Book Title: Nabhak Raj Charitram Bhashantar
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Dosabhai Lalchand Shah
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________________ स्वर्णरूप्ययवै रत्न-स्थालेऽथो मङ्गलाष्टकम् / आलिख्याऽष्टोत्तरशत-वृत्तैः सानन्दमस्तवीत् // 216 // भावार्थ-त्यार बाद रत्नना थाळमा स्वर्ण अने रूपाना जवीथी आठ मंगल आलेखीने हृदयना उल्लासथी || .. एकसो आठ श्लोको बड़े भावपूर्वक प्रभुनी स्तुति करी // 216 // शक्रस्तवेन वन्दित्वा, सिद्धादि चाऽथ सद्गुरून् / नत्वा स्वर्णमणिरत्न-मुक्ताभिस्तानवीवधत् // 217 // भावार्थ-त्यार बाद नमुत्थुणं चड़े सिद्धाचलने वांदी, गुरु महाराजने नमन करी ते भोने नर्ण, मणि, रत्न अने मोती बड़े वशव्या // 217 // दत्त्वा यथेच्छमर्थिभ्यो, दानं मिष्टान्नभोजनः / अतूतुषत् सर्वलोकान् , धार्मिकांश्च विशेषतः // 218 // भावार्थ-याचक जनोने इच्छित दान आप्युं, तेमन मिष्टान्न भोजन वडे सर्व लोकोने संतुष्ट कर्या, तेमां पण धार्मिक पुरुषोनी तो विशेष प्रकारे आदर सत्कार पूर्वक भक्ति करी तेओने संतोष उपजाव्यो / / 218 // P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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