Book Title: Muze Narak Nahi Jana
Author(s): Vimalprabhvijay
Publisher: Vimalprabhvijayji

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Page 60
________________ ९१) रत्नप्रभा के हर एक प्रस्तर में उत्कृष्ट और जधन्य आयु प्रस्तर उत्कृष्ट स्थिति जधन्य स्थिति ९० हजार वर्ष १० हजार वर्ष ९० लाख वर्ष १० लाख वर्ष १ पूर्व क्रोड वर्ष 50 लाख वर्ष १/१० सागरोपम पूर्व क्रोड वर्ष २/१० सागरोपम १/१० सागरोपम ३/१० सागरोपम २/१० सागरोपम ४/१० सागरोपम ३/१० सागरोपम ५/१० सागरोपम ४/१० सागरोपम ६/१० सागरोपम ५/१० सागरोपम ७/१० सागरोपम ६/१० सागरोपम ८/१० सागरोपम ७/१० सागरोपम ९/१0 सागरोपम ८/१० सागरोपम १सागरोपम ९/१० सागरोपम ग्रीष्म ऋतु में मध्यान्ह काल में सूर्य मस्तक पर तप रहा हो, आकाश में मेघ न हो, चारों दिशा में चार अग्नि की लपटें निकल रही हो ऐसी जगह पर कोई पित्त प्रकृति वाले छत्र रहित मनुष्य को जो वेदना होती है। उससे कई गुना अधिक उष्ण वेदना का दुःख नारक को रहता है। इतनी उष्ण नरक से उठाकर अगर नारक को जलते हुए खेर कोयले के अंगारे पर रखे तो वह नारक सुख से सो जायेगा। ___ अढाई द्वीप के धान्य खाने से और सर्व समुंदर, नदी, सरोवर के पानी पीने से भी उसकी भूख और प्यास मिटती नहीं। छुरी से खुरेदने पर भी उनकी खुजाल जाती नहीं है। वे सदा परवश रहते हैं। उनके यहाँ की अपेक्षा अनेकगुना ताव रहता है। उनको हमेशा दुसरे नारक और परमाधमीओं से भय रहता है। उनके भय का कारण यह है कि अवधिज्ञान के सहारे उनको उँचे से, नीचे से या तीरछे से आनेवाले दुःख को वे अगाउ से (पहले से) जान लेते है। इसलिये वे भय से व्याकुल और शोक संतप्त रहते है। इस तरह ये उनकी १० प्रकार की वेदना हुई। प्रथम तीन पृथ्वी के नरकावास की भूमि शीत और बाकी की भूमि उष्ण है । पंकप्रभा में बहुत से नरकावास उष्ण और थोडे शीत है। धूमप्रभामें बहुतसे नरकावास शीत और थोडे उष्ण है। छट्ठी और सातमी नरक में थोडी उष्ण और बाकी भूमि शीत है। नारकी में दो भेद है। सम्यक् दृष्टि जीव और मिथ्याद्रष्टि जीव । उसमें सम्यक् दृष्टि नारकी पूर्वकृत कर्म को याद कर अन्य से उत्पन्न हुए दुःख को सम्यक प्रकार से सहन करती है, जब कि मिथ्या दृष्टि नारकी एक या संख्याता संबंद्ध मुद्गरों के वैक्रिय रुप ग्रहण कर या स्वाभाविक पृथ्वी संबंधी हथियार ग्रहण कर परस्पर झगडते रहते हैं। ९३)३ वेदना में से कौनसी वेदना कितनी नरक तक होती है। सात नरक पृथ्वी में क्षेत्र वेदना, और प्रहरण बिना अन्योन्यकृत (परस्पर जीवों द्वारा उपजायी हुई वेदना) वेदना भी होती है। ५/३ नरक पृथ्वी में परमाधामी द्वारा दी गई वेदना भी संम्मिलित होती है । छट्ठी और सातवी नरक में नारकी जीवों वैक्रिय रुप बनाकर एक दुसरे के शरीर में प्रवेश करते है और वेदना खड़ी करते है। नारकी जीवो आले ९२) १० प्रकार से क्षेत्र वेदना : शब्दार्थ : १. आहारादि पुद्गलों का बंधन २. गति ३. संस्थान हुंडक ४. भेद ५. (अशुभ) वर्ण ६. गंध ७. रस ८. स्पर्श९. अगुरुलघु १०. शब्द ये देश प्रकार के अशुभ पुदगल नरक में भी है। दुसरे १० प्रकार की क्षेत्र वेदना इस प्रकार है - नारकी देश प्रकार की (क्षेत्र) वेदनावाले होते है। १. शीत २. उष्ण ३. क्षुधा ४. तृषा ५. खरज ६. परवशपना ७. बुखार ८. जलन ९. भय १०. शोक ये सब वेदनाएं नारकी के जीव सहन करते है। पोष मास की भीषण ठंड के दिनों में रात के समय जब बर्फ गिरती हो, हवा चल रही हो ऐसे वक्त कोई मनुष्य वस्त्र पहने बिना हिमालय पर्वत पर पहुंचे वहाँ से उसे जो ठंड महसस होगी उससे अनंत गुना ज्यादा शीत वेदना नारक जीवों को रहती है। नारकीओं को यदि ऐसी शीत वेदनावाले नरक में से उठाकर उपरोक्त स्थान पर रखा जाय तो उनको अनुपम सुख महसूस होगा और वे निद्राधीन हो जायेंगे। हे प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!! (60)

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