Book Title: Muze Narak Nahi Jana
Author(s): Vimalprabhvijay
Publisher: Vimalprabhvijayji

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Page 52
________________ से नरक में जाकर घोर दुःख सहता है। वर्तमान समय में भी ऐसे पाप करनेवाले मनुष्यों को हम नजर समक्ष देख सकते है । वे पाप कर्म बांधकर नरक में जानेवाले है । ६६) पाप कर्म का दारुण विपाक (परिणाम) हँसता बांध्या कर्म ते रोता नावि छूटे रे प्राणिया । हँसते हँसते मोजमजा के लिये जो घोर पाप मनुष्य और तिर्यंचगति में बाँधे, उसकी सजा नरकगति में मिलती है । शुभाशुभ कृत कर्म अवश्यमेव भोगतव्यं । शुभ और अशुभ कर्म भुगतने ही पडते है, फिर भले ही क्रोड वर्ष निकल जाये पर कर्म से छुटकारा नहीं मिलता, जैसे कर्म करेंगे वैसे ही फल सहन करने पडेंगे। आचारांग सूत्र की टिका में नरक के दुःखो का वर्णन है। कान करना, आँख फोडना, आदि दुःख तो होते ही है पर साथ में हाथ, पाँव, नासिका आदि में तीक्ष्ण त्रिशुल से खड्डे करना, हृदय जलाना, भयंकर विशाल कंक पक्षिओं से भक्षण कराना, तीक्ष्ण तलवार, चमकीले नुकीले भाला, कुहाडा मुदगल : आदि शस्त्रों से मस्तक, कान, गला आदि फाडना, शुली पर चढ़ाना | कुंभी में पकाना, असिपत्रवन से कान नाक छेदाना, आदि कर दुःख और वेदना नरक में है। पलक झपकने तक का सुख भी नहीं है। वहाँ से अगर भागने की कोशिश की परमाधामी की मार खानी पडती है। वहाँ दुःख और पीडा सहन करने के अलावा कोई उपाय बाकी नहीं रहता क्योंकि नारक जीव आत्महत्या भी नहीं कर सकते। उसका आयुष्य निरुपक्रम आयुष्य होता है अर्थात आयुष्य पूर्ण हुए बिना वहाँ से छुट नहीं सकते। ६७) क्षेत्रकृत वेदना : वहाँ वेदना का कोई अंत नहीं है। ठंडी-गर्मी और अति अधिक मात्रा में खुजली, खुजली भी ऐसी होती है कि चाकु, छुरी या तलवार से निरंतर खुजालते रहे तो भी निरांत नहीं होती। यहाँ जरासा पाँव में कांटा लगा था, इंजेकशन की सो चुबते ही मुँह से चीख निकल जाती है। वहाँ पर एक साथ करोड सुई चुबाई जाती हो ऐसी वेदना हो तो जीव किस प्रकार वेदना सहे । कितना दुःखदायी यंत्रणा होगी । यहाँ तो डोक्टर वेदना न सहनी पडे इसलिये प्रथम हे प्रभु! मुझे नरक नहीं जाना है !!! (52) क्लोरोफोर्म सूंघा देते है । बाद में ओपरेशन में काटकूट करते रहते है और नरक में सतत हाथ-पाँव कटते जाते है। बुखार - ज्वर-ताप दाह की वेदना से पिडित शरीर को स्पर्श करते ही जलते हुए अंगारे का स्पर्श सा अनुभव होता है। वहाँ नंगे पैर ही चलना पड़ता है, बूट या चप्पल थोडे ही होते है। ६८) आगम सूत्र : घुतं च मांस च सुरा च वेश्या, पापर्द्धिचोर्ये परदारसेवा । सप्तानि तानि व्यसनानि लोके घोरातिघोरं नरकं नयन्ति ।। भावार्थ : जुगार, मांस, दारु, शिकार, चोरी और परस्त्रीगमन ये सात व्यसन जीव को भयंकर नरक में ले जाते है । नेरइ आणं भंते! कइ सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरा पण्णता, तंजहा वेउच्चिए तेअए कम्मए । भावार्थ : हे भगवन्त ! नारकीओं को (पाँच प्रकार के शरीर मेंसे) कितने शरीर कहे है (होते है) ? हे गौतम! तीन शरीर होते है । वे इस प्रकार है। १) वैक्रिय, २) तैजस, ३ ) कार्मण । • श्री अनुयोग द्वार सूत्र अहोलोगे णं चत्तारि अंधगारं करेंति, तं, नरगा, णेरईया, पावाइं कम्माई असुभा पोग्गला । - श्री स्थानांग सूत्र पूर्वस्यां दिशि कालनामा नरकावास, अपरस्यां दिशि महाकालः दक्षिणस्यां रोरुकः, उत्तरस्यां महारोरुकः मध्येऽप्रतिष्ठानकः । में, पूर्व दिशा में काल नाम का नरक आवास, पश्चिम में महाकाल, दक्षिण में रौरुक, उत्तरे महारोरुकः, और बीच में अप्रतिष्ठान नामक नरकावास है । श्री प्रवचन सारोधार पन्नरसहिं परमाहम्मिएहिं । पंद्रह परमाधामी से (प्रतिक्रमण कर रहा हूँ।) प्रतिक्रमण करते समय बोला जाता है। श्री श्रमण सूत्र अधर्मो नरकादीनां हेतुर्निन्दितकर्मजः ।

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