________________ ना. अपराहे पुरः क्वापि, कयाचिन्नवनिस्त्रिया। ढौकितं न फलमादत्, सत्त्वान्नाऽपि पयः पपौ // 243 // भावार्थ-राजा अगाडी चाल्यो जायछे तेवामा बपोर पछीना समयमा कोइक नवीन स्त्रीए आवी तेनी सन्मुख सुंदर फळ तथा शीतल जळ मूक्युं, पण तेने श्रीआदीवर प्रभुनुं दर्शन का सिबाय कांइ पण वस्तु खावानो तथा जल पीवानो दृढ नियम होवाथी सत्वशाळी ते महापुरुषे फळ खाई नहीं तेम जळ पण पीधुं नहीं // 243 // || च. . .. तया सह महःस्तोम-व्योमव्यापिनि मन्दिरे।। 187) - आश्चर्यपरिपूर्णान्तः, स्वच्छेन मनसा ययौ // 244 // भावार्थ-त्यार बाद आश्चर्यथी पूर्ण बनेला हृदयवाळो नामाक आकाशमा व्यापी रहेला तेजना झळहळाट वाळा एक महेलमा ते स्त्री साथे स्वच्छ चित्ते गयो // 244 // स तत्र चित्रकृद्रपाः, सारशृङ्गारहारिणीः। हरिणाक्षीनिरीक्षिष्ट, विलसन्तीः सहस्रशः // 245 // भावार्थ-पोताने अपरिचित ते नूतन प्रासादमां नाभाक राजाए आश्चर्य उत्पादक स्वरूपवाळी, उत्कट बारी, मनोहर विलास करती हजारो सुंदरीओने जोइ / / 245 // P.AC.GunratnasuTIMES Jun Gun Aaradhak Trust