Book Title: Muze Narak Nahi Jana
Author(s): Vimalprabhvijay
Publisher: Vimalprabhvijayji
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धर्म | वो उच्च कुळ मळ्यो छे से धर्म विना ना गुमावशुं तो आपण बचावनार कोइ नहीं मळे अहीं जो आपणने 'बीसलेरी वॉटर' सिवाय गमतुं नथी तेमज 'अर कंडीशन' सिवाय गमतुं नवी तो त्यांनी आ अनंत वेदना, भूख, तृषा, ताप कैवी रीते सहन धशे माटे आ बुक वांचीने में घणां बधा पापधी छूटवाना नियम आचरण कर्यां ।
आ पुस्तकनी अक्झाम आपी अमां अमने घणुं बधुं जाणवा मळ्युं छे. नरकना दुःखोनुं वर्णन सांभळी, वांची रुवाडां खडां थइ जाय छे। तेथी आमां न जवा माटे तप, नवकार नव लाख वगैरे गणना अने हुं नवलाख जाप करुं हुं । दररोज बांधी नवकारवाळी गणुं धुं ।
जयाबेन दीलिपभाई शाह (अंधेरी)
I
"हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार" पुस्तकमां दर्शावेल अने वर्णवेल नरकनुं वर्णन अने चित्रावली साथैनुं तेनुं अनुसंधान स्वरेश्वर मानवीने बे वार पाप करतां विचार करतो मूकी दे जो पाप कर्यां पछी तेनुं फळ नरकमां भोगवयुं न होय तो पहेलां पाप न कर्तुं अने भूलथी थइ जाय तो तेनुं प्रायश्वित गुरु भगवंत पा करी लें। जेथी तैना उदय खते तेनुं फळ कठोर न मळे आयुं सरस मजानुं पुस्तक चित्रावली साथै बहार पाडी तेमां दर्शावल अने अंगूलिदर्शक करेल नरकना रस्ताओं अने दुःखोना श्रवणथी जरूर मानवी हवे पछी पाप नहिं करवानी प्रतिज्ञा करशे बीजाने पाप करतो अटकावशे । चालो, आपणे पण आजे पाप न करवा, करतां होय होय तो तेने अटकावी ओ तो ज आ पुस्तकजी फळ श्रुति पूर्ण थइ कहेवाशे ।
आ पुस्तक वांचीने अमने नारकोना दुःखनी परिभाषा खबर पडी अने शुं पाप करवाथी नस्कना केवा भयंकर दुःख मळे ? अ पुस्तक वांचवाथी बधी खबर पडी अने अमे पाप करतां अटकी अ छीओ । आ बहु सुंदर पुस्तक छै ।
रमीला हरेश महेता (पाल)
आ पुस्तक वांचवाथी जीवनमां जे पाप कर्या अना माटे मारे दुःखनी लागणी धाय छे। पापनी सजा केटली खराब होय छे। जैन दर्शन केटलो उपकार करे छे अमारे जेवा अज्ञान जीवो उपर । अ आ पुस्तक अमने नवां पापने रोकवामां सहाय करे है। अमे पण पापथी बची ओवी प्रभु पासे प्रार्थना !
मांगीलाल रेवाजी संघवी (भारतनगर)
हे प्रभु! मुझे नरक नहीं जाना है !!!
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आ पुस्तकजी अक्झाम आपी, नारकी अने तेना दुःखो जोई खरेवर हृदय द्रवी ऊठ्युं छे अने ओम थाय छे के ओक ओक क्षण मनुष्य भवमां बगाड्या वगर कर्म खपावीओ नहीं तो आवी नरकमां जतुं पडशे त्यारे कोण बचाववा आवशे ? माटे क्यांच पण कर्म न बंधाय] अने कर्मनी निर्जरा धाय अ ज जीवानुं छे। मन-वचन-कायथी हुं कई ज कर्म न बांधु....
भारतीबेन नवीनचन्द्र गोगरी (सायन)
अनंता भवो सुधी करेलां कर्म आ भवमां भोगवी रह्या छीओ छतां पण आजीव पापथी डरती थी अने निरंतर पाप चालु रास्ते छे आ पुस्तक वांचीने नरकजी जे चितार आंखी समक्ष आयो छे। तेनाथी साचे ज पापथी डर लागवा लाग्यो छे अने तैनाथी बचवाना उपाय शोधवानी इच्छा थाय छे। खरेवर, आ पुस्तक दरेक जैनोओ अकवार अवश्य वांचचुं जोईओ | तेथी जैन धर्मनी गहनता अने पापथी विमुख थवामां दरेक जीवने मदद मळे । जय जिनेन्द्र
अमितभाई शाह (बापाराम)
आ पुस्तक 'हे प्रभुजी ! नहि जाउं नरक मोझार' रचयिता श्री पू. गणिवर विमलप्रभ विजयजी म.सा. खूब ज गधुं । जीवनमां अक वार नहीं अनेक वार वांचवा जेवुं छे । तेम ज जीवनमां उतारखा जेतुं छे जीवनमां आपणे ओवा केटलाय पाप कर्या हरी, ते पण याद नयी रहेतुं तो तेनी आलोचना के प्रायश्वित केवी रीते लेवाना १ माटे आजधी ज ओक डायरी बनावो तमाराधी थतां पापनुं वर्णन अथवा लिस्ट बनावो अने शुरु महाराज पासे तेनुं प्रायश्वित अवश्य लेवं तेनाथी तमारी नरक गति टळशे अने मनुष्य भवनी सार्थकता जणाशे माटे आजथी ज चेती नरक टाळवा माटे साते व्यसन छोडो । धर्ममां स्थिर थाओ । ओज, मारी अभिलाषा...
रीटाबेन भरतकुमार मणीवार
आ पुस्तक पलुं पातुं ज खूब आकर्षित है के चोपडी वांचवानुं मन थाय | आ पहेलां नरक विषे आटलुं सचोट ज्ञान अमने मळ्युं नहतुं । अक अक पानुं वांचवाथी रुवांडां खडां थई जाय। धरमां बाळकोने पण अभक्ष्य भोजन, रात्रि भोजन वगैरे करवाथी शुं धाय अ सचोट चित्र द्वारा समजाववामां खूब ज सरळता पडी । हुं पण रात्रि भोजन करती हती । में पण कायम रात्रि भोजन त्यागनो निर्णय कर्यो छे । जे खरेवर आ पुस्तक ने ज आभारी छे । बीजुं हवे कांई पण पाप करशुं तो नरकनुं सचोट

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