________________ ना. ... . वरं सेवा वर दास्य, वरं भिक्षा वर मृतिः।.... .. निदानं दीर्घदुःखाना, न तु देवस्वभक्षणम् // 56 // भावार्थ-कोइनी सेवा करी आजीविका चलाववी श्रेष्ठ छ, चाकर थइने रहेवू सारं छे, भीक्षा मागी उदर पोषण कर उत्तम छे, अने छेवटे भूख्या मरी जवू पडे तो ते पण व्हेतर छे; पण सर्व प्रकारनां दुःखोनुं कारण देवद्रव्यनुं भक्षण करवू ते बीलकुल ठीक नथी. // 56 // 24 . . भ्रातुरित्युपदेशेन, मौनी सिंहस्तदोत्थितः। . ... एकान्ते भार्ययाऽभाणि, हा ! मोरध्याद बंच्यसे कथम् // 7 // कपोलकल्पितैर्यदा, को नाम न हि बंच्यते। परं यथा तथा सर्व-मध वाऽऽदत्स्व तन्निधिम् // 58 // भावार्थ--आ प्रमाणे भाइनो उपदेश सांभळी यौन रहेलो सिंह त्यांथी उठ्यो, तेने एकतिमा तेनी पत्नीए कई के-"तमे भोळपणथी कम उमाओ छो ? अथवा कपोलकल्पित वातोथी कयो पुरुष न ठगाय ? परंतु जेम तेम करीने // सर्व निधि आपणे ताबे करो, अथवा संपूर्ण निधि न आपे तो, छेवटे अरधुं धन पण तमे ग्रहण करो"॥५७-५८॥ . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust