Book Title: Nabhak Raj Charitram Bhashantar
Author(s): Merutungasuri
Publisher: Dosabhai Lalchand Shah
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________________ 12 नामना कुटुंबीए निधि तरीके दाटयु छ.' आ प्रमाणे लखेलो पत्र वांचीने ज्येष्ठ भ्राता समुद्रे पोतानों अभिपाय जाहेर || कों के-॥४७॥ गत्वा शत्रुञ्जये नाग-श्रेयसे दीयते यदः / श्रुत्वेति जायया नुन्नः, कनीयानित्यवोचत // 48 // ___ भावार्थ-'शत्रुजयमा जइने नागगोष्ठिकना पुण्यने माटे आ नीकळेळ देवद्रव्य आपीए'। ए प्रमाणे मोटा भाइर्नु वचन सांभळी पोतानी स्त्रीयी प्रेरायेलो नानो भाइ सिंह बोल्यो के-॥४८॥ कन्या वराही जाताऽसौ, परं नोंदाहिता पुरा।। धनं विनाऽथ तत्मासौ, सोत्सवेन विवाह्यते // 49 // .. .. भावार्थ- 'आ कन्या परने योग्य थई ले, परंतु अत्यार सुधी धन विना तेनुं लग्न कर्यु नथी, पण हवे || धननी प्राप्ति यवाथी तेनो महोत्सवपूर्वक विवाह करीए' / / 49 // दध्यौ समुद्रः श्रत्वेति, स्वभावाद दृष्टधीरसौ। भार्यया प्रेरितो जातो, वात्येरितकृशानुवत् // 50 // || भावार्थ-आवु नाना भाइर्नु अयोग्य कथन सांभळी समुद्रे विचार कर्यो के-आ स्वभावयीन दुष्ठ अदिवाळी // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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