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नपुं
कारिकावली (न्याय) चत्वारो नरकद्वाराः, प्रथमं रात्रिभोजनम् । परस्त्रीगमनं चैव, सन्धानान्तकायिके।।
नरक के चार दरवाजे है, प्रथम रात्री भोजन, दुसरा परस्त्रीगमन, तिसरा बोर आचार, चौथा अनंतकाय भक्षण।
___ - श्री श्राध्ध प्रतिक्रमण सूत्र वृत्ति पुढवीसु नेरड्या महावेदणा अप्पनिज्जरा ।
नरक में नारकीओ महावेदनावाले और अल्प निर्जरावाले होते है।
_ - श्री विवाह प्रज्ञप्ति भगवति पंचमंग सूत्र ६९) नारकी के द्वार: द्वार
नारकी भेद
१४ स्थान
७राज पर्याप्ति योनि संख्या ४ लाख
कुल संख्या २५ लाख ६. | योनि संवृतत्व भव स्थिति ज. १० हजार वर्ष
उ.३३ सागरोपम ८. | काय स्थिति
ज. १० हजार वर्ष
३३ सागरोपम ९. | शरीर १०. संस्थान हुंडक ११.| देहमान
५00 धनुष्य १२.| समुद्घात १३. गति १४. आगति
अनंत राप्ति सम्यक्त्व से मोक्ष तक समये सिध्ध लेश्या
दिगाहार १९.| संहनन
नहीं है। २०. कषाय
| Fcious
| संज्ञा
४या १० इन्द्रिय | संज्ञात
हेतुवादो पदेशकी २४. | वेद २५. | दृष्टि २६. | ज्ञान
३ज्ञान ३ अज्ञान | दर्शन
३ दर्शन २८. | उपयोग आहार
निरंतर | गुणस्थान ३१. योग
११ ३२. | प्रमाण (संख्या ) असंख्य ३३. | अंतर
ज. अंतर्मुर्हत उ. अनंतकाल एक जीव
अपेक्षासे ३४. | भवसंवेध
४ पूर्वक्रोड ६६ सागरोपम ७०) नारकी का उत्तर वैक्रिय शरीर :
नरक के अंतमूर्हत तक रहता है। जिस तरह देव का १५ दिन, तिर्यंच का चार मूर्हत रहता है।
७१) नरक में नारकी को साता कब ?
कोई जीव पूर्व भव का देव या मित्र हो और वह नरक में जाकर वेदना कम कर सकता है। तीर्थंकरो के कल्याणक के समय नारकी जीव साता का अनुभव करते है, बाकी तो वहाँ दुःख ही दुःख होता है।
७२) नरक में से चार कारणों की वजह से जीव वापस आ नहीं सकता:
हे प्रदेशी ! नरक में तुरंत उत्पन्न हुआ नारकी मनुष्य लोक में वापस आने की इच्छा करे तो भी चार कारण से आ नहीं सकता भयंकर महावेदना भुगतने की हो।
कर्म फल बाकी रहा हो। परमाधामी बार बार सताते हो। नरक का आयुष्य पूर्ण न हुआ हो। सातवी नरक से वापस न आने का दो कारण है।
भक्खणे देववस्स परत्थी गमणे, सत्तमं नरयं जंति सत्तवारा उगोयमा ।
संवृत
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है प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!!