Book Title: Nabhak Raj Charitram Bhashantar
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Dosabhai Lalchand Shah

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Page 35
________________ .. ला. // 31 // मिथः भन्नां वीक्ष्य निजां चमूम् / श्रीसमुद्रनृपो यावत्, किंकर्तव्यजडोऽजनि // 78 // भावार्थ-परस्सर बचे सैन्यनुं युद्ध प्रवयु, पण छेक्टमां दुश्मनोना पराक्रमथी पोतानी सेनाने वीसराह गयेळी जोइ समुद्रपाल राजा 'हवे झंकरवू ?" ए प्रमाणे जेटलामी विचारवमळमां गुंचकायो // 78 // तावनिबिडबन्धेन, निवान् योजिताञ्जलीन् / पादाग्रे लुठतो वीक्ष्य, रक्ष रक्षेति.जल्पतः // 79 // भावार्थ-तेटकामां मजबूत बंधनोथी बंधाएला अने बे हाथ जोडी पयाँ भाळोटता शत्रुराजाओने पोतानी सन्मुख रक्षण करो रक्षण कसे ए प्रमाणे बोलता जोइने // 79 // विवेषिभूपतीन् सर्वान् , प्रोन्मुच्य निजपूरुषैः। अहो! किमिति साश्चर्यो- पृच्छत्तानेव भूपतीन् // 8 // भावार्थ-पोताना उपर देष करनार अने युद्ध करनार ते सर्व शत्रुराजाओने पोताना माणसो द्वारा छोटाचीने 'अहो.! आ { आचर्य वन्यु ए प्रमाणे ते राजाओने पूछयुं / / 80 // // - P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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