत्कृत्य, यात्रार्थ व्यसृजन्नृपः / / 65 // ............. भावार्थ-तथा 'ओ देवेद्रव्य छे' एम जाजी श्रेष्ठनीति पाऊँनार अने धर्मनो ज्ञाता एवाराजाए समुद्रनो घणोज सत्कार करीने तीर्थयात्रा माटे विसर्जन कर्यो // 65 // . . अथ द्विगुणितोत्साहिः, समुद्रः स्वकुटुम्बयुक् / 127 मुहूर्तान्तरमादाय, यात्रार्थ प्रास्थित द्रुतम् / / 66 // भावार्थ--आ प्रमाणे राजानुं सन्मान पामवाथी चपणो उत्साहित थयेला समुद्रे निमित्तिया पासे बीजुं उत्तम || मुहूर्त कढावी पोताना कुटुंच सहित यात्राने माटे शीघ्र प्रयाण कयु // 66 / / चतुर्भिोजनैराक्, श्रीशत्रुञ्जयतीर्थतः / यावद् भुङ्क्ते सरस्तीरे, श्रीकाश्चनपुरे पुरे // 67 // तत्राऽपुत्रे मृते भूपे, तावद् मन्त्राऽधिवासितः / 'आगत्य पञ्चभिर्दिव्य, राज्यं तस्मै ददे मुदा // 68 // युग्मम्।। भावार्थ-श्रीशत्रुजय तीर्थथी चार योजन दूर श्रीकांचनपुर नामना नॅगस्नी नजीकना सरोवरने कोठे है. Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.