________________ / प्रागह सप्तजन्मभ्यः, पूजयित्वा सदा शिवम् / देवस्वभीत्या प्रक्षाल्य, पाणी भोजनमाचरम् // 131 // - भावार्थ-हुं मारा आ कूतराना जन्मथी सात भव पहेलां मनुष्य हनो, अने हमेशा शिवनी पूजा करी / | देवद्रव्य भक्षण करवाना दोषथी डर पामी मारा बन्ने हाथ धोइने जमवा बेसतो हतो // 131 // स्त्यानाज्यमन्यदा लिङ्ग-पूरणे लोकढौकितम् / विकरणेऽस्य काठिन्यादू, नखान्तः प्राविशन्मम 132 / / / / 49 भावार्थ-एक दिवसे लोकोए, शिवलिंग पूरवा माटे चीजेलं घी मूक्यु. कठिन होवाथी ते घी छुटुं पाडता मारा नखम भराइ गयुं // 132 // / विलीनमुष्णभक्तेना-ऽजानता तन्मयाहृतम् / तेन दुष्कर्मणा सप्त-कृत्वो जातोऽस्मि मण्डनः // 133 / / . . भावार्थ-त्यार बाद शिवना मंदिरमाथी नीकळी घेर भावी भोजन करवा बैठो.. उष्ण भोजनथी ते नख- ||-- मांनुं घी ओगळी गयुं, अने जमता जमता अजाणतां ते घी पण भोजन साथे खवाइ गर्यु. फक्त एटलाज देवद्रव्य भक्षण करवा रूप दुष्कर्मथी हुँ सातवार कूतराना जन्ममा अवतर्यो // 133 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust