Book Title: Muze Narak Nahi Jana
Author(s): Vimalprabhvijay
Publisher: Vimalprabhvijayji

View full book text
Previous | Next

Page 78
________________ आ पुस्तकमां अमे पाप बहु कर्यां छे । आ पुस्तक जोईने अमने अनुभव थाय छे के अमे पापी छीओ । शेनाथी पाप लागे छे ते अमने खबर पण है। गर्भपात अ जीवता मनुष्यनी हत्या है। बालकनी जीव तो पहले ज दिवसथी, पहेली जक्षणची तेमां होय ज छे अने नास्तिकताना अभिमानमां अहीं सुधी कहेवा मांडे छे के... नरक छे ज नहीं, नरक क्यां छे ? मणीबेन वसंतभाई शाह बोरीवली (वेस्ट) - 'हंसा जायुं ओकलाने नहिं कोईनो संगाथ, चार दिवसना चांदरणा पछी घोर अंधारी रात; कोनुं सगुं, कोनुं सास, कोनां मा अने बाप, अंतकाळे जावुं अकला, साथै पुण्य ने पाप.... आ पुस्तकजी अक्झाम आपी अटलुं तो समजाई गयुं छे के आपणी आत्मा अनादिकाळथी आ संसारमा रखडी रह्यो छे, रझडी रह्यो छे । ओ बधुं अने आ भवे नहिं तो परभवे तो भोगववानुं ज छे । दुन्यवी परिबको के अन्य कोई वस्तु तेनी साथै नथी आववानी. आवशे तो फक्त तेनां करेलां पुण्य अने पाप पुण्यनुं भाथु भरवानी शरुआत अत्यारथी ज करवी पडशे तो ज परलोकमां सद्गति अने परंपराओ परमगति मळशे । आ संसार आखो दुःखधी भरेलो छे। नारकीना दुःखो तो आनी सामे कांई नथी आ वधुं जोई, सांभळी वाटां उमां थई जाय छे. खरेवर आ पुस्तके मोजशोखमां रमी रहेला मारा आत्माने खळभळावी मूक्यो छे. आ पुस्तक द्वारा जरुरी बात अ जाणवा मळी के मोक्ष प्राप्तिनो मारग मनुष्य भव छे, आ मनुष्य भवने वेडफया वगर, तेने संसारना सुखमां रझड्या वगर सुधारी लेवो जोईओ तेथी ज में निर्णय लीधो छे के प्रभुभक्तिमां लीन थई मारा भवोभवने हुं सुधारी लउं । हे प्रभु! जोतुं नथी नाम मारे, जोती नथी नामना, आपजे प्रभु ओट के, भातुं तारी भावना। नारकीना दुःख यांची हृदय द्रवी गयुं ने रात्रिभोजननो त्याग अवा चार द्वार तो बंध करवानी संकल्प ने, पापथी बचतुं जोई अ ने माटे पाप नहिं ज करवा । अवा घडी घडीओ विचार मांने सारी लेश्यामांज रहेवुं जोईओ । मन-वचनने कायाथी थता पापथी बचचुं ज जोईओ ने भविष्यमां मृत्यु पहेला दिक्षा लईने ज म आवो संकल्प कर्यो छे । चारित्र सिवाय सद्गति नथी अवुं ज लागे छे । बुकनुं नाम अचूक साचुं छे । के, "हे प्रभु मारे नरकमां नथी जवं | नहिं जाउं नरक मोझार' म. साहेबे करेली प्रयत्न खूब यथार्थ छे। लोको घणा पाप करता डरी जशे । Palkavaya हे प्रभु! मुझे नरक नहीं जाना है !!! (78) आ पुस्तकमांथी ओम खबर पडे से के आपणा धर्ममां चार प्रकारना व्रतोनुं पालन करयुं जरुरी छे । (१) रात्रि भोजन (२) परस्त्रीगमन (३) बोळ अधाणुं (४) अनंतकायभक्षण आ बधुं स्वावाथी अने करवाथी आपणने नरकमां खूब ज राजा मळे है। आपणने त्यां रात दिवस मार मछे है अने त्यां मांस, कादव, । लोही, चरबी जेवा गंदा पदार्थोगां नवडावे छे। अने ते आपणुं मांस आपण खवडावामां आवे छे। कोईदी पण कोईनी हिंसा के चाळा चुगली करवी नहिं अने कोईना पर पण हसवं नहि अने कोईन पण पोताना तरफधी दुःख सहन न कर पडे तेनी काळजी राखवी अने पोताना पर हमेशा बने त्यां सुधी बिनजरुरी आदत लेवी नहिं तेथी ज करीने आपणने नरकमां वधारे सजा भोगववी पड़े नहिं । लि. गीताबेन हसमुखभाई मजेठीया 'मत्थ अण वंदामि' खरेखर, आ पुस्तकांचन करतो तो मारा रुवाडां ऊभा थई गया। शरीरमां कमकमाटी आवी गई के आशुं ? मारो साचो अनुभव कहुं हुं के ? आ पुस्तक थोडा वस्त पहला ज अमने प्रभावनानां मन्युं हतुं अने त्यारे मने ओम के शुं बुक आपी हशे प्रभावनामां ? पण, पछी ज्यारे आ बुकनी परीक्षा छे अने में बुक खोलीने वाचा त्यौर मैने मारी जात पर धिक्कार धयों के स्वरेश्वर, आवा महामुल्य मानवजीवनने हुं नरकनी तरफ हेली रही हती अने पुस्तक वांच्चुं पण नहीं, पण ज्यारे यांच्युं त्यारे मने थयुं के आपणे ओक ओक क्षणे कॅटलां बधां पाप आचरी रह्यां छे । पले पले क्रोध, मान, माया, लोभ, जेवा कषायोने आगमन आपीओ छीओ, पण आ पुस्तकना वांचन पछी खबर पड़ी के आ बधां पाप हसता हसतां करी लीधां परंतु नरकमां जईने तेनी केवी असहाय वेदनाओ भोगववी पडशे तेनी खबर ज न हती । परंतु हा, आ पुस्तकना वांचन पछी अ पाप करतां पलां जरूर ओक वखत परमाधामी, जे नरकनुं द्रश्य नजर समक्ष आवी जशे अने ते पाप करतां रोकी जईशुं अने जो अजाणता पण जो पाप करी लीधुं हशे तो मनमा पश्चाताप जरूर आ पुस्तके जरुर अमारा मानवहृदयने जागृत करी दीधुं छे । भारतीबेन सुरेशभाई फूरिया (शेठ) "हे प्रभुजी ! नहिं जाउं नरक मोझार' आ वाक्य बोलतांनी साथै ज शरीरनां ३ ॥ करोड रुवाडां खडां थई जाय छे। शरीर अ कैदखानुं छे अने तेमां पुरायेल आत्मा अ आ मोहभर्या शरीरमांथी नीकळी अने शाश्वत सुखने पामी मोक्षे जवा मांगे छे, पण अ पापकर्या अने क्यां आपणाथी पाप थई जाय है ? अ आ चोपडी द्वारा स्वरेवर खूब ज समजवा मळ्यु १ अढार पापस्थानकथी

Loading...

Page Navigation
1 ... 76 77 78 79 80 81