________________ वधूसहस्रैरपि सैष खेलन अवाप सवाजमेनोहरत्वम् // .19-0... ... ..!:: : | . भावार्थ-पुरातन समयमां, कामदेव बे. स्त्रीओ साथै खेलतो छेतो पण अनंगपणाने पाम्यो हतो, परंतु आ || ना नाभाकराजा तो हजारो स्त्री ओनी साथे क्रीडा करतो छतो पण सर्वांगे मनोहरपणाने पाम्यो हतो / कामदेव रति !! अने प्रीति नामनी चे ज़ स्त्रीओ साथे क्रीडा करवा छतों अनंगपणाने एटले अंगरहितपणाने पाम्यो हतो, पण आ चरित्र. राजा तो हजारो स्त्रीभोनी साये खेलतो हतो छतां पण सर्वांगे मनोहरपणाने पाम्यो हतोः॥ 10 // ..... तमन्यदा मुदासीनं, सभायामेत्य भूपतिम् / सत्मामृतं पुरस्कृत्य, श्रेष्ठी कश्चिनमोऽकरोत् // 11 // भावार्थ-एक दिवसे ते राजा पोतानी सभामा हर्षित चित्ते बेठो हतो, ते. अवसरे कोइक श्रेष्ठीए आवीने राजानी सन्मुख सुंदर भेटणुं मूकी नमस्कार कर्यो // 11 // कस्त्वं कुतः समायातः, कुत्र यासीति भूभृता। पृष्टे स्पष्टमथाचष्ट, श्रेष्ठी राजनिशम्यताम् / / 12 / / || भावार्थ-त्यारे राजाए ते शेठने पूछयु के, तमे कोण छो ? क्यांची आव्या छो ? अने क्यों जाओ छो / / / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jure Gun Aaradhak Trust