________________ पुष्पचूला संसार वंचणा नवि, गणंति संसारसूअरा जीवा, सुमिणगण वि, केइ, बुज्झति पुष्फ चूलाव्व / 'आसक्त हुझे संसार के विषयो में विष्ठा में भंड की तरह जीव को नरकादि स्थान पाने से ठगते है जब कई जीव स्वप्न में पण नरक के दृश्य देखने से वैराग्य पाते है / रानी पुष्पचूला स्वप्न में भी नरक के दर्शन से संसार से विरक्त बन कर दीक्षा ली और आत्म कल्याण आदरा और फिर जाग्रत दशा में नरकादि का वर्णन और दृश्य देखने से संसार प्रतिनिर्वेद पाकर पापमय संसार से छूटने की इच्छा क्यों न हो ? पाप करते हुए क्युं पश्चाताप (दुःख) न हो ? 'मेरा भी यह प्रयास निष्फळ नहीं बनेगा ऐसी शुभकामनाओं से तैयार किया है। दुःख यातनाए तो जीव को नरक में भुगतने ही पडते है। कर्म के फल भुगतने के लिये उसमें से कोई बच / शक्ता नहीं। बलदेव जैसे नियमा सद्गति को पाते है वैसे वासुदेव नियमा नरक में जाते हैं और चक्रवर्ती की स्त्री रत्न मरकर छट्ठी नरक में जाती है क्योंकि पाप करने के। बाद पश्चाताप नहीं होने से नरक को भूल गये इसका मतलब दुःख का अंत आ गया ऐसा नहीं। खरगोशजंगल में घूम रहा हो और सामने से शेर आ रहा हो तो वह आंख बंध करले और फिर कहे कि शेर तो दिख नहीं रहा है तो क्यां वह शेर से बच पायेगा ? खरगोश माने न माने पर यदि शेर आ रहा होगा तो खरगोश तो मरने ही वाला है। इसी तरह शास्त्र की इस बात को हम माने या न माने लेकित जो हकीकत है वह तो रहने वाली है। नारक चारक सम भव उभग्यो...तारक जानकर धर्म सम्यग्दर्शन के पांच लक्षणों में तीसरा लक्षण निर्वेद = संसार प्राप्ति, उद्वेग = बेचेनी, नफरत के भाव पेदा होना, नारकी में रहे हुए नारक के जीव को नरक में से नीकलने की इच्छा हो, केदी को केदरखाने में से छूटने की इच्छा हो, इसी तरह सम्यग्दृष्टी आत्मा को संसार से छूटने की इच्छा हो, कब संसार छूटे रोज संसार से छूटने की भावना में लीन हो।