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जाती है यह देखकर वह सोचता है कि अगर में होता तो एक भी मछली जबडे से छूट नहीं सकती थी । इस प्रकार से सिर्फ हिंसक विचार के कारण तंदुलिया मच्छ ७ वीं नरक में गया इसलिये विचारशील मानव सोच समझ कर आगे कदम रखना । खाने की तीव्र लालसा कंडरिक मुनि को ७ वी नरक में ले जा सकती थी। उन्होंने थुक को अमृत मान कर भोजन किया, धुंकने वाले गुरूभाई पर तनिक भी क्रोध नहिं किया। इसलिये उन्हे केवल ज्ञान हआ। अनाशक्त भाव से क्रिया करने से कर्मनाश होता है। अनंत बार नरक में गये, दुःख सहन किये फिर भी मैं रात्री भोजन त्याग नहीं कर सकता क्योंकि नौकरी धंधे ऐसे ही हो गये है। अपनी कमजोरी और भूल का स्वीकार न करना सबसे बड़ी कायरता है। नरक गति से मुक्त होना मुश्किल है पर उससे भी ज्यादा मुश्किल उसके कारणों से मुक्त होना है। बड़े धर्मात्मा भी उन कारणों से मुक्त नहीं रह सकते।
गर्मी की ऋतु में बर्फ का पानी, साल भर फीज का ठंडा पानी पीने से असंख्य जीवों का घात होता है। किंत जब पशु-पंखी योनि में गंदे नाले में कचरा वाला पानी पीना पडेगा। थोडी सी भूख-प्यास के डर से चोविहार, नवकारशी, एकासना आयंबील भी नहीं करता पर जब नर्क गति में अनंत असाध्य दुःख सहने पडेंगे तब तुम क्या करोगे ? इस समय अगर साधना नहीं कर शके तो भविष्य में कैसे करेगा ? अचरमावर्त में एक भी दःख ऐसा नहीं है कि जो हमने नहीं सहे हो, कोई पाप भी ऐसा न होगा जो न किया
पाप और दुःख से दूर रखकर उर्ध्व गति प्राप्त कराता है तथा उसे अधःपतन से बचाता है । जगत के सर्व दर्शनो में भी जैन दर्शन ही ऐसा है जो आत्मा की उन्नति के लिए उसे संसार परिभमण से दूर रख कर केवल मोक्ष प्राप्ति के लिए ही प्रयत्नशील हो । जैन धर्म ने ही आत्मोन्नति के लिए यमनियम, व्रत, महाव्रत आदि धार्मिक आचार दर्शाये है। जैन धर्म के आचार में जिस प्रकार से अहिंसा की सूक्ष्मता रही है, उसकी वजह से सांसारिक जीव कर्मबंध से बच जाता है । जीव अशुभ कर्मोपार्जन कर दुर्गति में न चला जाय इसी कारण से नरक का स्वरूप वर्णन करना यह प्रकाशन प्रत्येक जीव को शुभ कार्यो में प्रवृत करेंगे और अशुभ कार्यो से पीछे हठ करवायेगा।
जब चारों और जडता, नास्तिकता, तथा स्वच्छंदता का ही बोलबोला है ऐसे समय में आत्मार्थी बालजीवों को पाप कर्मो के दारूण कुपरिणाम उनके कोमल मन को छु जाये इस तरह पेश कर दुष्ट कर्मो के भय का चित्रण करता वर्णन आत्मा को पाप कर्म किये जाने पर नरक गति में जाकर भी भोगना पड़ता है उसका भावपूर्ण वृत्तांत जिस प्रकार चिंत्रो द्वारा दर्शाया गया है वह हर तरह से उपकारी
हो।
श्रन्दावान छोटे-बडे, आबाल-वृन्द तथा हर किसी के लिये शास्त्रो द्वारा दर्शित पाप कर्मो के कुपरिणाम स्पष्टता से समझने के लिये यह प्रकाशन खास उपकारी है।
जो जन हिंसा, झूठ, चोरी, परिग्रह, अब्रह्मचर्य, व्यसन, अप्रमाणिक, अनीति, छल, कपट, देव, गुरू, धर्म की आशातना, धर्म आचरण करनेवालो की टीका, गुणीजनों की निंदा, रात्रीभोजन, कंदमूल भक्षण बड़ो का अपमान इत्यादि पापों का आचरण करता हो उसे कैसी वेदना भुगतनी पड़ती है यह हकिकत स्पष्ट तरीके से चित्रों में दिखाया गया
७. नरक चित्रावली:
महान संतो ने पंचेन्द्रि प्राणि वध, महारंभ, महापरिग्रह, मासांहार निरनग्रहशीलता आदि को नरकगति का कारण दर्शाकर वर्णन किया है। हिंसा आदि कोई भी पाप जो उसमें तीव्र रस लेकर किया जाय तो नरक गति की प्राप्ति का कारण बनता है उसमें कोई संदेह नहीं। अति राग-द्वेष के कारण ही जीव हिंसा आदि पापों का सेवन तीव्र रस से करता
हँसते हँसते बाँधे हुए कर्म तो रोते रोते भी न छुटे।
आज के युग में बढता पापाचार तथा उसके प्रति घटती धृणा व पाप करने में निर्भयता, धर्माचरण के प्रति उदासीनता वगेरेह इन दुष्ट तत्वों के लिए यह प्रकाशन एक लालबत्ती के समान है।
शास्त्रो में नरक भूमि का वर्णन देखने को मिलता है। श्रद्धा संपन्न जीवों का नरक के अस्तित्व में संदेह नहीं है। धर्म एक ऐसी शक्ति है जो आत्मा को संसार के अनेक
हे प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!!
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