________________ MAHAJAN किं श्वभ्रतियग्भवसंभवः स्याद ?, न शेषगत्योरपि जन्म तेषाम् // 23 // भावार्थ-जे भव्यपाणीओ आ तीर्थ कोइ पण समये निर्मळभावपूर्वक नेत्रथी दर्शन मात्र करे छे, तेओने || नाभाके देवगति तथा मनुष्यंगतिमा पण जन्म लेवो पडतो नथी, तो पंछी नरंक अने तिर्यंचगतिनो तो संभव ज क्याथी होय ? / अर्थात् आ पवित्र तीर्थनुं भावपूर्वक दर्शन करनारा भाग्यशाली भव्य प्राणीओने चार मतिमा जन्म-मर- || चरित्र णनी विडंबना भोगवनी पडती नथी, तेओ अनंत सुखमय मोक्षमा जाय छे / / 23 // // 12 // श्रीमयुगादीशमुखाद् मुनीन्द्रास्तत् तन्महातीर्थफलं निशम्य / श्रीपुण्डरीकप्रमुखा निषेव्य, तत्तीर्थमापुः समयेऽपवर्गम् // 24 // भावार्थ-आ प्रमाणे श्रीमान् युगादि प्रभुना मुखथी पुंडरीक गणधर विगेरे मुनीन्द्रोए ते महातीर्थनो प्रभाव || || तथा तेनी सेवाथी मळता फळने सांभळी, ते शत्रुजय तीर्थचं सेवन करी, पोतपोताने समये मोक्ष पाम्या // 24 / / / . ' . PP.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust