Book Title: Nabhak Raj Charitram Bhashantar
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Dosabhai Lalchand Shah

View full book text
Previous | Next

Page 74
________________ / AT. भावार्थ-आ प्रमाणे जीवदयाना अधिकारमा प्राणीओने हिंसा करचाथी केवा माठां फळ भौगवां पड़े / छे, अने दया राखवायी केवां अनुपम मुख भोगवे छे ते सर्वनुं एवं स्पष्ट स्वरूप ते मुनिराजे समजाव्युं के जेथी भानु पोताना करेला पापयी कंपवा लाग्यो // 192 // . ___ यावजीवमथादाय, हिंसानियममुत्तमम् / साघु स्वाऽवसथे नीत्वा, शुद्धान्नैः प्रत्यलाभयत् / / 193 // भावार्थ-हवे ते मुनिराज पासे जींदगी पर्यंत हिंसाना उत्तम नियमने ग्रहण करी, साधु महाराजने पोताने घेर कइ जइ शुद्ध अन्नथी प्रतिकाभ्या // 193 // एवं लेनाऽर्जितं भोग-फलं कर्म ततोऽनिशम् / कृपावान् पूज्यते लोका-दाप्तस्वो जीविकां ध्यधात् // 194 // . भावार्थ---आ प्रमाणे तेणे अहिंसावत अहण करवायी अने मुनिराजने भावपूर्वक वहोराववाची भौगरूपी / फळ आपनाएं शुभ कर्प उपार्जन कर्युत्यार पछी निरंतर दयावाळो ते लोकोमा माननीय थयो, अने लोको || पासेसी शुद्ध नीतिपूर्वक द्रव्य मेळवी पोतानी आजीविका चलावा लाग्यो // 194 // Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108