________________ .... .. .... 46 : : अन्यायात् स्वल्पदेवस्व भक्षेणादपि यद्यभूत्। शैवः श्रेष्ठी सप्तकृत्वा श्वाऽतो वै त्याज्यमेव तत् // 122 // ... भावार्थ- अन्यायथी जन मात्र पण देवव्यनु भक्षण करवाथी शैव शेठ सातबार कूतराना भवमां . उत्पन्न थयो, माटे खरेखर ते तजवा योग्य छे // 122 // - अत्रान्तरे विभो! को सौ, श्रेष्ठी जातश्च श्वा कथम्? इति नामाकभूपेन, पृष्टे गुरुरभाषत // 123 // भावार्थ आवखते नामाक राजाए महात्मा युगंधराचार्यन पूछयु के-'प्रभो! था शैव शेठ कोण? अनें / लेने सात वखत कूतरानो अवतार केम ग्रहण करवो पड्यो ?' आ प्रमाणे नाभाक सजाए पूछवाथी सद्गुरु महा• || ...... राजे पण ते चरित्र स्वरूप नीचे प्रमाणे कहेवानो आरंभ कर्यो- // 123 // 7 उत्सर्पिण्यवसपिण्यो-भरतैरवतक्षितौ।... प्रत्येकं किल जायन्ते, शलाकाः पुरुषा अमी // 12 // चतुर्विंशतिरहन्त-स्तथा द्वादश चक्रिणः। विरुणप्रतिविष्णुरामाः, प्रत्येकं नवसङ्ख्यया // 125 // .P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust